Monday 5 March 2018

बड़ी खबर: प्रेसकर्मी की विधवा को मिला हक, फ्री प्रेस (कम्पेक्ट प्रिंटर) को मिली मात

फ्री प्रेस में कार्यरत एक कर्मचारी की पिछले दिनों कार्य के दौरान सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी। दुर्घटना के बाद संबंधित थाने में रिपोर्ट दर्ज की गई, लेकिन प्रेस मालिकों का मामला होने से रिपोर्ट में कार्य के दौरान मौत होने का उल्लेख नहीं किया।  इसके बाद फ्री प्रेस प्रबंधन ने अपना हाथ बचाने के लिए संबंधित कर्मचारी की पत्नी को दो लाख रुपए देने का लालच देकर उसके सारे दस्तावेज ले लिए और उसे सारे अधिकारों से वंचित कर दिया।
दोस्तों मामला सुभाष इंगले का है,जो सिक्यूरिटी गार्ड के रूप में पहले दूसरी कंपनी में कार्यरत था उसकी काबिलियत के भरोसे फ्री प्रेस प्रबंधन ने अपने यहां नौकरी पर रख लिया। उसे नाम तो दिया सिक्यूरिटी गार्ड का, लेकिन उससे मार्केट के अनेक कार्य करवाए जाते थे, जैसे बिल उगाना, चैक लाना, चैक लगाना, विज्ञापन एजेंसियों से विज्ञापन लाना आदि कई कार्य करवाए जाते थे। इसी दौरान उसे किसी कार्य से भेजा और सड़क दुर्घटना में उसकी मौत हो गई। मौत के बाद पुलिस रिपोर्ट में कहीं सुभाष इंगले को फ्री प्रेस का कर्मचारी का उल्लेख नहीं किया और न नौकरी के दौरान मृत्यु लिखी गई। इतना होने के बाद फ्री प्रेस में बैठे मालिक के एक खास जो भी खुद कर्मचारी है, ने सुभाष इंगले की विधवा सुनंदा इंगले को पैसों का लालच देकर सारे दस्तावेज ले लिए और बाद में पैसे भी नहीं दिए।  विधवा परेशान होकर इधर-उधर भटकी रहती और लोगों के यहां बर्तन और कपड़े धोकर अपना जीवन-यापन कर रही थी। बाद में फ्री प्रेस के विरुद्ध मजीठिया का केस लगाने वाले राजेश प्रजापत के बाद उक्त विधवा का फोन आया तो उन्होंने तुरंत हमसे सम्पर्क किया और हम पूरी कहानी सुनकर वकीलों से राय- ली। वकीलों का कहना था कि उक्त महिला के पास कोई दस्तावेज नहीं है, ऐसे में कानूनी लड़ाई हार सकते हैं, इसके बाद कुछ वरिष्ठों से चर्चा की तो मामला दस्तावेजों को रिकार्ड में लाने के सामने आया है और अपने अभियान की शुरुआत की।
सबसे पहले यह निर्णय लिया गया कि उक्त मामला दुर्घटना का है, इसलिए जनसुनवाई में आवेदन लगाने की बात हुई। इसके लिए हमने वकील से सम्पर्क किया तो एक इसी प्रेस से प्रताड़ित वकील हमें मिला और उन्होंने बिना पैसे लिए एक आवेदन तैयार कर सीधे जनसुनवाई में लगाने के लिए दिया, जिसमें पीएफ का पैसा भी उल्लेख किया गया। कलेक्टर ने सीधे आवेदन पर कार्रवाई के लिए भविष्यनिधि आयुक्त को भेजा है। यहा दो माह तक कार्रवाई चलती रही। अंतः में महिला के बयान हुए तो हमें भविष्यनिधि में सुनवाई कर रहे अधिकारियों से बयान से दूर रहने की हिदायत दी।  विधवा सुनंदा इंगले के जब बयान लिए गए तो उन्होंने सुभाष इंगले के पेंशनर होने की बात कह दी। जिस पर भविष्यनिधि आयुक्त प्रेस के दवाब में उक्त प्रकरण खारिज करने के फिराक में थे, लेकिन आरटीआई व्दारा मिली जानकारी के आधार पर जब भविष्यनिधि आयुक्त को बताया गया कि कार्य करने वाला व्यक्ति कोई भी हो, अगर वह कार्य कर रहा है तो उसकी पीएफ काटा जाना चाहिए। इसी आधार पर भविष्यनिधि आयुक्त ने 2012 से लेकर 15 अगस्त 2017 तक का पैसा फ्री प्रेस (काम्पेक्ट प्रिंटर को जमा कराने) के निर्देश दिए।  एक दो दिन में सुनंदा इंगले को भविष्यनिधि आयुक्त उक्त रकम सौंपेंगे।
इसकी खबर एक अखबार ने 2 मार्च को ही प्रकाशित कर दी, जबकि उक्त राशि का चेक न तो सुनंदा जैन को मिला था, न ही फ्री प्रेस की ओर से कोई उपस्थित था। इस संबंध में भविष्यनिधि आयुक्त से बात की तो उन्होंने 3 मार्च को 3.80 लाख का इंश्यूरेंस और पांच लाख 10 हजार रुपए के क्लेम कागज सौंपे। इसके बाद आईसीआईसीआई बैंक में विधवा सुनंदा इंगले के खाते में फ्री फ्रेस प्रबंधन व्दारा जमा कराए गए भविष्यनिधि व दंड की राशि का चेक 3 लाख रुपए 3 मार्च को जमा कराया गया।
दोस्तों पूरे मामले में हमारा उद्देश्य सुभाष इंगले की पत्नी को मजीठिया दिलाने का था, लेकिन हमारे पास दस्तावेज नहीं होने से मामला अटक रहा था। इसिलए हमने जनसुनवाई से कार्रवाई शुरू की। अब सुनंदा इंगले का रिकार्ड भविष्यनिधि कार्यालय में 2011 से 15 अगस्त 2017 तक दर्ज हो गया है।  अब कानूनविदो से चर्चा कर मजीठिया की कार्रवाई की जाएगी। लेकिन इस संबंध में भविष्यनिधि आयुक्त की ओर से असहयोग की बात कही जा रही है, वे हमें दस्तावेज देने से इनकार कर रहे हैं। अगर कोई पत्रकार साथी हमें सहयोग करें और भविष्यनिधि से 2011 से 16 अगस्त 2017 तक के पीएफ के दस्तावेज दिलाने में मदद करें तो निश्चित रूप सके 5 से 7 लाख रुपए की मदद उक्त विधवा को और की जा सकती है। वैसे क्लेम के दस्तावेज भी हमारी मजीठिया के दौरान मदद करेंगे।  इस पूरे मामले में फ्री प्रेस के राजेश प्रतापत की भूमिका को हम प्रणाम करते हैं, क्योंकि उन्होंने सुनंदा इंगले को साथ ले जाकर जनसुनवाई में आवेदन लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। दोस्तों आज एक विधवा के चेहरे पर पैसे मिलने की खुशी देखकर हमारी आंखें नमः हो गई और विधवा का आशीर्वाद पाकर हम धन्य हो गए।  अगर इसके बाद भी हम हक की लड़ाई नहीं लड़े तो हमारे जीवन के क्या मायने हैं यह सोचे। हम पत्रकार है या कुछ ओर...।
(मजीठिया क्रांतिकारी ग्रुप से)


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