Friday 16 November 2018

सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के नाम खुला पत्र



अपर मुख्य सचिव आबकारी से अपील उत्तरांचल प्रेस क्लब में अवैध शराबखाने की जांच हो
उत्तरांचल प्रेस क्लब बना शराबियों और दलालों का अड्डा
पदाधिकारी दलाली में जुटे, गैर पत्रकारों को बना दिया सदस्य
सोसायटी रजिस्ट्रार क्लब के सभी सदस्यों के दस्तावेजों की करें जांच
प्रेस क्लब के पदाधिकारियों की संपत्ति की जांच हो
प्रशासनिक तौर पर गठित हो प्रेेस क्लब मानीटरिंग समिति

बुधवार दोपहर देहरादून के उत्तरांचल प्रेस क्लब में गया। पूर्व सैनिकों की पीसी थी। इसके बाद अच्छा-खासा कहीं और जाने के लिए तैयार हो गया था कि सोचा श्री लोकेश नवानी जी को फोन कर लूं। उन्होंने कहा कि कुछ देर में वे भी प्रेस क्लब पहुंच रहे हैं। सो, क्लब के बाहर बैठ गया। दीवार पर प्रेस क्लब के नये सदस्यों का नाम था। कई बार तलाशा मेरा नाम नहीं था, जबकि ऐसे लोगों को सदस्य बना दिया गया जिनका पत्रकारिता से कोई लेना-देना नहीं है या फिर अखबार फाइल कापी ही छपती है। उदाहरणत राष्ट्रीय सहारा के चाल्र्स एंथोनी को क्लब का सदस्य बना दिया जबकि वो मार्केटिंग में है। इसी तरह से कई सदस्य और भी हैं। स्वाभाविक है कि मुझे गुस्सा आ गया और मैंने जमकर हंगामा किया और क्लब के दरवाजे पर एक लात भी मारी। एक चिरकुट सा व्यक्ति जिसके मुंह से शराब की गंध आ रही थी, वो मुझसे उलझने लगा। मैंने उसे उसकी औकात के अनुसार तू-ता से बात की। वह कहता है कि आपत्ति करो। मैं पूछता हूं कि आपत्ति किसलिए? क्या मुझे प्रेस क्लब से मोहर लगवानी होगी कि मैं पत्रकार हूं?

खैर झगड़ा करना तो मेरी फिदरत है। झगडालू तो हूं, पर सही बात पर झगड़ता हूं। दरअसल मुझे इसलिए सदस्य नहीं बनाया जा रहा है कि क्योंकि मैं अन्याय नहीं सहता हूं। गलत बात का विरोध करता हूं। जो चिरकुट मुझसे बहस कर रहा था तो मैंने उसे पूछा कि चारु चंद्र चंदोला जी को श्रद्धांजलि गुपचुप ढंग से दी। क्या उनके परिजनों को पांच लाख रुपये की इंश्योरेंस राशि दी गई जिसके वो हकदार थे। नहीं। दो बार प्रेस क्लब के अध्यक्ष रहे अनूप गैरोला एक निजी अस्पताल में जिंदगी के लिए जंग लड़ रहे हैं लेकिन प्रेस क्लब ने कोई मदद नहीं दी। जब दूरदर्शन का कैमरामैन अच्युतानंद साहू नक्सली हमले में मारा गया तो मैंने स्वयं प्रेस क्लब के अध्यक्ष भूपेंद्र कंडारी से श्रद्धांजलि सभा की बात कही, लेकिन वो टाल गया।

प्रेस क्लब दारू बाजों का अड्डा है। मुझे यह नहीं मालूम कि प्रेस क्लब के पास बार चलाने का लाइसेंस है या नहीं? इस संबंध में आपसे अनुरोध है कि यदि प्रेस क्लब के पास लाइसेंस नहीं है तो बार को अविलंब बंद किया जाए। आजकल निकाय चुनाव चल रहे हैं और राज्य निर्वाचन आयोग चाहकर भी प्रेस क्लब के इस अवैध व दलाली का अड्डे बने बार पर छापा नहीं मार सकता। यहां भारी मात्रा में शराब है और पत्रकारों के साथ उम्मीदवारों की साठगांठ भी यहीं बार में होती है। प्रेस क्लब पत्रकारों के हितों के लिए बनाया गया लेकिन यहां पत्रकारों के हित से अधिक निजी हित होते हैं। प्रेस क्लब के पदाधिकारियों ने बड़ी चालाकी से हंस फाउंडेशन को और पत्रकारों को ठगने का काम किया है। होना यह था कि प्रेस क्लब के माध्यम से पत्रकारों व उनके परिवार का स्वास्थ्य बीमा हो, लेकिन क्लब के चालाक पदाधिकारियों ने यह फंड 50 लाख का था, क्लब के नाम करवा दिया ताकि वे मनमर्जी से इसका आवंटन कर सकें। इसी तरह से जो हेल्थ कैंप लगाया जाता है, उसमें पत्रकारों के परिजनों से भी टेस्ट के पैसे लिए जाते हैं जबकि कई अस्पताल निशुल्क जांच शिविर आयोजित करने को तैयार हैं। भूपेंद्र कंडारी राष्ट्रीय सहारा में कार्यरत होते हुए भी महंत इंद्रेश की मैग्जीन से जुड़े हुए हैं, वह चाहते तो इंद्रेश अस्पताल से समझौता करवा सकते थे कि पत्रकारों व उनके परिजनों का इलाज इंद्रेश अस्पताल में होगा और पत्रकारों को इलाज पर इतने प्रतिशत तक छूट मिलेगी, लेकिन वो कोई कष्ट ही नहीं उठाना चाहते। अधिकांश पदाधिकारी भी दलाली के लिए जाने जाते हैं। ऐसे में प्रेस क्लब के क्रियाकलापों की जांच होनी चाहिए। इसके अलावा एक प्रशासनिक मानीटिरिंग कमेटी भी होनी चाहिए कि पत्रकार कहीं प्रेस क्लब की आड़ में गोरखधंधा तो नहीं चला रहे। पदाधिकारियों व बार में दिन भर बैठने वाले लोगों की जांच भी होनी चाहिए कि गैर पत्रकार या असामाजिक तत्व यहां किसलिए डेरा डाले रहते हैं?

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]

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