Wednesday 8 April 2020

अमर उजाला भी चला सहारा ग्रुप की राह



- मीडियाकर्मियों के वेतन में कटौती, कहा, बाद में देंगे
- इंडियन एक्सप्रेस पहले ही कर चुका है कटौती
- उत्तराखंड सरकार ने मीडियाकर्मियों को उसके हाल पर छोड़ा

भारत में यदि कोई सबसे शोषित वर्ग है तो वह है मीडिया। मीडिया में लाभ मालिक कमा लेते हैं और शोषण होता है वहां कार्यरत मीडियाकर्मियों का। आज लॉकडाउन के साथ ही कोरोना का खतरा है। इसके बावजूद मीडियाकर्मी जगह-जगह जाकर समाचार बटोरते हैं, यह सीधे-सीधे जान जोखिम में डालना है, लेकिन लाला जी को इससे क्या? वह उनका वेतन तक पूरा देने को तैयार नहीं है। सहारा 2014 से अपने मीडियाकर्मियों का आधा या स्लैब वाला वेतन दे रहा है। अमर उजाला भी अब सहारा के नक्शेकदम पर चल रहा है। अमर उजाला के प्रबंधन ने सीनियर सब एडिटर से ऊपर रैंक के कर्मचारियों को आधी सैलरी देने का फैसला किया है। गजब हाल है। मालिक एक महीने भी घाटा नहीं झेल पाता और लाभ की स्थिति में कर्मचारी को उसका हिस्सा नहीं देता।

अमर उजाला और जागरण में यदि किसी मीडियाकर्मी को 2000 रुपये का इंक्रीमेंट मिलता है तो समझो महान बढ़ोतरी हुई है। लाला की जान निकल जाती है लाभ की स्थिति में भी। मैं बता दूं कि सहारा ने मीडियाकर्मियों को स्लैब सैलरी देकर ही लगभग 500 करोड़ से अघिक राशि डकार ली है। 2014 से अब तक सहारा में सेलरी संकट है और बैकलॉग देने को कंपनी तैयार नहीं है।
इंडियन एक्सप्रेस ने भी अपने कर्मचारियों की सैलरी घटा दी है लेकिन पांच लाख रुपये से ऊपर वालों की। वहां लाखों में सैलरी होती है तो इस कटौती का
असर नहीं। टाइम्स ग्रुप भी ऐसा ही करता है, लेकिन उनका सैलरी स्ट्रक्चर अधिक है। यानि लाभ की स्थिति में अधिक सैलरी देते हैं तो मंदी के टाइम कुछ कम भी कर देते हैं। लेकिन अमर उजाला जैसा लालाओं का संस्थान इस तरह की कटौती करे, जो समझ से परे है। अमर उजाला में कई न्यूज एडिटर रैंक के पत्रकार 30-35 हजार पर कार्यरत हैं, ऐसे में यदि आधी सेलरी आएगी तो घर कैसे चलेगा?
उधर, उत्तराखंड सरकार ने लॉकडाउन के दौरान सभी आवश्यक सेवाओं में कार्यरत कर्मचारियों का पांच-पांच लाख का बीमा किया है, लेकिन मीडियाकर्मियों को उसके हाल पर छोड़ दिया है, यानि यदि कोरोना से मीडियाकर्मी की मौत होती है तो उसके परिवार को मिलेगी महज सांत्वना। यदि पत्रकार स्ट्रिंगर हुआ तो अखबार या चैनल उसका नाम भी नहीं छापेगा न दिखाएगा। यानि सबसे शोषित और उपेक्षित है मीडिया वर्ग।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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