Tuesday 17 September 2019

पत्रिका ने मजीठिया क्लेम करने वाले मीडियाकर्मी पर चोरी का केस लिखा दिया!

देश के चर्चित अखबारों में शुमार राजस्थान पत्रिका में अगर आप जॉब करते हैं तो मान कर चलिए की वेतन वृद्धि या मजीठिया वेजबोर्ड की मांग करने पर कभी भी पुलिस की मदद से आपके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराया जा सकता है। पढ़िए इस अखबार के मैनेजमेंट ने किस तरह एक मीडियाकर्मी को परेशान किया कि आज ये कर्मचारी चार महीने से घर से नहीं निकल रहा है। इस कर्मचारी का पत्र ये रहा….

आदरणीय भाईसाहब

नमस्कार

आप लोगों के सहयोग से मैंने और मेरे जैसे अनेक लोगों ने मजीठिया वेतन आयोग के लिए केस किया। मुझे मजीठिया के बारे में कोई विशेष जानकारी भी नहीं थी। राजस्थान के पाकिस्तान के साथ लगते बार्डर एरिया के छोटे से कस्बे का रहने वाला हूं और इतनी बड़ी कंपनी से अपना हक लेने का सपना देख लिया। माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के बावजूद भी लगभग तीन साल तक केस चला और कंपनी के किसी भी कर्मचारी अधिकारी की गवाही तक ना हो सकी।

उन्नीस अप्रैल २०१९ को राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर के मैनेजर ने थाने में चोरी का मामला दर्ज कराया। उसका कहना था कि मैंने २०१३ में कार्यालय से एक दस्तावेज चोरी किया था जो कि मैंने पीएफ कमिश्नर जयपुर के आफिस में पेश किया था। मैनेजर का यह कहना था कि उसने सूचना के अधिकार के तहत पीएफ कमिशनर आफिस से यह सूचना प्राप्त की है जबकि पीएफ आफिस ने यह दस्तावेज मेरे द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज में शामिल नहीं बताया था।

पीएफ का केस हमारे पक्ष में हुआ। पुलिस का मुझ पर बहुत अधिक दबाव रहा। जांच अधिकारी मुझे रात को भी फोन करता। पैसे की मांग के लिए। मुझे इसके अलावा अन्य मामलों में फंसाने की धमकी दी गई। मेरे पिता नहीं हैं। मां के सर में क्लाट है, जिसकी दवा चल रही है। उनकी भी तबीयत बिगड़ गई और मुझसे थाने में ही केस वापस लेने के कागजों पर साइन करवा लिए जबकि राजस्थान पत्रिका मुझे कर्मचारी मानने से इंकार करता रहा है।

मैंने ये कागज थाने में भी दिए थे। मुझे पक्का यकीन था कि मैं केस जीत जाऊंगा और मुझे नौकरी वापस मिल जाएगी। मुझे माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश पर पूरा भरोसा था कि मैं हक ले लूंगा, लेकिन अखबार मालिक बहुत ताकतवर हैं। ये लोग सरकारी कार्यालयों में प्रभावी भी हैं। तीन साल मैनेजर की गवाही नहीं हुई। मेरे उपर आजतक कभी भी किसी प्रकार का कोई केस नहीं था। चोरी के मामले से अब आगे नौकरी मिल पाना नामुमकिन सा हो गया है। छोटा शहर है। बहुत ज्यादा परेशान हूं। डिप्रेशन का शिकार हो गया।

चार महीने से घर में ही हूं। कहीं बाहर जाने का मन नहीं करता। कई बार आत्महत्या करने का विचार भी मन में आता है। पर मेरे बाद मेरे बच्चों का क्या होगा, ये सोच कर परेशान हो गया। हक पाने की लड़ाई में जीवन तबाह हो गया है। जीने की इच्छा खत्म हो गई है। माननीय उच्चतम न्यायालय से यह कहना चाहता हूं कि क्या यही आपका इंसाफ है? क्या इसलिए ही हम लड़े इन ताकतों से? आपके आदेश के बावजूद भी हम परेशान होने को मजबूर हैं!

[साभार: भड़ास4मीडिया.कॉम]


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