Saturday 19 January 2019

मजीठिया: कोर्ट में पत्रिका की लुटिया डुबो दी मालिकों के इस चहेते कारिंदे ने

मजीठिया वेजबोर्ड की अनुशंसाओं को लागू करने के झूठे कागजात तैयार करने वाले इस कारिंदे की एक खामी ने कोर्ट में पूरे मामले का रुख बदल दिया है। जयपुर में चल रहे 190 कर्मचारियों के मामले में एक ऐसा कागज तैयार कर पेश कर दिया है, जो स्वयं ही अपने झूठे होने के प्रमाण दे रहा है। यह कागज ही स्वयं को झूठा सिद्ध कर रहा है। कर्मचारियों ने अपने शपथ पत्रों में इस कागज का उल्लेख करते हुए जब लिखा 'कागज बोल रहा है', तो अदालती लड़ाई की मोनिटरिंग कर रहे इस चहेते कारिंदे को अपनी गलती समझ में आ गई, लेकिन है तो यह पुराना बाजीगर। आत्ममुग्ध मालिक और युवराजों की नब्ज भी अच्छी तरह पहचानता है। अच्छी तरह पता है कि इनको आत्ममुग्धता की अंधता में घेरे रखो, इनका कमियों पर ध्यान जाएगा ही नहीं। सो आज तक मालिक और मालिक पुत्रों को नहीं बताया कि उस कागज के कारण मुकदमा बिगड़ गया है। ऐसा भी नहीं कि मालिक फीडबैक नहीं लेते हों। लेते हैं, लेकिन केसरगढ़ स्थित एक बड़े कमरे में बैठने वाले इसी कारिंदे से। रोज बात करते हैं और वह रोज इन्हें समझा देता है सब सेट कर लिया है।

पत्रिका के वकीलों को पता है कि मामला फंस गया है, लेकिन वे बताएं किसे? अहंकार के मद में चूर मालिक या युवराज की शान के खिलाफ है, ऐसे छोटे वकीलों से मिलना। प्रबंधन की ओर से रोज कोर्ट में आने वाले पी.के गुप्ता को वे कई बार कह चुके, लेकिन वह है तो इस प्रमुख कारिंदे का चहेता छुटभैय्या कारिंदा ही। उसने सुना और बता दिया प्रमुख कारिंदे को।

केसरगढ़ बैठे इस कारिंदे को अब डर सता रहा है कि एक न एक दिन यह बात खुलेगी और फिर ढूंढा जाएगा कि यह 16 नवम्बर 2011 का नोटिस किसने बनाया है। किसने चेक किया था और किसने अप्रूव किया था। कोई कनिष्ठ कर्मचारी यह गलती कर देता तो समझ में आता है, लेकिन प्रबंधन के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति के हाथों ऐसा हो जाए, तो क्षमा कैसे मिलेगी। गलती भी ऐसे व्यक्ति के द्वारा जो स्वयं विधि स्नातक हो। खैर, अब यह कारिंदा संस्थान के भीतर धड़ेबाजी की अफवाह को हवा देकर मालिकों को दूसरी तरफ उलझाने का प्रयास कर रहा है। उड़ाया जा रहा है कि संपादकीय विभाग में शीर्ष पर बैठे लोगों की शह पर लोग इतनी संख्या में केस में गए हैं और केस वापसी के सारे प्रयास भी इसी कारण विफल हो रहे हैं।

स्थिति ज्यादा नहीं बिगड़े, इसलिए अब इस कारिंदे ने अपने मातहतों को निर्देश दिए हैं कि भविष्य में जिन भी केसों में कागजात जमा करवाने हैं, वहां 16 नवंबर 2011 को नोटिस जमा नहीं करवाया जाए। पिछले सप्ताह पत्रिका ने ग्यालियर में कुछ कर्मचारियों के मामलों में दस्तावेज जमा करवाए। इस नोटिस के उल्लेख वाला एक पत्र तो जमा करवाया, लेकिन नोटिस कोर्ट में दाखिल नहीं किया। यह अलग बात है कि अब हम वह नोटिस जमा करवाएंगे और उसी के आधार पर सिद्ध कर देंगे कि संस्थान की 20-जे की अंडरटेकिंग लेने सम्बन्धी पूरी कवायद ही कैसे झूठी है।

आप भी सोच रहे होंगे कि क्या है यह कागज, तो जानिए...
पत्रिका ने जून 2014 में सभी कर्मचारियों से एक प्री टाइप्ड कागज पर साइन करवाए। इन्हें नवंबर 2011 में 20-जे के तहत दी गई अंडरटेकिंग सिद्ध करने के लिए झूठे दस्तावेज तैयार किए गए। पत्रिका के इस लॉ ग्रेज्युएट कारिंदे ने 16 नवंबर 2011 का एक नोटिस तैयार किया। बताया गया कि यह नोटिस लगाया गया और विकल्प मांगे गए। सभी कर्मचारी स्वेच्छा से 20-जे की अंडरटेकिंग 30 नवंबर तक जमा करवा गए। लॉ ग्रेज्युएट की सामान्य बुद्धि यहां मात खा गई। मजीठिया वेजबोर्ड की अनुसंशाएं लागू करने का केंद्र सरकार का नोटिफिकेशन जारी हुआ था 11 नवंबर 2011 को, लेकिन इन्होंने गूगल पर ढूंढकर नोटिस में लिख दिया कि 25 अक्टूबर 2011 को नोटिफिकेशन जारी हुआ है। केंद्र सरकार की अधिसूचना में लिखा था कि हित लाभ एक जुलाई 2010 से दिए जाएंगे। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने 7 फरवरी 2014 को आदेश में कहा कि हित लाभ 11 नवंबर 2011 से दिए जाएंगे। इन्होंने नोटिस 2015-2016 में बनाया था, इसलिए इन्होंने भी नोटिस में लिख डाला कि नोटिफिकेशन के अनुसार हित लाभ 11 नवंबर 2011 से दिए जाएंगे। ये कैसे सिद्ध कर पाएंगे कि इन्हें सुप्रीम कोर्ट के जजों ने नवंबर 2011 में ही बता दिया था कि वे 07 फरवरी 2014 को जब प्रबंधनों की याचिकाओं का निपटारा करेंगे, तब आदेश में हित लाभ देने की तिथि को एक जुलाई 2010 की जगह 11 नवंबर 2011 कर देंगे।
आखिर युवराजों को कौन समझाए, बाबू तो बाबू ही रहेगा, किसी बाबू को महाप्रबंधक बना देने से वो प्रोफेशनल नहीं हो जाता है।

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