Thursday 24 October 2019

लो, अमर उजाला प्रबंधन भी कमीना निकला


संवाद न्यूज एजेंसी के नाम से छाप रहा खबरें
राजुल महेश्वरी फेर रहे अतुल जी के सपनों पर पानी
कई जगह अंतिम सांसें गिन रहा है अमर उजाला

अमर उजाला ने पत्रकारिता के मेरे करियर को नया मोड़ देने का काम किया। मैंने दिल्ली और चंडीगढ़ संस्करण में आठ साल अमर उजाला में विभिन्न पदों पर काम किया। मेरी धारणा थी कि अमर उजाला के मालिक दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर के मालिकों की तुलना में कम खराब हैं, लेकिन अब यह धारणा बदल गई है। अमर उजाला का बेड़ा गर्क करने में शशि शेखर का बड़ा हाथ रहा है। अमर उजाला में 2005 तक बहुत अच्छी और काबिल टीम रही। कई दिग्गज नामी पत्रकार अमर उजाला में थे, लेकिन शशि शेखर ने एक-एक करके सभी अच्छे पत्रकारों को संस्थान छोड़ने पर विवश कर दिया। शशि शेखर हिन्दुस्तान अखबार का बेड़ा गर्क कर चुका है। हिन्दुस्तान में आज एक भी पत्रकार नहीं है, सब कर्मचारी हैं। सब गुलाम हैं। अमर उजाला राजुल महेश्वरी के नेतृत्व में काम कर रहा है।

अतुल जी की मौत के बाद राजुल इस ग्रुप को अच्छा प्रबंधन नहीं दे पाए हैं और विफल साबित हो रहे हैं। अमर उजाला के कई एडिशन घाटे में चल रहे हैं और कई प्रसार की होड़ में भी पिछड़ रहे हैं। ऐसे में अमर उजाला ने स्थायी कर्मचारियों पर अधिक दबाव देना शुरू कर दिया था। पहले काम ठेके पर दिया और अब आउटसोर्सिंग होने लगी है। कई संस्करणों में बकायदा पत्रकारों की खबरों को संवाद न्यूज एजेंसी का नाम दिया जा रहा है। जो स्टाफर हैं जो कि अब बहुत कम रह गए हैं, उनके नाम के आगे ही अमर उजाला ब्यूरो दिया जा रहा है। तो भाई लोगों जो भी अमर उजाला में काम कर रहे हैं, अब ठिकाना तलाशना शुरू कर दो।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]

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