Monday 14 October 2019

भास्‍कर के साइबर क्रिमिनलों को बचाने में मशगूल हैं उनके आका

मेहनत, ईमानदारी और कुशलता से अपनी ड़यूटी निभाना और उसके एवज में बनती अपनी उचित पगार- मजदूरी की मांग करना दैनिक भास्‍कर चंडीगढ़ में अपराध- क्राइम बन गया है। इसका ताजातरीन उदाहरण एचआर चंडीगढ़ के सीनियर एक्‍जीक्‍यूटिव सुधीर श्रीवास्‍तव हैं। उन्‍होंने मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब से अपनी सेलरी व सुविधाएं क्‍या मांग दीं कि उन पर मुसीबतों का पहाड़ पटक दिया गया एचआर हेड मनोज मेहता और एचआर मैनेजर हरीश कुमार के द़वारा। इन लोगों ने श्रीवास्‍तव का फर्जी इस्‍तीफा डाला ही, उन्‍हें एक अन्‍य फर्जी मामले में फंसाने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं। इन महानुभावों के घोर आपराधिक कारनामों में दैनिक भास्‍कर चंडीगढ़ के एडीटर दीपक धीमान और क्राइम बीट के प्रभारी संजीव महाजन पूरी तरह से मददगार बने हुए हैं। ये दोनों सीनियर पत्रकार पुलिस और प्रशासन में अपनी पहुंच व प्रभाव के जरिए एचआर विभाग के दोनों अपराधियों को बचाने के लिए दिन रात एक किए हुए हैं। अपने एडीटर की शह पर महाजन पुलिस के सभी बड़े अफसरों के समक्ष दंडवत हुए जा रहे हैं। थानेदार और उससे थोड़ा ऊपर के पुलिस अफसरों को येनकेन प्रकारेण अपने फेवर में किए हुए हैं और श्रीवास्‍तव की ओर से दी गई कंपलेंट को निष्‍प्रभावी बनाने की हर जुगत में मशगूल हैं, लेकिन बड़े पुलिस हाकिमों को खुलेआम अपने फेवर में कर पाना महाजन के लिए चुनौती बनी हुई है। महाजन यह सब कर रहे हैं इसकी पुष्टि कई अखबारों के रिपोर्टरों ने की है।

    संजीव महाजन और उनके संरक्षक दीपक धीमान ऐसा क्‍यों कर रहे हैं, ये तो वो ही जानें, लेकिन एक बात, एक हकीकत तो साफ है कि इन लोगों, खासकर महाजन ने, जो किसी अपराध का शिकार हुए पीडि़त की व्‍यथा का निरूपण – चित्रण बेहद संजीदगी व संवेदना से करते हैं, उक्‍त अपराधकर्मियों को बचाकर- संरक्षण देकर अपनी ख्‍याति को मिट़टी में मिला रहे हैं। सबसे अहम यह है कि श्रीवास्‍तव के साथ हुए अपराध को कई महीने हो गए हैं, पर इसके खिलाफ किसी भी तरह की ऐक्‍शन पुलिस ले नहीं रही है। और तो और श्रीवास्‍तव ने जब अपनी ओर से पैरवी थोड़ी तेजी से की तो पुलिस ने फर्जी इस्‍तीफा कांड में अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर दी। जबकि श्रीवास्‍तव ने उन लोगों को नामजद किया था जिन्‍होंने उनका फर्जी इस्‍तीफा डाला था। जाहिर है कि पुलिस ने किसी दबाव में ही ऐसा किया। नहीं तो आमतौर पर होता है कि कंपलेंट में जिनका नाम होता है उनके खिलाफ नामजद रिपोर्ट- एफआईआर दर्ज होती है। बाद में जांच होती है और जांच में उजागर तथ्‍यों के आधार पर कार्रवाई होती है।

  श्रीवास्‍तव के मामले में तो पुलिस जांच-पड़ताल भी भास्‍कर मैनेजमेंट, भास्‍कर के रुतबेदारों- प्रभावशाली लोगों की सहूलियत के हिसाब से चल रही है। पुलिस निष्‍पक्षता से अगर जांच पड़ताल करती तो इस मामले का अब तक निपटारा हो गया होता। दोषियों- अपराधियों को सजा मिल गई होती। सजा नहीं भी हुई होती तो उसकी प्रक्रिया निर्णायक मुकाम पर पहुंचने को बेताब होती। यह भी ज्ञात हुआ है कि इस दरम्‍यान महाजन अपराधकर्मियों और श्रीवास्‍तव में समझौता कराने की भी कोशिश कर चुके हैं, लेकिन उनका प्रयास सफल नहीं हो पाया। जाहिर है समझौते की कोशिश गलत करने वालों को बचाने के लिए ही हो रही थी। क्‍योकि जो सही- सच्‍चा होता है वह ऐसे बेकार के कार्यों में नहीं उलझता। वह तो आर-पार की लड़ाई करता है।

    सुधीर श्रीवास्‍तव के साथ जो कुछ हुआ है वह घोर अमानवीय है और कायदे कानून के पूरी तरह खिलाफ है। इसके खिलाफ उनकी लड़ाई जारी है। देर सबेर उन्‍हें इंसाफ मिलेगा ही, लेकिन गुनहगारों को सुरक्षा और संरक्षण जो लोग दे रहे हैं उनका क्‍या होगा, इसका जवाब शायद भविष्‍य में छिपा है। जिन लोगों ने गुनाह किया है, उनको तो अंजाम भुगतना ही पड़ेगा, इसकी मिसालों से इतिहास के पन्‍ने भरे पड़े हैं।

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