Friday 18 October 2019

मजीठिया: जागरण को पटना हाईकोर्ट से झटका, कहा- 20j बाध्यकारी नहीं, साथ ही दिया रोजाना सुनवाई का आदेश


पटना। जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में पटना हाईकोर्ट ने जागरण प्रबंधन को जोर का झटका दिया है। पटना हाईकोर्ट ने लेबर कोर्ट को निर्देश दिया है कि इस मामले की रोजाना सुनवाई करें। यही नहीं, जागरण प्रबंधन द्वारा वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 20 जे को हाईकोर्ट में संज्ञान में लाते हुए अपने बचाव का प्रयास किया गया जिसे हाईकोर्ट ने ठुकरा दिया। दैनिक जागरण में कार्यरत पंकज कुमार और अन्य के मामले में यह आर्डर पटना हाईकोर्ट ने दिया है।

इस केस में हाईकोर्ट ने कहा है कि 17 (1)में लेबर विभाग के अधिकारियों को अधिकार नहीं है कि वह मजीठिया वेज बोर्ड का बकाया अपने आदेश के तहत दे सकें। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि लेबर विभाग को 17 (2) के अंतर्गत मामला अदालत को प्रेषित कर देना चाहिए यानी कि रिफरेंस बनाकर भेजना चाहिए।

पंकज कुमार का पक्ष पटना के वरिष्ठ अधिवक्ता जे एस अरोड़ा ने अदालत में पक्ष रखा। अरोड़ा के जूनियर गौरव प्रताप और मनोज कुमार अधिवक्ता थे। वहीं, गया के वरिष्ठ अधिवक्ता मदन कुमार तिवारी पटना उच्च न्यायालय में अरोड़ा के साथ हर तारीख पर मजीठिया वेजबोर्ड को लेकर अपडेट कर रहे थे। जहां जरूरत पड़ी मदन तिवारी ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश और वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट से संबंधित आदेश जेएस अरोड़ा के माध्यम से अदालत में पेश किए। दैनिक जागरण की ओर से वरीय अधिवक्ता आलोक कुमार सिन्हा पेश हुए।

20 जे को लेकर पटना जागरण द्वारा किए गए फर्जीवाड़ा को जेएस अरोड़ा ने अदालत में रखा। कैसे एक व्यक्ति का सीरियल नंबर अलग-अलग पृष्ठों पर अलग क्रमांक पर दर्शाया गया था। कुल मिलाकर आदेश 20j को केंद्र में रखकर आया है। जस्टिस शिवाजी पांडेय ने अपने आदेश के पैरा नंबर 33 में दैनिक जागरण द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में आब्जर्वेशन को गलत तरीके से व्याख्या करने पर करारा झटका देते हुए साफ कर दिया है कि आब्जर्वेशन को फैसले से नहीं जोड़ा जा सकता है।

इस संबंध में न्यायमूर्ति शिवाजी पांडेय के आदेश में पैरा 38 में 20j पर सर्वोच्च न्यायालय और स्वयं के आदेश की बहुत ही सटीक व्याख्या करते हुए 20j को मीडियाकर्मियों पर बाध्यकारी नहीं होने को लेकर स्पष्ट आदेश दिया है।

एडवोकेट उमेश शर्मा के मुताबिक पटना हाईकोर्ट ने साफ कहा है कि 20जे लेबर कोर्ट के सामने मान्य नहीं होगा क्योंकि वेजबोर्ड की रिपोर्ट कहती है कि 1 महीने के अंदर ही साइन होना चाहिए। 1986 के जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी कागज पर अगर प्रबंधक ने साइन कराए हैं तो वह मान्य नहीं होगा।

आदेश की कापी देखने-पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- patna highcourt order
https://drive.google.com/file/d/1-OQh_5qFjfPxojXZ7LKbJphVsICbPWFj/view

शशिकांत सिंह
पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी
9322411335


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