Monday 29 October 2018

मीडिया की चकाचौंध दुनिया की अंधी गलियां


  • यहां बिकते हैं ईमान और सम्मान
  • बाजारवाद के इस दौर में मीडिया से ईमानदारी की उम्मीद बेमानी है।


समाचार प्लस के मालिक उमेश कुमार को त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार को गिराने की साजिश में गिरफ्तार कर लिया गया है। उमेश कुमार उत्तराखंड की पत्रकारिता में एक बड़ी हस्ती रहे, महज इसलिए कि वह नेताओं और अफसरों को ब्लैकमेल कर सकते थे। हरीश रावत जैसा पारंगत राजनीतिज्ञ भी इन महाशय की स्टिंग की चपेट में आ गया। इसे त्रिवेंद्र सरकार की उपलब्धि माना जा सकता है और साहस भी कि जिस ब्लैकमेलर उमेश को बड़े-बड़े दिग्गज नेता नहीं पकड़ सके, वो कारनामा त्रिवेंद्र रावत ने कर दिखाया।

ऐसे ही कई ब्लैकमेलर पत्रकार और भी हैं जो हमारे पेशे को कलंकित करते हैं। और इनको शह देते हैं मीडिया संस्थान के मालिक, समूह संपादक और संपादक। हिन्दुस्तान और जागरण अखबार के मालिक कई केसों में फंसे हुए हैं। मानहानि के केस, ब्लैकमेलिंग और विज्ञापन घोटालों में शामिल हैं। आरोप है कि अमर उजाला जैसा प्रतिष्ठित अखबार अपने सम्मान चंद रुपयों में बेच देता है। यदि आपके पास 25 हजार रुपये हैं तो आप अमर उजाला सम्मान पा सकते हैं। हाल में देहरादून में एक सिविल सेवा परीक्षा की कोचिंग देने वाले इंस्टीट्यूट के मालिक ने आरोप लगाया कि अमर उजाला अखबार से फोन आया कि हम आपको सम्मानित करना चाहते हैं, बदले में लाख रुपये की मांग की गई। शहर के एक नामी अस्पताल के नामी सर्जन के अनुसार उन्हें भी यही बात कही गई और दून के एक उद्यमी का आरोप है कि अमर उजाला के यहां से पहले दिन फोन किया गया कि सम्मानित करना चाहते हैं और दूसरे दिन विज्ञापन प्रतिनिधि उनके यहां प्रपोजल ले कर पहुंच गया।

ऐसा नहीं है कि अन्य चैनल या अखबार इस तरह का सम्मान समारोह या विज्ञापन की तिकड़मबाजी नहीं करता। करवा चौथ के दिन फोटो प्रकाशित करने के पैसे लिए जाते हैं। मगर यह सब बाजार है। बाजार में जो दिखता है वो बिकता है। कुछ लोग सम्मान के लिए मरे जाते हैं और उन्हीं मीडिया संस्थानों के कर्मचारी वेतन के लिए मर जाते हैं। उन्हें रात-दिन काम करने के बाद भी वेतन नहीं मिलता। सहारा का मीडियाकर्मी व कई अन्य मीडिया घरानों के कर्मचारी इसी वेदना में जी रहे हैं। मीडिया का यह ग्लेमर कई घरों का बर्बाद कर रहा है। यह भी सच्चाई है कि जो भ्रष्ट हैं, जो लापरवाह हैं, स्टिंग भी उन्हीं का होता है। ईमानदार अफसर या कर्मचारी का स्टिंग नहीं होता न उसे परवाह होती है। मीडिया में तरीके अलग-अलग हैं लेकिन हर कोई वसूली में जुटा है। बाजारवाद के इस दौर में मीडिया से ईमानदारी की चाहत ही बेमानी है।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]

No comments:

Post a Comment