Saturday 6 October 2018

मजीठिया: दैनिक भास्कर पर 62 हजार रुपये का जुर्माना

नोटिस रिसीव न करने और गैरहाजिर रहने पर कोर्ट की कार्रवाई

मजीठिया मामले में हताश, निराश और कदम-कदम पर पराजित अखबार मालिकों पर कानून का शिकंजा कसता जा रहा है। पलायनवादी और शतुर्मुर्गी रवैया अब उन्हें भारी पड़ने लगा है। कानून से भागने की अखबार मालिकों की रणनीति अब बैक फायर करने लगी है। ताजा खबर दिल्ली से आ रही है, जहां लेबर कोर्ट ने नोटिस रिसीव न करने और कोर्ट से गैरहाजिर रहने के आरोप में देश के सबसे बड़े अखबार होने का दावा करने वाले दैनिक भास्कर पर 62 हजार रुपये का जुर्माना ठोक दिया है। यह रकम केस लड़ रहे दैनिक भास्कर और बिजनेस भास्कर के कर्मचारियों को दी गई है।
मजीठिया की रिकवरी के लिए अखबार कर्मचारियों का केस नई दिल्ली में द्वारका स्थित फास्ट ट्रैक लेबर कोर्ट में चल रहा है। कोर्ट ने दैनिक भास्कर के नई दिल्ली स्थित आॅफिस को तीन बार नोटिस भेजे लेकिन मैनेजमेंट ने नोटिस रिसीव करने से इनकार कर दिया। अंतिम बार कड़ी चेतावनी के साथ आॅफिस के गेट और दीवारों पर नोटिस चिपकाए गए तो मैनेजमेंट कोर्ट में हाजिर हुआ और अपने कृत्य के लिए माफी मांगी। अगली तारीख पर मैनेजमेंट फिर गायब हो गया।

इस पर कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए उसे एक्स पार्टी घोषित कर दिया। कोर्ट के तेवर देखकर मैनेजमेंट आनन-फानन में फिर कोर्ट में पेश हुआ और एप्लीकेशन लगाकर एक्स पार्टी हटाने की गुहार लगाई। इस पर कोर्ट ने उसे अंतिम चेतावनी देते हुए 62 हजार रुपये का जुर्माना ठोक दिया। कोर्ट ने अगली तारीख पर सब कर्मचारियों के अलग-अलग चेक लाने का आदेश दिया। मजीठिया रिकवरी का केस करने वाले दैनिक भास्कर के 13 कर्मचारियों को दो-दो हजार और बिजनेस भास्कर के 12 कर्मचारियों को तीन-तीन हजार रुपये के चेक पिछली तारीख को सौंप दिए गए।

हाईकोर्ट के आदेश पर दैनिक भास्कर और बिजनेस भास्कर के 25 कर्मचारियों के ये केस द्वारका फास्ट ट्रैक लेबर कोर्ट में चल रहे हैं। हाईकोर्ट ने छह माह में सुनवाई पूरी करने का आदेश दिया है। इसलिए केस की सुनवाई तेजी से चल रही है। दैनिक भास्कर कर्मचारियों का पक्ष जोरदार ढंग से जाने-माने वकील परमानंद पांडे रख रहे हैं।

अखबार मालिकों की कोई चाल उनके काम नहीं आ रही है और उस पर मुश्किल यह कि कर्मचारियों की बकाया रकम पर ब्याज पर ब्याज चढ़ता जा रहा है। स्पष्ट है कि अखबार मालिक बुरी तरह घिर चुके हैं और उनके भागने के सभी रास्ते बंद हो चुके हैं। यहां अहम सवाल यह पैदा होता है कि क्या देश के चौथे स्तंभ की बागडोर कर्मचारियों का हक मारने वालों और कानून के भगौड़ों के हाथों में है?

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