Thursday 22 June 2017

मजीठिया: राजस्थान के पत्रकार रहे दो कदम आगे

जयपुर। मजीठिया वेजबोर्ड अवमानना मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया। इस फैसले से देशभर के प्रिंट मीडिया कर्मियों में भले ही असमंजस की स्थिति बन रही हो लेकिन मजीठिया वेजबोर्ड की इस जंग में राजस्थान के पत्रकार पूरे देश के पत्रकारों के लिए नजीर बनकर उभरे हैं।

राजस्थान के वरिष्ठ साथियों की टीम ने इस केस और इसकी कानूनी पेचीदगियों को अच्छी तरह समझा और उसी के अनुरूप अपनी रणनीति बनाई। इसी का परिणाम है कि शेष भारत के अन्य साथियों के मुकाबले इस लड़ाई में एक साल आगे चल रहे हैं।

पूरे देश के पत्रकार जिस समय लेबर कमिश्नर से RRC कटवाने की जद्दोजहद में लगे हुए थे, उस समय राजस्थान की टीम को मालूम था कि कानून के अनुसार आरआरसी सिर्फ किसी कोर्ट से ही काटी जा सकती है। किसी और निकाय की द्वारा काटी गई आरआरसी कानून में मान्य नहीं है। ऐसी कोई आरआरसी कट भी गई तो वह अदालत से खारिज ही की जाएगी।

यही वजह थी कि राजस्थान के पत्रकारों ने समय रहते लेबर कोर्ट का रास्ता चुना। जबकि दूसरे राज्यों के पत्रकार अब लेबर कोर्ट जाएंगे। यानी एक साल बाद।

जानकारों की राय थी कि कानून की परिधि में रहते हुए अखबार मालिकों पर अवमानना सिद्ध नहीं हो पाएगी। क्योंकि मालिकों ने मूल ऑर्डर की किसी बात को आधार बनाने के बजाए मजीठिया वेजबोर्ड की 20j जैसी धाराओं को आधार बनाकर कर्मचारियों के बढ़े हुए वेतन से वंचित किया था।

सुप्रीम कोर्ट के ऐसे अनेक निर्णय हैं जिसमें कहा गया है कि अवमानना याचिका में मूल ऑर्डर से इतर किसी बात पर विचार नहीं किया जा सकता। इंटरप्रिटेशन का कोई बिन्दू हो तो उसे जरूर सुना जा सकता है। पर तब जानबूझकर अवमानना करना सिद्ध नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट और प़त्रकारों की तरफ से खडे वकीलों के समक्ष यही सबसे बड़ी चुनौती थी।

इस लडाई को लड रहे राजस्थान के पत्रकार चाहते थे कि सुप्रीम कोर्ट किसी भी तरीके से 20j जैसे लीगल इश्यूज को अपने आर्डर में क्लियर कर दे ताकि उसके आधार पर लेबर कोर्ट में निर्णय करवा सकें। सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी सीमा में रहते हुए उनका यह काम कर दिया है।

फैसले की खास बात पर नजर डाले तो सार निकलता है कि अखबार मालिक इस बार तो अवमानना से बच निकले हैं, लेकिन अब अगर वेजबोर्ड के अनुरूप भुगतान नहीं करेंगे तो यह अवमानना भी सिद्ध होगी।




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