Monday 19 June 2017

मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों का करना होगा पालन: उच्चतम न्यायालय

नई दिल्ली, सोमवार, 19 जून। उच्चतम न्यायालय ने आज स्पष्ट किया कि सभी समाचार पत्रों एवं संवाद समितियों को मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों का पूर्ण रूप से पालन करना होगा। न्यायालय ने कहा कि कोई भी समाचार संगठन अपनी खराब आर्थिक स्थितियों को आधार बनाकर वेतन बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने से मना नहीं कर सकता है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों पर कोई समझौता नहीं हो सकता है। हालांकि न्यायालय ने अभी तक वेतन बोर्ड की सिफारिशों का पूर्ण पालन नहीं करने वाले समाचार संगठनों के विरुद्ध अदालत की अवमानना का मामला शुरू करने से इन्कार कर दिया।

[साभार: वार्ता]

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वेजबोर्ड सिफारिशों को ''पूरी तरह से लागू'' करना होगा

उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि कुछ अखबार संस्थानों द्वारा पत्रकारों एवं गैरपत्रकारों के वेतनमान पर मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को पूरी तरह से लागू नहीं करना जानबूझकर की गई ऐसी चूक नहीं है जो अवमानना मानी जाए।

शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने सात फरवरी 2014 को अपने फैसले में वेजबोर्ड सिफारिशों को मंजूरी दी थी और इसलिए इन्हें ''पूरी तरह से लागू'' करना होगा।

शीर्ष अदालत ने वेजबोर्ड की सिफारिशों और उसके फैसले को लागू करने का एक और मौका दिया और कहा कि सिफारिशों को लागू नहीं करना या इनका कुछ हिस्सा लागू करना संबंधित अखबारी संस्थानों द्वारा खास तरीके से सिफारिशों को समझने के कारण होता है।

शीर्ष अदालत ने पत्रकारों, गैरपत्रकारों और संघों द्वारा दायर 83 अवमानना याचिकाओं का निपटारा करते हुए अपना फैसला सुनाया।

न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने कहा कि कथित चूक [डिफाल्ट] इस अदालत द्वारा बरकरार रखी गईं सिफारिशों की गलत समझ के कारण हुई है। यह अदालत अवमानना अधिनियम 1971 की धारा 2 [बी] के तहत परिभाषित दीवानी अवमानना के दायित्व की तरफ जाने वाली इरादतन चूक नहीं मानी जाएगी।

पीठ ने कहा कि कथित चूक वैसे तो स्पष्ट रूप से हमारे लिए साक्ष्य है, इसे करने की इरादतन मंशा का अभाव किसी भी अखबारी संस्थान को अवमानना का भागी नहीं बना सकता। वहीं दूसरी ओर, जो कुछ हमने कहा उसके आलोक में, वे सिफारिशों को उनकी उचित भावना एवं प्रभाव में लागू करने के एक और अवसर के हकदार हैं।

पीठ ने कहा कि सिफारिशों का उपबंध 20 [जे] और श्रमजीवी पत्रकार एवं अन्य समाचार पत्र कर्मचारी [सेवा की स्थितियां] एवं विविध प्रावधान अधिनियम 1955 इसमें परिभाषित हर ''समाचारपत्र कर्मचारी'' को वेतन [वेज] प्राप्त करने का हकदार बनाता है, जैसी कि वेजबोर्ड ने सिफारिश की है और केन्द्र सरकार ने इसे मंजूरी दी है एवं अधिसूचित किया है।

[साभार: भाषा]  

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मजीठिया बोर्ड की सिफारिशें पूरी तरह लागू करनी होगी

सर्वोच्‍च न्यायालय ने सोमवार को निर्देश दिया कि समाचार पत्रों के कर्मचारियों के लिए वेतन पर मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को 'पूरी तरह लागू' करना होगा और प्रबंधन भुगतान से बचने के लिए फंड की कमी का हवाला नहीं दे सकता।

न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि जहां तक मजीठिया बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने का सवाल है, तो पूर्णकालिक तथा ठेके के कर्मचारियों में कोई अंतर नहीं है।

न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय पीठ ने तीन मई को इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट सहित समाचार पत्र कर्मचारी संघों की अवमानना याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

न्यायालय ने कहा कि समाचार पत्रों ने अदालत के पहले के आदेशों की अवमानना 'जानबूझकर' नहीं की।

इससे पहले, कई समाचार पत्रों के वकीलों ने दलील दी कि वेतन बोर्ड की सिफारिशें उनके भुगतान करने की क्षमता से बाहर होंगी। प्रिंट मीडिया कंपनियों ने कहा कि भुगतान के लिए मजबूर किए जाने से 'समाचार पत्रों की वित्तीय व्यवस्था चरमरा जाएगी।'

समाचार पत्र संघों ने हालांकि दलील दी कि समाचार पत्र भुगतान करने में सक्षम हैं, लेकिन वे ऐसा करने से बच रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने साल 2007 में मजीठिया वेतन बोर्ड का गठन किया था, जिसके चार साल बाद उसकी सिफारिशों को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दे दी। इस संबंध में राजपत्र अधिसूचना 11 नवंबर, 2011 को जारी की गई थी।

फरवरी 2014 में सर्वोच्‍च न्यायालय ने सिफारिशों को बरकरार रखा और समाचार पत्र कंपनियों को सिफारिशों को लागू करने का निर्देश दिया।

[साभार: आईएएनएस]  


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ठेका कर्मियों को भी लाभ दें

सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकारों और गैर पत्रकारों के लिए मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू ना करने पर देश के बड़े अखबार समूहों के खिलाफ दाखिल अदालत की अवमानना के मामले में फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि अखबार समूहों ने आदेश के बावजूद डिफॉल्ट किया, लेकिन ये जानबूझकर नहीं किया इसलिए उनके खिलाफ अवमानना का मामला नहीं बनता। साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि वित्तीय घाटा वेजबोर्ड लागू न करने की कोई वजह नहीं। कोर्ट ने इसे लागू करने के लिए जो एक्ट में प्रावधान हैं उसी मशीनरी के तहत मामले का निपटारा करने के आदेश दिए। मजीठिया आयोग की सिफारिशें सभी रेगुलर और कॉन्ट्रैक्ट वाले कर्मियों पर लागू होंगी।

तीन मई को कोर्ट ने सारी दलीलों की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 7 फरवरी, 2014 को मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप पत्रकारों व गैर पत्रकार कर्मियों को वेतनमान, एरियर समेत अन्य वेतन परिलाभ देने के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के अनुसार नवम्बर 2011 से एरियर और अन्य वेतन परिलाभ देने के आदेश दिए, लेकिन इस आदेश का पालन मीडिया संस्थानों ने नहीं किया।

देश के बड़े समाचार समूहों में वेजबोर्ड लागू नहीं किया गया। आरोप है कि मीडिया संस्थानों ने वेजबोर्ड देने से बचने के लिए मीडियाकर्मियों से जबरन हस्ताक्षर करवा लिए कि उन्हें मजीठिया वेजबोर्ड के तहत वेतन परिलाभ से वंचित रखा। जिन कर्मचारियों ने इनकी बात नहीं मानी, उन्हें स्थानांतरण करके प्रताड़ित किया जा रहा है। कईयों को नौकरी से निकाल दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों, श्रम विभाग और सूचना व जन सम्पर्क निदेशालयों को मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशें लागू करने के लिए जिम्मेदारी तय की है, लेकिन वे इसकी पालना नहीं करवा रहे हैं। वेजबोर्ड लागू नहीं करने पर पत्रकारों व गैर पत्रकारों ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिकाएं दायर की। इसके बाद देशभर से सभी बड़े अखबारों के खिलाफ अवमानना याचिकाएं लगी।

[साभार: एनडीटीवी]



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