Tuesday 27 June 2017

निराश न हो पत्रकार, निश्चित मिलेगा मजीठिया का लाभ : उमेश शर्मा



देश भर के पत्रकारों के हित में जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ने वाले सुप्रीम कोर्ट के वकील एड. उमेश शर्मा आज भी पत्रकारों को उनके हक दिलाने को लेकर प्रयासरत हैं। गत 19 जून 2017 को जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के संबंध में तथा मीडियाकर्मियों के भावी कदम को लेकर वरिष्ठ पत्रकार एवं आरटीआई एक्टिविस्ट शशिकांत सिंह ने श्री शर्मा ने बात की। इस वार्ता में उन्होंने विश्वास दिलाया कि मीडियाकर्मियों को हताश या निराश होने की जरूरत नहीं है। जरुरत है तो सिर्फ संगठित होकर अपने हक की लड़ाई लड़ने की।
प्रस्तुत है एडवोकेट शर्मा से शशिकांत सिंह द्वारा की गई वार्ता के प्रमुख अंश -

1. जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड मामले में 19 जून के आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को आप किस रूप में लेते हैं?
- यह फैसला मूलत: कर्मचारियों के खिलाफ है और इसके लिए कर्मचारियों के वकील ही जिम्मेदार हैं। जिन्होंने पूरे मामले को न जाने किन कारणों से उलझा दिया। जो मुद्दे जरूरी नहीं थे उन्हें उठाया और कोर्ट उसमें उलझती चली गई और मालिकों के वकीलों को ये मौका दे दिया। इसे यूं समझे कि हम अपने ही बनाए जाल में फंसकर रह गए। मैं कोई भविष्यवक्ता नहीं हूं परन्तु मैंने अपने अनुभव के आधार पर पहले ही कहा था कि लिगल इश्यू की डफली बजेगी तो नाव डूब जाएगी। अंतोगत्वा हुआ भी वही। मैंने तो हमेशा कंटेम्प्ट के मुद्दे को उठाया और सुप्रीम कोर्ट से बार-बार मांग की थी कि  लेबर कमिश्नर को 17(1) में ही आर.सी. जारी करें। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट अक्टूबर 2015 में सकारात्मक रवैया दिखाया था। जिसके परिणाम स्वरूप अधिकांश मालिक मजीठिया देने की तैयारी में जुट गए थे और उसी समय यह लिगल इश्यू का भूत निकलकर आया, जिससे हमें मूलत: नुकसान हुआ। ये सब क्यों हुआ? कैसे हुआ? किसने कराया? क्यों कराया? इन बातों में हमें पड़ना नहीं है।

2. कर्मचारियों के पक्ष में क्या-क्या चीजें आर्इं हैं?
- कर्मचारियों के लिए नया कुछ भी नहीं है। इस आदेश में वहीं सारी बातें हैं जो 7 फरवरी 2014 को जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था। अपने आप को भुलावे में रखना या एक दूसरे का कंधा थपथपाना अच्छी बात नहीं है। जज साहब ने कहा है कि 17 (1) में लगाइए। इसमें जज साहब कौन सा नया आदेश दे दिया। 17 (1) का अधिकार तो हमें संसद ने सन 1955 से दिया हुआ है।

3. मालिकों के पक्ष में क्या-क्या फैसले गए हैं?
- पूरी तरह से मालिकों के पक्ष में फैसला है। लेबर कमिश्नर ने लिखित में दिया हुआ है कई संस्थानों ने अपने यहां जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड लागू नहीं किया है। फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। किसी पर कोई कंटेम्प्ट नहीं लगाया।

4.  मीडियाकर्मियों को अभी क्या करना चाहिए?
- सभी को एक जुट होकर 17(1) में अपील लगाना चाहिए। बिना लंबी चौड़ी बात किए सही ढंग से कानूनी लड़ाई लड़ें। कानूनी लड़ाई में क्रांति नहीं होती है। एक अच्छे वकील या लीगल एडवाइजर के माध्यम से एप्लीकेशन लगाइए और हो सके तो सामूहिक एप्लीकेशन लगाइए। और कंपनी का मुख्यालय जहां पर हैं वहां पर एप्लीकेशन लगाइए। साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि यदि कंपनी का प्रतिनिधि कहता है कि आपको 900 नहीं 850 ही मिलना चाहिए तो हमें तुरन्त वहां कहना चाहिए कि ठीक है 850 रु. के रिकवरी इश्यू कर दीजिए और बाकि के 50 रु. के लिए रिफरेंस में भेज दीजिए। यही स्टैंड ले। कानूनी लड़ाई है शतरंज की तरह लड़नी पड़ेगी। सही ढंग से एवं विश्वास साथ लड़िए कानून आपके पक्ष में है, मजीठिया का फैसला आपके पक्ष में है। कंटेम्प्ट तो अलग मैटर था सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश को बस उस स्प में देखिए कि मालिक बच गए। जज साहेब ने कुछ नया नहीं कहा है। वहीं आदेश है जो 7 फरवरी 2014 को आया था और संसद ने हमें 1955 में अधिकार दिया है कि रिकवरी के लिए 17(1) में जाइए और कोई विवाद है तो 17(2) में जाइए।

5. लेकिन लेबर कोर्ट में तो फिर कर्मचारी धक्के ही खाता रह जाएगा?
- जी बिल्कुल! इससे बचने का सिर्फ एक ही उपाय है कि कई सारे कर्मचारी एक साथ क्लेम लगा दें और फिर कोर्ट में जाकर सेक्शन-10 के तहत रिकवरी के लिए तीन महीने की समय-सीमा तय करा दें। यदि किसी भी प्रकार का कानूनी सलाह चाहिए तो आप हमें डाक्यूमेंट मेल कर सकते हैं। अपेक्षित मदद हम कर देंगे।

6. आपने रिव्यू पिटीशन की भी बात कही थी?
- हां जी बिल्कुल हम मुद्दे को लेकर रिव्यू में जाने वाले हैं। ताकि बहुत सारे मुद्दे हो जाने के कारण यदि जज साहब के ध्यान से बच गया है, तो उसे संज्ञान में लें और मालिकों को कंटेम्प्ट का दोषी मानते हुए उनपर कार्रवाई का आदेश दें। इसके लिए आप लोगों से आग्रह है कि सुप्रीम कोर्ट में लेबर कमिश्नर द्वारा जो रिपोर्ट जमा कराई गई है उसमें कहा अर्थात किस पेज पर और किस पैराग्राफ में लिखा हुआ है कि अमुक संस्थान ने जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड लागू नहीं किया है अर्थात सुप्रीम कोर्ट के आदेश का नहीं माना है।

7. मालिकों को कैसे घेरा जा सकते है?
- मालिकों को घेरने पर ध्यान देने की कोई विशेष जरुरत नहीं है। आप अपने हक की मांग करिए, हक के लिए लड़िए। हां यदि मालिकों ने कोई फर्जीवाड़ा किया है, फर्जी डिक्लरेशन दिया है तो उसको सामने लाइए।

8. क्या लेबर कोर्ट को टाइम बांड किया जा सकता है?
- हां बिल्कुल! हाइकोर्ट में जाकर टाइम बांड करा सकते हैं।

9. 20 जे के बारे सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा है?
- 20 जे कोई मामला ही नहीं। क्योंकि जैसे ही कोर्ट में जाएंगे, 20 जे के पेपर रद्दी हो जाएगा। इस संबंध 1986 का आदेश पहले से ही है कि निर्घारित वेज बोर्ड से कम वेतन किसी भी रूप में शर्त पर स्वीकार्य नहीं है।

10. आगे की लड़ाई के लिए मीडियाकर्मियों के लिए आपकी क्या सलाह है?
- मैं यही कहूंगा कि जैसे आप सभी मुंबई क्लेम लगाएं परन्तु अकेले नहीं एक ही साथ 100-500 जितने लोग हो सभी साथ में ही क्लेम लगा दें और किसी अच्छे वकील को हायर कर लीजिए। टाइम्स आॅफ इंडिया वाले दिल्ली में लगा दें। नेशनल हेराल्ड वाले लखनऊ में लगा दें। इसी प्रकार सभी प्रदेशों में एक ही जगह पर सैकड़ों-सैकड़ों लोग एक ही साथ क्लेम लगाएं।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई कार्यकर्ता तथा मजीठिया क्रांतिकारी
९३२२४११३३५

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