Wednesday 22 July 2020

क्या गाजियाबाद में भी गाड़ी पलटेगी, एनकाउंटर होगा?



- एक अच्छा और सच्चा पत्रकार होने का अर्थ भगत सिंह यानी शहीद होना है, जो आज गुनाह है
- अलविदा विक्रम, ये दुनिया तुम जैसो की नहीं, यहां तो लोग पल-पल मर कर जीते हैं कायर कहीं के

गाजियाबाद के पत्रकार विक्रम जोशी को अपराधियों के खिलाफ भांजी के पक्ष में खड़े होने पर सजाए मौत मिली है। उसकी दो बेटियों के सामने अपराधियों ने उसकी सिर पर गोली मारकर हत्या कर दी। नौ अपराधी पकड़े जा चुके हैं लेकिन न उनकी गाड़ी पलटेगी और न वो भागते हुए पुलिस पर फायर करेंगे और न उनका एनकांउटर होगा। क्योंकि विक्रम महज एक आम आदमी था और लोकतंत्र में भीड़ के बीच में एक व्यक्ति का कोई महत्व नहीं। कुव्यवस्था का शिकार। विक्रम की हत्या पर दो दिन मीडिया में खूब बबाल होगा और फिर सब विक्रम जोशी को भूल जाएंगे।

विक्रम के परिवार के लिए अंतहीन संघर्ष की शुरूआत हो चुकी है। परिवार छोटे बच्चे अब बेसहारा हो गए। विपदा पता नहीं कितनी लंबी चलेगी। दरअसल आज एक अच्छा और सच्चा पत्रकार होना ही गुनाह हो गया है। कलम पर कदम-कदम पर पहरे हैं। माफिया और अपराधियों को अपराधी कहना गुनाह हो गया है। अपराधी और आरोपित धनबल, बाहुबल से पत्रकार को चुप रहने पर विवश कर देते हैं। अपराधियों पर उंगली उठाने का अर्थ है कि थाने और कोर्ट कचहरी के चक्कर काटो, हमले झेलने को तैयार रहो। मानसिक रूप से परेशान हो जाओ। परिवार के ताने झेलो, रिश्तेदार कहें, बड़ा भगत सिंह बनता है। अपने बच्चे देखो, छोटे-छोटे हैं। एक तुम ही रह गए हो इस सड़ी-गली व्यवस्था को बदलने को? तब अपराध बोध सा होने लगता है कि क्या गलत को गलत कहना गुनाह है? ये क्या गुनाह कर डाला कि खुद कठघरे में हो? कौन साथी है? कौन साथ देता है? अभिमन्यु की तरह चक्रव्यूह में फंसने का अर्थ वो ही समझ सकते हैं जो विक्रम जैसी परिस्थिति से गुजर चुके हैं, डर पर जीत हासिल करते हैं। क्या अपराधियों और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ आवाज उठाना भगत सिंह कहलाना है?

यदि पत्रकार आवाज नहीं उठाएगा तो फिर कौन उठाएगा? अपराधियों के खिलाफ विक्रम जोशी ने साहस दिखाया और सर्वोच्च बलिदान दे दिया। पर जनता का क्या? जनता तो मूक तमाशा देखती है। लोकतंत्र में जनता सब कुछ है और जब जनता ही कायर हो जाए, अन्याय के खिलाफ लड़ने वालों के बगल में खड़ी होने की बजाए चुप्पी साध लें और शहीदे आजम भगत सिंह के सर्वोच्च बलिदान को एक लुच्चा और टुच्चा सा कमेंट बना दिया जाएं कि बड़े भगत सिंह बनते हो। तो फिर समाज और देश को गर्त में ही जाना है। अलविदा विक्रम, तुम योद्धा थे और तुम्हारा भगत सिंह होने का अर्थ मुझे गौरवान्वित कर रहा है, कि ऐसे कायर समाज और सड़ी-गली व्यवस्था के खिलाफ तुमने आवाज उठाने का साहस तो किया। वरना आज तो लोग पल-पल मर कर जी रहे हैं।
विनम्र श्रद्धांजलि।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

No comments:

Post a Comment