Friday 29 June 2018

मजीठिया: कोर्ट ने दिया पत्रिका को झटका, जाट को देना होगा नया वेतनमान

हाथी फड़फड़ा रहा है। सूण्ड को हिला चुका, फटकार कर थक चुका, लेकिन चींटी है कि सूण्ड से निकलने को तैयार नहीं। जमे बैठी है, इस दृढ़विश्वास के साथ कि अपना अधिकार लेकर ही हाथी का पीछा छोड़ेगी। पहले जब चींटी ने अपना हक मांगा था तो हाथी ने उसे झिड़क कर भगा दिया था। हाथी को गुमान था कि कहां यह अदनी से चींटी और कहां मैं विशालकाय, प्रभावशाली हाथी। पर चींटी भी संघर्षशील निकली, जुगत लगाकर हाथी की सूण्ड में डेरा जमा ही लिया।
कहानी में हाथी है पत्रिका प्रबन्धन और चींटी है हमारे मजीठिया क्रांतिकारी जितेन्द्र सिंह जाट। मजीठिया मांगा तो पत्रिका ने ग्वालियर के चीफ रिपोर्टर जाट को टर्मिनेट कर दिया। जाट का मामला लेबर कोर्ट में चला और 23 मई 2017 को लेबर कोर्ट ने जाट के टर्मिनेशन को अवैध घोषित कर दिया। दूसरी ओर इंदौर, लेबर कमीश्नर ने उनके आवेदन पर 26 लाख रुपए की (मजीठिया का पैसा) आरसी काट दी। पत्रिका प्रबंधन ने आरसी को इंदौर हाईकोर्ट और लेबर कोर्ट के आदेश को ग्वालियर हाईकोर्ट में चुनौती दी।
हाथी तो हाथी है, मदमस्त भी। उसके कारिंदे भी अलग ही खुमारी में। जब विवेक पर मद हावी हो तो गलती हो ही जाती है। पत्रिका से भी हो गई। हाईकोर्ट में अपील करने के साथ ही कर्मचारी को पूर्ववर्ती तनख्वाह (जब टर्मिनेट किया गया, उस समय जो प्राप्त हो रहा था) देने का प्रावधान है। पत्रिका यह तनख्वाह जाट को घर बैठे दे सकती थी, लेकिन पत्रिका ने जाट को ज्वाइन करवा लिया। अब चींटी सूण्ड में थी। हाईकोर्ट में पिछली तारीख यानी 25 जून 2018 को जाट की ओर से जज साहब को बताया गया कि प्रबंधन ने 05 अक्टूबर 2017 को रीइन्स्टेट कर दिया है, लेकिन पुरानी तनख्वाह ही दी जा रही है, जबकि नियमानुसार पुरानी तनख्वाह तभी दी जा सकती है, जब प्रबंधन कर्मचारी को रीइंस्टेट नहीं करे, और घर बैठे तनख्वाह दे। रीइन्स्टेट करने के बाद कर्मचारी वर्तमान तनख्वाह प्राप्त करने का अधिकारी है।
सुनवाई के बाद जज साहब ने पत्रिका को आदेश दिया है कि जाट को रीइंस्टेट करने की तिथि से नई (करंट) तनख्वाह दी जाए। इसके एरियर का भुगतान किया जाए और आगे भी उसी हिसाब से तनख्वाह दी जाए। कोर्ट ने एक सप्ताह के भीतर इस आदेश की पालना कर रिपोर्ट भी तलब की है। आगामी सुनवाई 2 जुलाई 2018 को है।
यही चींटी का मास्टर स्ट्रोक था। मास्टर स्ट्रोक इसलिए क्योंकि जाट दिसम्बर 2011 के बाद में नियुक्त हुए थे, इसलिए उन पर मजीठिया वेजबोर्ड की धारा 20 जे लागू ही नहीं होती। दूसरी ओर पत्रिका के दावे के अनुसार उसके यहां मजीठिया वेजबोर्ड 11-11-2011 को ही लागू कर दिया गया था, ऐसे में  जाट को करंट तनख्वाह मजीठिया के हिसाब से देनी होगी।

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