Thursday 23 March 2017

‘ईयर ऑफ विक्टिम्‍स’ और मजीठिया मामले में इंसाफ की आस

मजीठिया वेज अवॉर्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे अवमानना केसों की सुनवाई ठहर गई है। रुक गई है। एक तरह से विराम लग गया है। तारीख पड़नी बंद हो गई है। तारीख क्‍यों नहीं पड़ रही है, इस पर कुछ वक्‍त पहले अटकलें भी लगती थीं, अब वो भी बंद हैं। सन्‍नाटा पसर गया है। हर शोर, हर गरजती-गूंजती-दहाड़ती, हंगामेदार आवाज इन्‍हें निकालने वाले गलों में शायद कहीं फंस कर रह गई है। या हो सकता है कि इन्‍हें निकालने वाले गलों ने साइलेंसर धारण कर लिया हो। जो भी हो, यह स्थिति है आस छुड़ाने वाली, निराशा में डुबाने वाली, उम्‍मीद छुड़वाने वाली, नाउम्‍मीदी से सराबोर करने वाली, सारे किए-धरे पर पानी फिरवाने वाली।

पिछली तारीख पर जब सुनवाई हुई थी तो ऐसा अनुमान लगाया जाने लगा था कि अब नियमित-निरंतर सुनवाई होगी और शीघ्र ही निष्‍कर्ष-नतीजे-परिणाम पर पहुंचा जा सकेगा। सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना देगा क्‍योंकि ये मामला कंटेंप्‍ट का है। ठीक भी है, अपनी ही अवमानना के मामलों को सर्वोच्‍च न्‍यायालय लंबे समय तक लटका कर नहीं रखता-रख सकता, ऐसी आम धारणा है। पर ऐसा हो नहीं रहा और यह धारणा ध्‍वस्‍त होती दिख रही है।

पीछे एक उम्‍मीद और जगी थी कि नए साल में न्‍यायिक निजाम बदलेगा। नए चीफ जस्टिस आएंगे, कार्यभार संभालेंगे और उन केसों के शीघ्र निपटारे की व्‍यवस्‍था करेंगे जो लंबे समय से लटके-लंबित हैं। संभव है उन्‍होंने ऐसा किया हो, लेकिन हमारे केसों का जो हाल है उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि ऐसा कोई इंतजाम नहीं किया गया। उल्‍टे, लगता है कि इन केसों की गठरी बना कर उसे किसी डार्क रूम में रख दिया गया है। नए चीफ जस्टिस के आने के बाद यह चर्चा भी चली थी कि उन्‍होंने सारे केसेज की री-शिडयूलिंग कर दी है और हमारे जैसे पुराने केसेज की सुनवाई अब मंगलवार की बजाय किसी अन्‍य दिन होगी। ऐसा ही हुआ और एक वीरवार को एडवांस लिस्‍ट में था। लेकिन जब फाइनल लिस्‍ट बनी तो उसमें नदारद था। तब से हमारे केसों की कोई सुध-बुध नहीं मिल रही।

अलबत्‍ता, 19 मार्च के अखबारों में छपी एक खबर ने थोड़ी आस जरूर जगाई है। खबर है चीफ जस्टिस जे़एस खेहर के नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी की एक नेशनल मीटिंग में संबोधन के बारे में। इस मीटिंग में जस्टिस खेहर ने वर्ष 2017 को बतौर ईयर ऑफ विक्टिम्‍समनाने की इच्‍छा जताई। अपने अनुभव का निचोड़ रखते हुए उन्‍होंने कहा कि गंभीर से गंभीर मामलों के आरोपियों को वकील दिया जाता है। गिरफ़तारी के बाद से ही उसके पास कानूनी सहायता पहुंचती है, लेकिन पीड़ित (विक्टिम) के कानूनी हक के लिए कोई उसके पास जाने की बात नहीं करता, कोई उसको कानूनी मदद देने-दिलवाने की पहल नहीं करता। The CJI called it ‘strange’ that in India, while many people reached out to those convicted of serious crimes, victims of their crimes are often neglected. ‘Ours is a strange country. Bigger the criminal, bigger is the out-reach,’ said the CJI. Calling for 2017 to be ‘the year for reaching out to victims.’
प्रधान न्‍यायाधीश के इस उद़गार के आलोक में देखें तो हम अनगिनत मीडियाकर्मी अपने मालिकान के शोषण से भयावह रूप से पीड़ित हैं। हमें इन खूनचूसकों के चंगुल से बचाने-निकालने वाला सर्वोच्‍च अदालत के अलावा कोई नहीं है। कार्यपालिका और व्‍यवस्‍थापिका मीडिया मालिकों के न्‍यौछावरके मुरीद हैं। उनकी आपस में इतनी गहरी सांठगांठ है कि अनुमान लगाना तकरीबन असंभव है। आजकल चुनावों का दौर-दौरा है। न जाने कितने जनप्रतिनिधि चुने गए हैं- चुने जा रहे हैं, पर हमारे वे किसी भी रूप में प्रतिनिधि नहीं दिख रहे, नहीं बन रहे। वे थैली-प्रतिनिधिके घेरे से बाहर के प्रतिनिधि, प्राणी किसी भी ऐंगल से नहीं लग रहे हैं और न कभी लगे हैं।

इस संदर्भ में एक सूचना को शेयर करना समीचीन होगा। बताते हैं कि हिदुस्‍तान टाइम्‍स की मालकिन शोभना भरतिया ने अपने एचआर हेड को गंभीर अंजाम की चेतावनी देते हुए कहा है कि कुछ भी करो, किसी भी तरह से निपटो, लेकिन मुझे सुप्रीम कोर्ट के कठघरे में खड़ा होने से बचाओ। अगर मुझे उस कठघरे में खड़ा होना पड़ गया तो समझ लो तुम नहीं बचोगे, सीधा ऊपर भेज दिए जाओगे। ि‍फल्‍टर होकर बाहर आई इस बात में कितनी सच्‍चाई है, यह छानबीन का विषय। पर इतना तो जरूर है कि ऐसी किसी भी चर्चा-अफवाह में सच्‍चाई का कुछ तो अंश होता ही है। जाहिर है श्रीमती भरतिया अकूत दौलत की मालकिन हैं और कार्यपालिका और व्‍यवस्‍थापिका से उनके रिश्‍ते किसी से छिपे नहीं हैं। और इसी ताकत से किसी को ऊपरपहुंचाने के सुर फूटते हैं। 

बहरहाल, हम मीडिया कर्मी बेहद विपरीत परिस्थितियों में अपने हक के लिए, मजीठिया वेजबोर्ड की संस्‍तुतियों के अनुसार सेलरी और एरियर एवं दूसरी सुविधाएं पाने के लिए इंसाफ के मंदिर में पहुंचे हैं। इंसाफ के दीदार कब होंगे, ये तो पता नहीं, लेकिन इसके लिए हम निरंतर प्रयत्‍नशील हैं। हम मीडिया मालिकों के सबसे बड़े विक्टिम हैं, सबसे ज्‍यादा पीड़ित हैं। ऐसे में यदि यह साल ईयर ऑफ विक्टिम्‍सहै, या होता है, तो महामहिम प्रधान न्‍यायाधीश जी से प्रार्थना है कि हमारे केसों की नियमित हियरिंग करवाकर यथाशीघ्र हमें न्‍याय दिलवाने का कष्‍ट करें। साथ ही केस किए सभी मीडिया साथियों से अनुरोध है कि इंसाफ में अपनी उम्‍मीद किसी भी सूरत में न छोड़ें। उसी तरह बनाए रखें जिसके तहत केस करने सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।

भूपेंद्र प्रतिबद्ध


टूटा 20जे का खौफ, सबको मिलेगा मजीठिया, अब न करें देरhttp://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/08/20.html


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श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम 1955 (हिंदी-अंग्रेजी) में डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न Path का प्रयोग करें-https://goo.gl/wdKXsB

 

पढ़े- हमें क्यों चाहिए मजीठिया भाग-10: (ग्रेड  और बी’) खुद निकालें अपना एरियर और नया वेतनमान http://goo.gl/wWczMH



पढ़े- हमें क्यों चाहिए मजीठिया भाग-17: (ग्रेड सी और डी’) खुद निकालें अपना एरियर और नया वेतनमान  http://goo.gl/3GubWn




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