Thursday 18 August 2022

मजीठिया: बिना वकील के कुणाल प्रियदर्शी ने खुद लड़ा अपना मुकदमा और जीत कर दिखाया



मजीठिया वेजबोर्ड मामले में मीडियाकर्मियों के लिए राहत भरी खबर

पत्रकारों को अधिकार, सरकार या कोर्ट से कराएं अवार्ड Execution

मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई लड़ रहे पत्रकारों के लिए राहत भरी खबर है। अब वे वर्किंग जॉर्नलिस्ट एक्ट 1955 के तहत पारित अवार्ड का Execution कोर्ट के माध्यम से भी करा सकेंगे। बिहार राज्य के मुजफ्फरपुर सिविल कोर्ट ने इस पर अपनी मुहर लगा दी है। कुणाल प्रियदर्शी बनाम प्रबंधन प्रभात खबर व अन्य के मामले में सब जज-1, पूर्वी जस्टिस ज्योति कुमार कश्यप ने बीते 23 जुलाई को आदेश पारित करते हुए स्वीकार किया है कि यह पत्रकारों पर है कि वे अवार्ड का Execution सरकार के माध्यम से कराये या कोर्ट के माध्यम से। इसे एक ऐतिहासिक फैसला माना जा रहा है।

अब तक मान्यता थी कि वर्किंग जॉर्नलिस्ट एक्ट के तहत लेबर कोर्ट से पारित अवार्ड का Execution सिर्फ संबंधित राज्य सरकार के माध्यम से ही कराया जा सकता है, जिसकी प्रक्रिया भूमि राजस्व की बकाया की वसूली के समान होगी। यह काफी लंबी व जटिल मानी जाती है।

वर्किंग जॉर्नलिस्ट एक्ट, 1955 के सेक्शन 17(2) के तहत लेबर कोर्ट मुजफ्फरपुर से कुणाल के पक्ष में 6 जून, 2020 को अवार्ड पारित हुआ था, जिसमें न्यूट्रल पब्लिशिंग हाउस लिमिटेड (प्रभात खबर) के प्रबंधन को दो महीने के भीतर अवार्ड की राशि ब्याज सहित भुगतान का आदेश दिया गया था। समय सीमा बीत जाने के बावजूद जब प्रबंधन ने राशि का भुगतान नहीं किया तो कुणाल ने आइडी एक्ट, 1947 के सेक्शन 11(10) के तहत लेबर कोर्ट मुजफ्फरपुर में ही अवार्ड को Execute कराने के लिए आवेदन दिया। आवेदन की जांच के बाद लेबर कोर्ट ने मामले को मुजफ्फरपुर सिविल कोर्ट रेफर कर दिया।

 कंपनी का तर्क-‘कोर्ट नहीं, सरकार करे Execute’ खारिज

सुनवाई के दौरान कंपनी के वकील का तर्क था कि वर्किंग जॉर्नलिस्ट एक्ट एक स्पेशल एक्ट है। ऐसे बकाया राशि की वसूली के लिए आइडी एक्ट का सहारा नहीं लिया जा सकता है।

ऐसे में बकाया राशि की वसूली कोर्ट के माध्यम से नहीं सरकार के माध्यम से ही होनी चाहिए।

वहीं, अपने केस की खुद पैरवी कर रहे कुणाल प्रियदर्शी ने कंपनी के दावे को निराधार बताया।

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के “एक्सप्रेस न्यूजपेपर लिमिटेड बनाम यूनियन ऑफ इंडिया” व “बेनेट कोलमैन कॉरपोरेशन लिमिटेड व अन्य बनाम मुंबई मजदूर सभा” में दिये गये फैसले के आधार पर दावा किया कि WJ Act पत्रकारों को आइडी एक्ट के तहत वर्कमैन के दायरे में लाने के लिए ही बना है। वहीं, उन्होंने कर्नाटक व आंध्रप्रदेश हाइकोर्ट के जजमेंट का हवाला देते हुए वर्किंग जॉर्नलिस्ट एक्ट के सेक्शन 17(1) में पत्रकारों के पास आइडी एक्ट के तहत राशि वसूली का विकल्प होने की बात कही. दोनों पक्षों को सुनने बाद कोर्ट ने भी माना कि वर्किंग जॉर्नलिस्ट एक्ट के सेक्शन 17(1) में प्रयुक्त “…without prejudice to any other mode of recovery” पत्रकारों को यह विकल्प देता है कि वे चाहे तो आइडी एक्ट के सेक्शन 11(10) का विकल्प चुन सकते हैं। कोर्ट ने इसके लिए ट्रिब्यून ट्रस्ट बनाम प्रेजाइडिंग ऑफिस लेबर कोर्ट केस में पंजाब व हरियाणा हाइकोर्ट के फैसले का हवाला भी दिया है। यहां जानकारी हो कि वर्किंग जॉर्नलिस्ट एक्ट के सेक्शन 17(3) के अनुसार यदि लेबर कोर्ट से बकाया राशि तय हो जाने के बाद उसकी वसूली की प्रक्रिया सेक्शन 17(1) में दी गयी प्रक्रिया ही होगी।

प्रोपर्टी अटैच या अरेस्ट वारंट का है प्रावधान 

सीपीसी के नियमों के तहत आइडी एक्ट में Execution के लिए तीन प्रक्रियाएं तय है।

पहला, जजमेंट डेबटर का बैंक अकाउंट या अन्य चल संपत्तियों को अटैच कर राशि का भुगतान कराना।

दूसरा, जजमेंट डेबटर के ऑफिस या अन्य अचल संपत्तियों, जिससे की वह लाभ कमाता है, को अटैच करना।

तीसरा, जजमेंट डेबटर के विरुद्ध अरेस्ट वारंट जारी करना।

यूं तो अवार्ड होल्डर को यह अधिकार होता है कि वह इन तीनों में से एक विकल्प का चयन करें। पर, कुणाल ने राशि वसूली की क्या प्रक्रिया हो, यह जिम्मेदारी कोर्ट को ही सौंपी है, जैसा की नियमों में प्रावधान है।


शशिकान्त सिंह

मजीठिया क्रांतिकारी और आरटीआई कार्यकर्ता

9322411334

No comments:

Post a Comment