Monday 5 October 2020

गुजरात सरकार की मनुष्य विरोधी अधिसूचना रद्द, सुप्रीम कोर्ट ने मजदूरों को ओवर टाइम देना जरूरी बताया


देश की सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले की सुनवाई करते हुए गुजरात सरकार को स्पष्ट आदेश दिया कि कोविड 19 के मौजूदा समय में अगर किसी श्रमिक ने 12 घंटे काम किया है तो उसे 6 घंटे की ड्यूटी पर 30 मिनट का ब्रेक दिया जाएगा, इसके बाद ही आगे कार्य लिया जाएगा। साथ ही उसे ओवरटाइम भी देना होगा।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय गुजरात मजदूर सभा द्वारा दाखिल रिट पिटीशन (सिविल) संख्या 708/2020 गुजरात मजदूर सभा एन्ड अदर्स वर्सेज द स्टेट ऑफ गुजरात के मामले की सुनवाई कर रही थी।

सर्वोच्च न्यायालय ने मजदूरों को लेकर गुजरात सरकार द्वारा जारी अधिसूचना को भी रद्द कर दिया है।

दरअसल गुजरात सरकार द्वारा जारी एक अधिसूचना में कहा गया था कि मजदूरों को ओवरटाइम मजदूरी का भुगतान किए बिना अतिरिक्त काम करना होगा।

सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि कोरोना महामारी के कारण अर्थव्यवस्था की स्थिति बुरी हो गई है, ऐसे में मजदूरों को उचित मजदूरी नहीं दिया जाना इसका एक कारण हो सकता है। साथ ही शीर्ष अदालत ने 19 अप्रैल से लेकर 20 जुलाई तक के ओवरटाइम का भुगतान करने का भी आदेश दिया।

इस मामले की सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कोरोना लॉकडाउन के दौरान मजदूरों को गंभीर आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। मजदूरों को अपनी आजीविका से हाथ धोना पड़ा। पीठ ने कहा कि कानून का प्रयोग जीवन के अधिकार और मजबूर श्रम के खिलाफ नहीं किया जा सकता है।

आपको बता दें कि गुजरात सरकार द्वारा जारी 17 अप्रैल की अधिसूचना में कहा गया था कि उद्योगों को लॉकडाउन की अवधि के दौरान फैक्ट्री अधिनियम के तहत अनिवार्य कुछ शर्तों में छूट दी जाती है। इसमें श्रमिकों को 6 घंटे के अंतराल के बाद 30 मिनट का ब्रेक दिया जाएगा और आगे 6 घंटे और काम करवाया जाएगा। यानि की मजदूर को 12 घंटे तक काम करना होगा।

गुजरात सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में यह भी कहा गया था मजदूर द्वारा किए गए ओवरटाइम काम के बदले उसे सामान्य मजदूरी का ही भुगतान किया जाएगा।

इस अधिसूचना को फैक्टरी अधिनियम की धारा 5 के तहत जारी किया गया था, जो सरकार को सार्वजनिक आपातकाल की स्थिति के दौरान फैक्ट्री अधिनियम के दायरे से कारखानों को छूट देने की अनुमति देती है।

इस धारा के मुताबिक, सार्वजनिक आपातकाल से अभिप्राय एक गंभीर आपातकाल की स्थिति है, जो भारत की सुरक्षा को खतरे में डालती है चाहे युद्ध या बाहरी आक्रमण या आंतरिक गड़बड़ी हो।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सरकार उद्योगों को धारा 5 के तहत छूट नहीं दे सकती है, क्योंकि महामारी को सार्वजनिक आपातकाल नहीं माना जा सकता है। साथ ही अदालत ने निर्देश दिया कि 20 अप्रैल से 19 जुलाई की अवधि के दौरान सभी मजदूरों को उनके द्वारा किए गए ओवरटाइम मजदूरी का भुगतान किया जाना चाहिए।

आपको बताते चलें कि कई राज्य सरकारों ने इसी तरह कोरोना की आड़ में श्रम संशोधन किया और मजदूरो को 12 घंटा कार्य करना अनिवार्य कर दिया था। इसी रास्ते पर कई अखबार मालिक भी चलने की सोच रहे थे जिनके कदम पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है।

शशिकांत सिंह

पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी तथा वाइस प्रेसिडेंट न्यूज़ पेपर एम्प्लॉयज यूनियन ऑफ इंडिया।

9322411335

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