Sunday 18 October 2020

सर्वोच्‍च न्यायालय ने दोहराया- कोई भी स्टे छह महीने के भीतर स्वतः हो जाएगा समाप्त


उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले को दोहराते हुए कहा है कि उच्च न्यायालय सहित किसी भी अदालत द्वारा दिया गया कोई भी स्टे छह महीने के भीतर स्वतः समाप्त हो जाएगा, जब तक कि अच्छे कारणों के लिए विस्तारित न किया जाए। एशियन रेसुरफेसिंग रोड एजेंसी प्राइवेट लिमिटेड बनाम सीबीआई मामले में उच्चतम न्यायालय ने छह महीने के भीतर स्थगन आदेश की अवधि समाप्त करने की व्यवस्था दी थी। बृहस्‍पतिवार को जस्टिस रोहिंग्टन फली नरीमन, नवीन सिन्हा और केएम जोसेफ की तीन-जजों की पीठ ने इसे पुनः दोहराया है।


पीठ ने न्यायमूर्ति एके गोयल, रोहिंग्टन नरीमन और नवीन सिन्हा की पीठ द्वारा दिए गए फैसले में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित सिद्धांत का हवाला देते हुए कहा है कि ऐसे मामलों में जहां स्थगन आदेश दिया जाता है, वह आदेश की तारीख से छह महीने की समाप्ति पर स्वतः खत्म हो जाएगा, जब तक कि एक स्पीकिंग आदेश द्वारा उसे बढ़ा नहीं दिया जाता है। स्पीकिंग आदेश में यह शामिल किया जाना चाहिए कि मामला इतनी असाधारण प्रकृति का था कि स्थगन आदेश मुकदमे को अंतिम रूप देने से अधिक महत्वपूर्ण था। ट्रायल कोर्ट जहां सिविल या आपराधिक कार्यवाही के स्थगन आदेश का प्रस्तुतिकरण किया जाता है, वहां स्थगन आदेश के छह महीने से आगे की तारीख तय नहीं की जा सकती है, ताकि प्रवास की अवधि समाप्त होने पर कार्यवाही शुरू हो सके, जब तक कि स्टे के विस्तार के आदेश का प्रस्तुतिकरण न हो जाए।

जस्टिस रोहिंग्टन फली नरीमन, नवीन सिन्हा और केएम जोसेफ की तीन-जजों की पीठ ने कहा कि दिसंबर 2019 में, अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, पुणे ने एक आदेश पारित करके उच्चतम न्यायालय द्वारा अनिवार्य रूप से छह महीने की अवधि समाप्त होने के बाद मुकदमे को फिर से शुरू करने से इनकार कर दिया और इसके बजाय पार्टियों को मुकदमे को फिर से शुरू करने के लिए बॉम्बे उच्च न्यायालय का रुख करने के लिए कहा। पीठ ने कहा कि हमें देश भर के मजिस्ट्रेटों को याद दिलाना चाहिए कि भारत के संविधान के तहत हमारी पिरामिड संरचना में उच्चतम न्यायालय शीर्ष पर है, और फिर उच्च न्यायालय। इस तरह के आदेश हमारे फैसले के पैरा 35 के सामने उड़ान भरते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि देश भर के मजिस्ट्रेट हमारे पत्र और भाव के आदेश का पालन करेंगे।

इस प्रकार, पीठ ने अपना फैसला दोहराते हुए कहा कि उच्च न्यायालय सहित किसी भी न्यायालय द्वारा जो भी ठहराव दिया गया है, वह स्वचालित रूप से छह महीने की अवधि के भीतर समाप्त हो जाता है, और ‘जब तक कि हमारे निर्णय के अनुसार, अच्छे कारण के लिए विस्तार नहीं दिया जाता है, ट्रायल कोर्ट छह महीने की पहली अवधि की समाप्ति पर है, मुकदमे की तारीख तय करके उसकी सुनवाई शुरू करेगी।’ पीठ ने अब एसीजेएम, पुणे को मामले की सुनवाई तुरंत शुरू करने का निर्देश दिया है।

गौरतलब है कि जस्टिस आदर्श कुमार गोयल, जस्टिस रोहिंग्टन और जस्टिस नवीन गुप्ता की पीठ ने मार्च 2018 में एशियन रिसर्फेसिंग रोड एजेंसी प्राइवेट लिमिटेड बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो मामले में एक अहम फैसला दिया था है। पीठ ने कहा कि किसी भी दीवानी और आपराधिक मुकदमे की कार्यवाही पर छह महीने से अधिक रोक अर्थात स्थगनादेश नहीं रह सकता। पीठ ने यह भी कहा कि जिन मुकदमों की कार्रवाई पर पहले से रोक लगी हुई है, उस पर रोक आज से छह महीने बाद खत्म हो जाएगी। पीठ ने कहा था कि मुकदमे की कार्रवाई पर अनिश्चितकालीन रोक नहीं लगाई जानी चाहिए। इस सुधार की दरकार न सिर्फ भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों में है, बल्कि सभी दीवानी और फौजदारी मामलों में है। पीठ ने कहा कि कार्यवाही पर रोक लगने से मामला अनिश्चितकाल के लिए लटक जाता है।

पीठ ने हालांकि यह कहा है कि कुछ अपवाद मामलों में कार्यवाही पर रोक छह महीने से अधिक जारी रह सकती है, लेकिन इसके लिए अदालत को बाकायदा आदेश पारित करना होगा। ये ऐसे मामले होंगे, जिनके बारे में अदालत को लगता हो कि उन मुकदमों पर रोक, उनके निपटारे से अधिक जरूरी है। पीठ ने यह फैसला भ्रष्टाचार से जुड़े मामलों पर दिया था।

पीठ ने यह भी कहा था कि कभी-कभी तो रोक हटने की सूचना की जानकारी नहीं पहुंचती है, जिस कारण कार्यवाही भी शुरू नहीं हो पाती है। लिहाजा पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट आरोप तय करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश पर परीक्षण कर सकता है, लेकिन ट्रायल पर रोक छह महीने से अधिक तक नहीं लगा सकता। पीठ ने कहा था कि उन तमाम दीवानी और आपराधिक मामले जिनमें कार्यवाही पर रोक लगी हुई है, उन पर रोक आज से छह महीने बाद खत्म हो जाएगी।

पीठ ने यह भी कहा था कि भविष्य में किसी भी मुकदमे की कार्यवाही की रोक छह महीने की अवधि तक के लिए ही लगाई जाएगी। यदि रोक छह महीने से अधिक होती है तो अदालत को आदेश पारित करना होगा। आदेश में बताना होगा कि वह मामला क्यों अपवाद है और ट्रायल पर रोक उसके निपटारे से अधिक महत्वपूर्ण क्यों है। पीठ  ने कहा था कि मुकदमों पर रोक की अवधि छह महीने के बाद खत्म हो जाए तो ट्रायल कोर्ट को खुद बिना किसी इंतजार के कार्यवाही शुरू कर देनी होगी।

पीठ ने कहा था कि किसी मामले में आरोप तय होने का आदेश पारित किया जाता तो वह आदेश न तो अंतरिम होता है और न ही अंतिम। हाई कोर्ट के समक्ष जब मामला परीक्षण के लिए आए तो कोर्ट को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मामले के जल्द निपटारे में अनावश्यक बाधा न हो। हाई कोर्ट भी इस संबंध में निर्देश जारी कर सकता है। साथ ही हाई कोर्ट यह निगरानी कर सकता है कि दीवानी या आपराधिक मामले लंबे समय तक लंबित न पड़े रहें। पीठ ने इस आदेश की प्रति सभी हाई कोर्ट तक पहुंचाने के लिए कहा था, जिससे कि इस संबंध में जरूरी कदम उठाए जा सकें।

जेपी सिंह

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

[janchowk.com से साभार] 

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  1. नई दिल्ली। श्रमजीवी पत्रकार चन्द्र प्रकाश पाण्डेय ने दिनांक 1 जनवरी 2006 से लेकर 30 जून 2016 तक एनएनएस ऑनलाईन प्रा लि मंे न्यूज कोआर्डीनेटर के पद पर कार्य किया।
    श्रमजीवी पत्रकार चन्द्र प्रकाश पाण्डेय ने श्रम विभाग में शिकायत की उसको जब वह एनएनएस ऑनलाईन प्रा लि मंे न्यूज कोआर्डीनेटर के पद पर कार्य कर रहा था तो उस समय उसको मजीठिया के अनुसार लाभों से वंचित रखा गया।

    श्रमजीवी पत्रकार चन्द्र प्रकाश पाण्डेय की शिकायत पर श्रम अधिकारी श्रीमान ए के बिरूली एवं इंस्पेक्टर श्रीमान मनीश कुमार ठाकुर ने उपरोक्त प्रबंधन को नोटिस/शोकॉज नोटिस देकर उनका पक्ष जानने एवं मांगे दस्तावेज के साथ उपस्थित होने का अवसर रिया दिया। कहे गए प्रबंधन के कार्यालय का निरीक्षण किया और प्रबंधन ने कहा कि वह अगली तिथि पर सभी कागजात लेकर आएगा । लेकिन प्रबंधन उक्त तारीखों पर न तो उपस्थित हुआ और न हीे कोई प्रत्युत्तर दिया एवं संबंधित अधिकारियों के
    अधिकारों को जो कि उनको पद के साथ प्रापत है एवं दिल्ली सरकार एवं श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम-1955 की धारा 17बी के तहत प्राप्त है उसका सम्मान कहे प्रबंधन द्वारा जानबुझकर नहीं किया गया।

    इंस्पेक्टिंग इंस्पेक्टर अधीन श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम-1955 श्रीमान मनीष कुमार ठाकुर ने माननीय न्यायालय में नान पोडक्शन ऑफ रिकार्ड श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम -1955 की धारा 17 ए एवं इसके नियम के तहत एवं मजीठिया लागू न करने की शिकायत माननीय न्यायालय में श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम की धारा 18 1 ए एवं दिल्ली श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम संशोधित 2015 के तहत अपराधिक शिकायत प्रस्तुत की।
    माननीय न्यायालय ने उपरोक्त मामले में कही गई धारा का अनुपालन न करने एवं मांग गए दस्तावेज प्रस्तुत करने में असफल रहने पर आरोपी संख्या-1 श्रीमान राजेश गुप्ता डायरेक्टर एवं मालिक एवं पाच श्रीमान बी सी जोशी-प्रबंधक-एचओडी को दोषी मानते हुए उनको समन किया है।
    c p pandey
    7428139941

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