Thursday 31 May 2018

मजीठिया: जागरण व उजाला ने कोर्ट में मुंह की खाई

दैनिक जागरण हिसार के 41 कर्मियों के टर्मिनेशन का मामला

पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने नहीं दिया स्टे

लेबर कोर्ट में गवाही के लिए 5 जुलाई का समय तय

बार-बार अवसर देने के बाद भी जवाब न देने पर प्रबंधन का बचाव का अधिकार खत्‍म


हिसार। दैनिक जागरण हिसार के 41 कर्मियों के टर्मिनेशन  मामले में 31 मई का दिन बहुत अहम था। सभी की नजरें न केवल पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट में होने वाली सुनवाई पर थीं, बल्कि हिसार लेबर कोर्ट में भी महत्वपूर्ण कार्रवाई होनी थी। प्रबंधन को कई मौके देने के बाद जवाब देने का ये अंतिम दिन था। उधर प्रबंधन ने सरकार के रिफरेन्स पर स्टे के लिए हाई कोर्ट में केस लगा दिया था, जिसकी तारीख भी 31 मई थी। कर्मचारियों को इसकी जानकारी देर शाम तक मिल गई थी। दोनों जगह के लिए दो टीम बनायी गई। चंडीगढ़ में विमल उपाध्याय भी हाई कोर्ट में मौजूद रहे। इस सारी मेहनत का नतीजा कर्मचारियों के पक्ष में रहा तथा हाई कोर्ट में प्रबंधन को स्‍टे नहीं मिला और 23 जुलाई की तारीख लग गई।
इधर हिसार में सुबह प्रबंधन की तरफ से सचिन और एचआर कर्मी पेश हुए। उन्होंने हाई कोर्ट में केस होने का हवाला दिया तो जज ने केस को दोपहर बाद सुनने का फैसला किया। दोपहर बाद जब जज ने प्रबंधन से हाई कोर्ट की कार्रवाई पूछी तो सचिन ने बताया कि स्‍टे नहीं मिला। इस पर जज ने हमारी क्‍लेम स्‍टेटमेंट का जवाब मांगा। सचिन ने कहा कि हमारा वकील तो चंडीगढ़ में है, जवाब तो नहीं दे सकते। इतना सुनते ही जज ने कहा कि एक घंटे बाद आ जाना और आदेश पढ़ लेना। आखिर जज ने दोपहर बाद करीब 3.40 बजे अपना फैसला सुना ही दिया।
लगभग ढाई पेज के फैसले में जज ने केस के हर पहलू को लेकर बातें स्‍पष्‍ट की हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से लेकर सरकारी पत्र और फिर सरकार की तरफ से भेजी गई संशोधित अर्जी तक का हवाला देकर प्रबंधन को जवाब देने के लिए दिए अवसरों का भी जिक्र किया गया है। उसमें प्रबंधन के वकील द्वारा पिछली तारीख को दिए बयान को भी हाईलाइट किया गया है कि अगली तारीख पर जवाब न देने पर प्रबंधन का बचाव पेश करने का अवसर खत्‍म हो जाएगा और इस पर उनको कोई आपत्ति नहीं होगी। अब अगली तारीख 5 जुलाई 2018 की तय हुई है, इस दिन कर्मचारी पक्ष की गवाही होगी। दैनिक जागरण हिसार के महाप्रबंधक कोर्टरुम में उपस्थित नही हुए, लेकिन बचते बचाते परिसर में नज़र जरूर आये।

देश भर के मजीठिया क्रांतिकारियों को एक और राहत


इलाहाबाद हाईकोर्ट ने  गुजरात हाईकोर्ट के ऑर्डर को मानने से किया इनकार

अमर उजाला की हाईकोर्ट में सबसे बड़ी हार

मजीठिया वेज बोर्ड से बचने के हर संभव प्रयास में जुटे अमर उजाला प्रबंधन को इस मामले में अब तक की सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अमर उजाला की उस रिट पिटीशन को खारिज कर दिया है जिसमें कंपनी प्रबंधन ने डिप्टी लेबर कमिश्नर मुरादाबाद द्वारा 17(2) में लेबर कोर्ट बरेली को किया गया रेफ्रेंस डीएलसी के क्षेत्राधिकार से बाहर का मामला बताते हुए इसे गलत ठहराया था।

गुजरात हाईकोर्ट ने दिव्य भास्कर काॅर्प के मामले में जो राहत दी थी उसी का हवाला देते हुए अमर उजाला ने इस केस में अपनी पूरी ताकत झोंक दी ताकि रेफ्रेंस को खारिज कराया जा सके। इसके लिए अमर उजाला प्रबंधन ने हाईकोर्ट के दो वकीलों के साथ सुप्रीम कोर्ट के भी दो वकीलों को जिरह के लिए खड़ा किया लेकिन राज्य सरकार के विद्वान एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल की दलीलों के सामने अमर उजाला के वकीलों को एक नहीं चली। मनीष गोयल ने इस मामले पर वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट 1955 और सुप्रीम कोर्ट के कई अहम जजमेंट का हवाला देते हुए एक्ट की धारा-17 का बारीकी से उल्लेख किया। न्यायाधीश जस्टिस मनोज मिश्र संतुष्ठ हुए। उन्होंने फैसला सरकार और कर्मचारियों के हित में किया। कर्मचारियों के लिए ये बड़ी जीत है। इस आदेश के बाद उत्तर प्रदेश में मजीठिया मिलने का रास्ता साफ हो गया है। साथ ही अन्य राज्यों के कर्मचारियों को भी इस आदेश का लाभ मिलेगा।

प्रकरण समझिए और जानिए क्या थी अमर उजाला प्रबंधन की मांग-
अमर उजाला मुरादाबाद में तैनात सीनियर सब एडिटर ने सेक्शन 17(1) में डीएलसी मुरादाबाद के समक्ष क्लेम लगाया। दोनो पक्षों के बीच कैटेगरी का विवाद उठा। राज्य सरकार से प्राप्त शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए डीएलसी ने 17(2) के तहत क्लेम श्रम न्यायाल बरेली को रेफर कर दिया। कंपनी प्रबंधन ने हाईकोर्ट में कहा कि डीएलसी सिर्फ 17(1) के तहत क्लेम की सुनवाई कर आरसी जारी करने की प्रक्रिया निभा सकता है। 17(2) में क्लेम रेफर करना उसके क्षेत्राधिकार से बाहर है। दोनो पक्षों में यदि कोई विवाद है तो क्लेमकर्ता या डीएलसी इस मामले को पहले राज्य सरकार के पास भेजेंगे। राज्य सरकार फैसला लेगी फिर क्लेम लेबर कोट रेफर किया जाएगा। इसके लिए गुजरात हाईकोर्ट के दिव्य भास्कर समेत कई मामलों का भी हवाला दिया गया।

सरकारी वकीलों ने पेश की जोरदार दलील-
राज्य सरकार के विद्वान एडिशनल एडवोकेट जनरल मनीष गोयल ने न्यायालय को बताया कि एक्ट की सेक्शन-17 के प्रावधानों को सिंगल स्कीम के रूप में गठित किया गया है। 17(1) में कर्मचारी बकाया राशि के भुगतान के लिए राज्य सरकार या राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट प्राधिकरण (लेबर कमिश्नर, डिप्टी लेबर कमिश्नर या अन्य जो भी) के समक्ष क्लेम लगाएगा। संतुष्ट होने पर राज्य सरकार आरसी जारी करने की प्रक्रिया चलाएगी। 17(1) की सुनवाई के दौरान विवाद होने पर वही अधिकारी 17(2) में क्लेम लेबर कोर्ट रेफर करेगा। 17(3) में लेबर कोर्ट अपना आदेश राज्य सरकार यानि उसी अधिकारी को फाॅरवर्ड करेगी। यदि बकाया राशि है तो पुनः 17(1) के तहत आरसी की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। मनीष गोयल ने हाईकोर्ट को यह भी बताया कि उत्तर प्रदेश के राज्यपाल द्वारा 12 नवंबर 2014 को जारी अधिसूचना में डीएलसी को ये अधिकार प्राप्त हैं कि वह सेक्शन-17 के सब-सेक्शन (1) में आरसी जारी कर सके और सब-सेक्शन (2) में लेबर कोर्ट को क्लेम रेफर कर सके।फिलहाल जिस जिस कम्पनी के मालिकान गुजरात हाईकोर्ट का आर्डर लगाकर ये दावा कर रहे हैं कि डीएलसी को17 (2) में मामले को लेबरकोर्ट में भेजने का पावर नही है उनको अमर उजाला का कर्मचारियों के पक्ष में आया ये आर्डर एक चपत है।

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