Sunday 8 January 2017

मजीठिया: इन जागरणकर्मियों की नींद कब टूटेगी

दिल्‍ली में डीएलसी केनिन लेन में रिकवरी का केस लगाने वाले जागरण कर्मियों की नींद जाने कब टूटेगी। यहां बात हो रही है दिल्‍ली में कार्यरत जागरण कर्मियों (धनंजय कुमार, अभिषेक रावत नई दुनिया (जागरण प्रकाशन) एवं दलीप, ज्‍योति धमीजा व रामजीवन गुप्‍ता) की।

सुप्रीम कोर्ट में जमा दिल्‍ली लेबर कमीश्‍नर की रिपोर्ट में इनके आगे स्‍पष्‍ट लिखा है कि As the matter of dainik jagran v/s vikas chowdhary & anr. Is sub-juidce. No. further proceeding has been done. (इसका मतलब है- दैनिक जागरण v/s विकास चौधरी एवं अन्‍य का मामला न्‍यायालय के विचाराधीन है, इसलिए आगे की कार्रवाई नहीं की जा रही है)। यहां न्‍यायालय का मतलब दिल्‍ली हाईकोर्ट है।

मालूम हो कि विकास चौधरी केस में जागरण नोएडा में कार्यरत 200 से अधिक कर्मचारी शामिल हैं। जिन्‍होंने दिल्‍ली डीएलसी में डब्‍ल्‍यूजेए (WJA) के रुल 36 के तहत रिकवरी लगाई थी और केनिन लेन के डीएलसी ने रुल 36 के तहत न्‍याय अधिकार क्षेञ को लेकर इनके पक्ष में फैसला दिया था। उस फैसले पर जागरण प्रबंधन ने 6 जून 2016 को दिल्‍ली हाईकोर्ट से स्‍टे ले लिया था। जिसपर चार सुनवाई हो चुकी है और स्‍टे बरकरार है। अगली सुनवाई फरवरी को है। प्रबंधन ने 6 जून के स्‍टे के आधार पर डीएलसी के समक्ष आधी अधूरी जानकारी देकर इन साथियों की कार्रवाई को भी रुकवा दिया है।

बताया जा रहा है कि इन साथियों को कई बार समझाया जा चुका है कि उनके ऊपर इस स्‍टे का कोई असर नहीं हो सकता है और WJA और लेबर के किसी जानकार वकील की मदद से अपना पक्ष रखकर अपनी कार्रवाई को आगे बढ़ाए। क्‍योंकि केनिन लेन के डीएलसी का आर्डर जिस पर स्‍टे है में भी स्‍पष्‍ट लिखा है कि नोएडा में कार्यरत इन कर्मियों ने रुल 36 के तहत इस समक्ष प्राधिकरण के यहां रिकवरी लगाई है।

जिसका सीधा सा मतलब है कि यह नोएडा से आए कर्मियों के लिए आर्डर दिया गया था, जिस पर स्‍टे लगा है, ना कि दिल्‍ली में कार्यरत कर्मियों के लिए।

आप सब यह तो जानते है कि प्रबंधन हर समय कुटील चालें चलता रहता है, जिससे केस लंबा खींच जाए। ऐसी ही कुछ कुटील चाल चल कर उन्‍होंने दिल्‍ली में कार्यरत इन साथियों को भी स्‍टे के चक्रव्‍यूह में फंसा लिया है। इसलिए लंबे समय से उनकी कोई डेट भी नहीं लगी है। जनाब अब तो नींद से जाग जाएं, आपमें और स्‍टे में फंसे कर्मियों में जमीन आसमान का अंतर है, क्‍योंकि आप दिल्ली में जिस जगह कार्यरत हैं वहां का न्‍याय क्षेञाधिकार केनिन लेन डीएलसी ही है। इसलिए ही तो आपने वहां रिकवरी लगाई थी, ना कि दिल्‍ली के पूसा रोड, अशोक विहार, विश्‍वास नगर में।

आपको यह भी ध्‍यान रखना होगा कि आपके बाद रिकवरी लगाने वाले मप्र के कई साथियों की रिकवरी कट भी चुकी है और कई की कटने की तैयारी है। वहीं, आपके अपने ही संस्‍थान के दो साथी जिनके रिकवरी केस पूसा रोड और विश्‍वकर्मा नगर में चल रहे थे, उनको भी प्रबंधन ने स्‍टे के चक्‍कर में फंसाने की कोशिश की थी, परंतु उन्‍होंने वकील की मदद से उस चक्रव्‍यूह को तोड़ दिया। अब उनका केस लेबर कोर्ट में लग गया है और वहां सुनवाई की तारीखें लग रही है।

सुप्रीम कोर्ट खुद रिकवरी के केसों को जल्‍दी से निपटाने के निर्देश दे रहा है और आप अपने केस को आधारहीन स्‍टे के फेर में फंसा कर बैठे हैं। कहीं यह न हो दूसरों के चक्‍कर में आप अपने केस का नुकसान कर दें।

(दिल्‍ली के एक पञकार साथी से प्राप्‍त तथ्‍यों पर आधारित)  


http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/01/16f-20.html

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