Friday 6 March 2020

आरोपी पत्रकारों के खिलाफ खबर क्यों छिपाते हैं अखबार?


- अमर उजाला का ऋषिकेश ब्यूरो प्रभारी रंगदारी में गिरफ्तार
- अक्सर मुख्यधारा का मीडिया इस जिम्मेदारी से बच जाता है

ऋषिकेश पुलिस ने कल अमर उजाला के एक पत्रकार महेंद्र यादव को गिरफ्तार किया। वह रंगदारी मांगने के आरोप में फरार था। पुलिस ने भी उसे वीआईपी ट्रीटमेंट दिया और जब अदालत में इस्तागासा डाला गया तो ही केस दर्ज किया। मैं पत्रकार के दोषी या निर्दोष होने की बात पर नहीं जा रहा। हो सकता है कि उसे फंसाया गया हो। लेकिन यदि कोई आरोपी है तो एक समान व्यवहार होना चाहिए। इस मामले में मुख्यधारा के अखबार चुप्पी साध लेते हैं।

ऐसा ही एक उदाहरण मेरे साथ भी हुआ। 2015 की बात है। मैं सहारा में गढ़गांव-कुमाऊं प्रभारी के तौर पर काम कर रहा था। सूत्रों के मुताबिक हमारे अखबार का अल्मोड़ा का एक साथी दिल्ली से आए सहारा के एक बड़े अधिकारी को खुश करने के लिए देह व्यापार में लिप्त एक नाबालिग लड़की को लेकर देहरादून आ रहा था। उसकी किस्मत खराब थी कि हल्द्वानी बस अड्डे पर लड़की को पुलिस ने पकड़ लिया। साथ में महाशय भी धरे गए। मेरे तत्कालीन संपादक ने मुझे आदेश दिए कि खबर नहीं जाएगी, लेकिन मैं ठहरा विद्रोही। मैंने तान कर तीन कॉलम खबर लगा दी, बकायदा एक जगह नाम भी दे दिया।
फिर क्या था दूसरे दिन हंगामा ही हंगामा। फिर जैसा कि होता ही था मुझे संपादक जी ने एक और शो कॉज लेटर जारी कर दिया। इससे भी मजेदार बात यह है कि उन दिनों हमें सहारा में सैलरी नहीं मिल रही थी, लेकिन उक्त महाशय जी को जेल से बाहर आते ही 75 हजार रुपये की तुरंत अदायगी कर दी गई। साफ है कि बिना मिलीभगत के कुछ नहीं होता। हो सकता है कि महेंद्र अपने किसी अधिकारी के लिए वसूली कर रहा हो, या ऐ भी हो सकता है कि बेकसूर हो।
एक ओर उदाहरण है, सीएम हरीश रावत का स्टिंग हुआ था। शाम की मिटिंग में ब्यूरो के रिपोर्टर और डेस्क इंचार्ज की बैठक में तय होता है कि कौन सी खबर पेज वन पर जाएगी। स्टिंग बड़ा मामला था। बैठक में ब्यूरो के रिपोर्टर ने कहा, स्टिंग संदिग्ध पत्रकार ने किया है, झूठा है, इसलिए इस खबर को भीतर के पेजों में दें, लेकिन मैंने विरोध किया कि खबर पेज वन की है। संपादक जी में डिसिजन पावर की कमी थी तो सिंगल कॉलम पेज वन पर देकर बाकी खबर शेष बन गई। खबरों की इतनी महान समझ और पक्षपात करने वाले वही रिपोर्टर आज संपादक का काम संभाल रहे हैं। मेरा कहने का अर्थ यह है कि खबर-खबर होती है। उसे छापना या दिखाना चाहिए।
[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

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