Saturday 30 November 2019

मोदी सरकार ने लोकसभा में पेश किया मजदूर विरोधी बिल, विपक्ष ने किया विरोध

नई दिल्ली। सरकार ने बृहस्‍पतिवार को लोकसभा में 'औद्योगिक संबंध संहिता, 2019' और उससे संबंधित एक विधेयक पेश किया जिसमें श्रमिक संघ, औद्योगिक प्रतिष्ठानों या उपक्रमों में रोजगार की शर्तें, औद्योगिक विवादों की जांच तथा निपटारे एवं उनसे संबंधित विषयों के कानूनों को मिलाने का और संशोधन करने का प्रावधान है। सदन में श्रम और रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने इस संबंध में विधेयक पेश किया।
हालांकि, इससे पहले विधेयक पेश किए जाने का विरोध करते हुए आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन, तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय और कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने उक्त संहिता को कर्मचारी विरोधी बताते हुए सरकार से इसे श्रम पर संसदीय स्थायी समिति को भेजने की मांग की। प्रेमचंद्रन ने कहा कि इसमें राज्यों से जरूरी परामर्श नहीं किया गया है। सौगत राय ने कहा कि किसी मजदूर संगठन ने इस संहिता की मांग नहीं की थी और उद्योग संगठन चाहते थे, इसलिए सरकार इसे लेकर आई है। उन्होंने इसे 'श्रमिक विरोधी' बताते हुए कहा कि इसे श्रम पर स्थाई समिति को भेजा जाना चाहिए। चौधरी ने भी इसे 'श्रमिक विरोधी' बताते हुए स्थाई समिति को भेजने की मांग की।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि सदस्यों ने जो भी कारण बताए हैं, वह विधेयक के विरोध में हैं और चर्चा में रखे जाने चाहिए। विधेयक पेश किए जाने के विरोध में कोई कारण सदस्य नहीं बता रहे। संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि सदस्यों ने एक भी कारण ऐसा नहीं बताया है जिससे साबित हो कि इस सदन को विधेयक लाने का विधायी अधिकार नहीं है।
भाकपा के के. सुब्बारायन और माकपा के अब्दुल मजीद आरिफ तथा एस वेंकटेशन ने भी विधेयक पेश किए जाने के विरोध में बोलने की अनुमति मांगी लेकिन लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि पूर्व में नोटिस नहीं दिया गया। सदस्य चर्चा के दौरान विस्तार से अपनी बात रख सकते हैं। बात रखने की अनुमति नहीं मिलने पर वामदलों के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया।
संतोष गंगवार ने कहा कि सरकार लंबी चर्चा और श्रम संगठनों तथा सभी राज्य सरकारों से परामर्श के बाद औद्योगिक संबंध संहिता लेकर आई है। इसमें कोई भी प्रावधान मजदूरों के हक के खिलाफ नहीं है। इसके बाद उन्होंने 'औद्योगिक संबंध संहिता, 2019' को सदन में पेश किया।

क्‍या है बिल में
लोकसभा में पेश बिल के विभिन्न प्रावधानों में औद्योगिक संस्थानों में हड़ताल करने को कठिन बनाया गया है, जबकि कर्मचारियों की बर्खास्तगी को आसान बनाया गया इस विधेयक में श्रमिकों की एक नई श्रेणी बनाई गई है फिक्स्ड टर्म एंप्लॉयमेंट, यानी एक नियत अवधि के लिए रोजगार। इस अवधि के समाप्त होने पर कामगार का रोजगार अपने आप खत्म हो जाएगा। इसके जरिए औद्योगिक संस्थान ठेकेदार के जरिए श्रमिकों को रोजगार देने के बजाय अब खुद ही ठेके पर लोगों को रोजगार दे सकेंगे। इस श्रेणी के कामगारों को तनख्वाह और सुविधाएं नियमित कर्मचारियों जैसी ही मिलेंगी। इसी तरह किसी भी संस्थान में श्रमिक संघ को तभी मान्यता मिलेगी जब उस संस्थान के कम से कम 75 प्रतिशत कामगारों का समर्थन उस संघ को हो। इससे पहले यह सीमा 66 प्रतिशत थी। नए विधेयक  के तहत सामूहिक आकस्मिक अवकाश को हड़ताल की संज्ञा दी जाएगी और हड़ताल करने से पहले कम से कम 14 दिन का नोटिस देना होगा।
अब नौकरी जाने की सूरत में किसी भी कर्मचारी को उस संस्थान में किए गए हर वर्ष काम के लिए 15 दिन के वेतन  का ही मुआवजा मिलेगा। इससे पहले के विधेयक में हर वर्ष के काम के बदले 45 दिन के मुआवजे का प्रावधान था। नौकरी से निकाले जा रहे कर्मचारी को नए कौशल अर्जित करने का मौका मिलेगा जिससे उसे दोबारा रोजगार मिल सके। इसका खर्च पुराना संस्थान ही उठाएगा।
इस बिल के कानून बनने पर ट्रेड यूनियन एक्ट 1926, इंडस्ट्रियल एंप्लॉयमेंट एक्ट 1946, और इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट 1947 अपने आप खत्म हो जाएंगे। इस विधेयक को लाने का उद्देश्य भारत में काम करने की सुगमता यानी ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंकिंग बेहतर करना है।
श्रम सुधारों को तेज करने के लिए श्रम मंत्रालय ने 44 श्रम कानूनों को चार कोर्ट में बांटने का जिम्मा उठाया था - वेतन औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और स्वास्थ्य, सुरक्षा और काम करने की स्थितियां। इनमें से वेतन संबंधी श्रम कोड को संसद ने अगस्त में ही पारित कर दिया था जबकि स्वास्थ्य सुरक्षा और काम करने की स्थितियां संबंधी विधेयक श्रम संबंधी संसदीय समिति के हवाले है।

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