Thursday 12 April 2018

दिल्ली सरकार का दैनिक जागरण पर 'वार', पीड़ित पत्रकारों ने दिया नैतिक समर्थन

आम आदमी पार्टी सरकार के विधायकों ने इस सत्र के दौरान दिल्ली विधानसभा में दैनिक जागरण में प्रकाशित कुछ खबरों पर आपत्ति जताई और इस मामले को विधानसभा की विशेषाधिकार समिति को सौंपने की मांग की, जिसके बाद इस मामले को विधानसभा अध्यक्ष ने विशेषाधिकार समिति को सौंप दिया है। हालांकि इससे नाराज होकर विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध किया और इसे लोकतंत्र की हत्या बताया। इस बीच, मजीठिया वेजबोर्ड को लेकर अपने हक की लड़ाई लड़ रहे पीड़ित अखबार कर्मियों ने इस मामले में दिल्ली सरकार को अपना नैतिक समर्थन दिया है। उन्होंने उल्टे भाजपा और कांग्रेस के नेताओ को कटघरे में खड़ा करते हुए पूछा कि जब अखबार मालिक अपने कर्मियों को हक़ मारते है और उन्हें अपना हक मांगने पर सजा के तौर पर नौकरी से निकाल दिया जाता है या प्रताड़ित किया जाता है तब इनकी न्यायप्रिय आवाज कहां खो जाती है।
आम आदमी पार्टी के नाराज विधायक कपिल मिश्रा इसका जोरदार ढंग से विरोध किया। उन्होंने न केवल इसे लोकतंत्र की हत्या बताया, बल्कि कहा कि अध्यक्ष ने उनकी बात को अनसुना कर दिया, क्योंकि इससे पहले सदन में इस तरह के प्रस्ताव की सुगबुगाहट का पता लगने पर विधानसभा अध्यक्ष को उन्होंने पत्र लिखा था और इस तरह के प्रस्ताव को सदन में न लाए जाने की मांग की थी।
सदन में दैनिक जागरण के खिलाफ मामला विशेषाधिकार समिति को सौंपे जाने पर कपिल मिश्रा ने कहा कि दैनिक जागरण अखबार के खिलाफ दिल्ली विधानसभा में अवमानना का प्रस्ताव जायज नहीं है। उन्‍होंने कहा कि इस हरकत से आज विधानसभा ने अपना कद बहुत छोटा कर लिया। ऐसा प्रस्ताव सीधे सीधे अखबार और पत्रकार और मीडिया की आजादी पर हमला है, डराने की कोशिश है। शर्मनाक है। उन्होंने आगे कहा कि पत्रकार तो सरकार के खिलाफ बोलते ही हैं। लेकिन जब सरकार पत्रकार और अखबार के खिलाफ बोलने लगे और चुप कराने की कोशिश करने लगे तो यही उस पत्रकार और अखबार की निष्पक्षता का सबसे बड़ा मैडल है।
वहीं दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि यह लोकतंत्र ही हत्या है। यह सरकार प्रेस की आजादी पर हमला कर रही है। दिल्ली में आपातकाल की तरह हालात हैं। दिल्ली में ऐसा पहली बार हुआ है जब निर्भीक पत्रकारिता को कुचलने की कोशिश की जा रही है। प्रेस की आजादी पर हो रहे हमले को लेकर राष्ट्रपति को भी हस्तक्षेप करना चाहिए।
इसके अलावा भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने भी इस मामले पर अपनी बात रखी और कहा कि केजरीवाल सरकार प्रेस को दबाने की कोशिश कर रही है, जोकि लोकतंत्र पर हमला है। सत्ता में आने के तुरंत बाद आम आदमी पार्टी की सरकार ने पहले सचिवालय में पत्रकारों को रोकने का प्रयास किया, फिर निर्देश पत्र निकाला, जिसे अदालत की आपत्ति के बाद वापस लिया गया। यह सरकार शुरू से प्रेस की आजादी का विरोध करने वाली है।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन ने भी इस मामले को लेकर केजरीवाल सरकार को आड़े हाथों लिया और कहा कि दिल्ली सरकार में बैठे लोग अखबार में अपने मन माफिक खबरें छपवाना चाहते हैं। सरकार ने प्रेस की आजादी पर हमला किया है। हम इसके खिलाफ एडिटर्स गिल्ड और कोर्ट में भी जाएंगे।
वहीं, पीड़ित जागरण कर्मचारियों का नेतृत्व करने वाले एक पत्रकार ने कहां, आज मीडिया का पूरी तरह से व्यवसायीकरण हो गया है और ईमानदार संपादकों की जगह अखबार मालिकों ने खुद ले ली है। मालिकों के लिए जनहित से ज्यादा जरूरी धनहित होता जा रहा है। इसलिए आज के अखबार जनसमस्याओं की जगह किसी पार्टी या व्यक्ति विशेष की महिमामंडन से भरे होते हैं। जब उन्होने ही अपनी स्वतंत्रता धनकुबेरो और नेताओं के आगे गिरवी रख दी है, तब उनकी स्वतंत्रता की बात करना बेमानी लगती है।
वहीं, एक अन्य कर्मी ने कहा, ये वही दैनिक जागरण है जिसने नोएडा, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश के अपने लगभग 350 कर्मचारियों को 2 अक्टूबर 2015 को एक ही झटके में इसलिए निकाल दिया था क्योंकि उन्होंने शांतिपूर्ण तरीके से अपने हक के आवाज उठाई थी। ये हक उन्हें सरकार ने मजीठिया वेजबोर्ड के रूप में दिया था और जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी मोहर लगा दी थी। ये हैे बड़ी बड़ी आदर्शवाद की बात करने वाले इन मीडिया घरानों का सच। मीडिया घरानों की धनलोलुपता और हर समय पत्रकारों की नोकरी पर लटकती तलवार के चलते आज मीडिया की ईमानदारी पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहा है।
भास्कर के एक बर्खास्त कर्मी ने कहा कि आज लगभग 20 हजार अखबार कर्मी सड़क पर है, इनमें से कईयो के बच्चों का स्कूल छूट गया है। कई के सामने फांके मारने की नौबत आ गई है, परन्तु सालों तक वफादारी से काम करने वाले इन कर्मचारियों के प्रति  निष्ठुर बना बैठा है प्रबंधन। वहीँ pmo तक भी कई बार अपनी व्यथा पहुंचा चुके है, परन्तु अखबार मालिकों के प्रभाव के चलते वहाँ से भी नाउम्मीदी ही हाथ लगती है। पूरे देश मे केवल मात्र केजरीवाल सरकार ही ऐसी सरकार थी जिसने अखबार मालिकों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चल रहे अवमानना केस में सही रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें किस तरह से कर्मचारियों का हक मारा जा रहा है और उनका शोषण किया जा रहा है इसका उल्लेख था। तब से ही केजरीवाल सरकार इन मीडिया घरानों के निशाने पर थी। केजरीवाल सरकार के अलावा किस भी पार्टी की सरकार की रिपोर्ट लीपापोती के अलावा कुछ नहीं थी, ताकि अखबार मालिक सुप्रीम कोर्ट की अवमानना से बच जाए।
वहीं, जागरण के एक अन्य नेतृत्वकारी ने कहा कि पत्रकारों का हक़ मारा गया तब प्रेस की स्वतंत्रता के भाजपाइयों और कांग्रेसियों के ये उदात्त विचार कहाँ थे? कांग्रेस के दो महान वकील साहेबान जो की सांसद भी हैं, बाकायदा कर्मचारियों के वाजिब हितों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में मालिकों की वकालत कर रहे थे। सारी नैतिकता इन्हें तभी दिखती है जब कोई दूसरी सरकार कुछ करती है?

(इनपुट: समाचार4मीडिया)

No comments:

Post a Comment