अभी यह कानून सिर्फ समाचार पत्रों और प्रिंट मीडिया के क्षेत्र में ही लागू है
केंद्र ने इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया पत्रकारों को भी श्रमजीवी पत्रकार
अधिनियम के दायरे में लाने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। केंद्रीय श्रम एवं
रोजगार मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने आज यह बात कही।
उन्होंने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो एनडीए सरकार श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम में
संशोधन करेगी ताकि इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया को भी इसके दायरे में लाया जा
सके।
उन्होंने कहा, ‘हम श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम के तहत डिजिटल
मीडिया समेत सभी इलेक्ट्रॉनिक चैनलों को लाने के लिए कदम उठा रहे हैं। अगर जरूरत
पड़ी तो हम अधिनियम में संशोधन करेंगे।’
दत्तात्रेय ने बताया कि इस प्रस्ताव को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को भेज
दिया गया है जिससे इस पर टिप्पणी मिल सके।
कोच्चि में दत्तात्रेय बीजेपी एर्णाकुलम लोकसभा क्षेत्र के नेतृत्व सम्मेलन
में हिस्सा लेने के लिए गए थे।
कौन हैं श्रमजीवी पत्रकार?
श्रमजीवी पत्रकार कानून, 1955 के अनुसार श्रमजीवी पत्रकार वह है जिसका
मुख्य व्यवसाय पत्रकारिता हो और वह किसी समाचारपत्र में या उसके सम्बन्ध में
पत्रकार की हैसियत से नौकरी करता हो।
इसके तहत एडिटर, कंटेंट राइटर, न्यूज एडिटर, सब-एडिटर, फीचर लेखक, कॉपी टेस्टर, रिपोर्टर, कौरेसपोंडेंट, कार्टूनिस्ट, संचार फोटोग्राफर और प्रूफरीडर आते हैं।
अदालतों के फैसलों के अनुसार पत्रों में काम करनेवाले उर्दू-फारसी के कातिब, रेखा-चित्रकार
और संदर्भ-सहायक भी श्रमजीवी पत्रकार हैं।
कई पत्रों के लिए तथा अंशकालिक कार्य करनेवाला पत्रकार भी श्रमजीवी पत्रकार है
यदि उसकी आजीविका का मुख्य साधन अर्थात उसका मुख्य व्यवसाय पत्रकारिता है।
इस कानून से पहले पत्रकारों के काम के घंटे, शर्तों, भत्ते और मुआवजे का कोई निर्धारण नहीं था।
हालांकि अभी यह कानून सिर्फ समाचार पत्रों और प्रिंट मीडिया के क्षेत्र में ही
लागू है।
इलेक्ट्रोनिक और डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण लंबे समय से मीडिया के
इन क्षेत्रों को भी श्रमजीवी पत्रकार कानून, 1955 के तहत लाने की मांग की जाती रही है।
(साभार: भाषा)
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