मतदाताओं को वोट की कीमत समझाने वाले पत्रकार साथियों अब आपको भी अपने वोट की
कीमत समझनी चाहिए। नौकरी में रहते हुए हमारी मजबूरी होती है कि हम संस्थान की
नीतियों के विरुद़ध नहीं लिख सकते हैं। ऐसे में हम कई बार जमीनी हकीकत को भी
नजरअंदाज कर चुनाव के वक्त किसी एक ही पार्टी के पक्ष में लगातार रिपोर्टिंग करते
हैं, क्योंकि हमारे
अपने संस्थान के उस राजनीतिक पार्टी से कोई न कोई हित जुड़े हुए होते हैं। हम पाठक
को वो ही पढ़ाना या दिखाना चाहते हैं जो हमारा संस्थान चाहता है, ना कि पाठक या
दर्शक। ये हमारी पेशागत नहीं पापी पेट की मजबूरी होती है। ऐसे कई कारणों से ही ये मीडिया
मालिक हमारा शोषण करते हैं और हम उर्फ तक भी नहीं कर पाते। क्योंकि हम जानते हैं
कि ताकतवर मीडिया मालिकों के प्रभाव में प्रशासन हमारी नहीं सुनने वाला। यही कारण
है कि आज मजीठिया वेजबोर्ड मांगने वाले देशभर के हमारे दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, राजस्थान
पत्रिका आदि के कई हजार साथियों को या तो नौकरी से निकाल दिया गया या उन्हें
तरह-तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है। हम अभी तक पूरी तरह से एकजुट नहीं हो पाए हैं
इसलिए हम अखबार मालिकों के दमन चक्र का लगातार शिकार हो रहे हैं।
हाल ही में नोएडा में देश के नामी अखबारों में शामिल हिंदुस्तान ने 15-16
मशीन के साथियों का जबरन इस्तीफा ले लिया और ऐसी सूचनाएं आ रही हैं कई अन्य को
भी जबरन इस्तीफा देने का दवाब बनाया जा रहा है और कहा जा रहा है कि खुद इस्तीफा
नहीं दिया तो हम खुद तुम्हें निकाल कर तुम्हारी गेजुय्टी आदि भी रोक देंगे। ऐसी
ही एक अन्य सूचना आई है कि दैनिक जागरण के उच्चाधिकारियों ने भोपाल में
कर्मचारियों के साथ बैठक कर नई दुनिया के कर्मचारियों पर केस वापस लेने का दबाव
बनाया और जो साथी मुखर हुआ उसे बैठक से बाहर जाने का आदेश दिया। भोपाल में ही डेरा
जमाए अधिकारी ये भी धमकी दे रहे हैं कि आपने ऐसा नहीं किया तो हम भोपाल की
प्रिटिंग यूनिट को ही बंद कर देंगे।
यही हाल देश के अन्य नामी गिरामी अखबारों का भी है, जो लगातार आपके
हकों पर डाका डाल रहे हैं या उसके लिए तरह तरह के प्रपंच रच रहे हैं। यहां ये भी
कहना चाहूंगा कि सरकारें हमारे लिए वेजबोर्ड तो बना देती हैं, परंतु
प्रभावशाली मीडिया मालिकों के कारण इसे पूरी तरह से लागू कराने में कोई दिलचस्पी
नहीं लेती। यदि वे चाहे तो क्या कुछ नहीं हो सकता, क्या अखबार मालिक सरकार से ऊपर हैं।
ऐसे कई उदाहरण हैं जहां अपने खिलाफ रिपोर्ट लिखने वाले कई पत्रकारों की नौकरी
केंद्र व कई राज्यों की सरकारों ने समय समय पर खा ली। जब वे अपने खिलाफ लिखने
वाले पत्रकार की नौकरी खा सकते हैं तो क्या अपनी ताकत का प्रयोग कर पत्रकारों का
शोषण नहीं रुकवा सकते। रुकवा सकते हैं, परंतु ऐसा नहीं होता कारण आप भी जानते हैं।
साथियों जब तक हम एकजुट नहीं होंगे, तब तक हमारा शोषण इसी तरह होता रहेगा। मैं
दिल्ली निवासी तो नहीं हूं परंतु इतना जानता हूं कि यहां हमारे साथियों की तादाद
बहुत अच्छी संख्या में है। यहां कुछ एक ऐसे पोलिंग बूथ भी हैं जहां वे अपने
परिजनों के वोटों के साथ एमसीडी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। आप को
बस इतना ही आंकलन करना है कि कौन सी पार्टी मीडिया धरानों की नाराजगी मोल लेकर
खुलकर पत्रकारों का पक्ष लेती है या पत्रकारों के पक्ष में अपने अधिकारों का
प्रयोग करते हुए कानून में कुछ अच्छे प्रावधान करती है। आखिरी में आप से इतना ही
कहना चाहूंगा कि मजीठिया के लिए संघर्षरत अपने हजारों साथियों का ध्यान रखते हुए
इस बार अपना व अपने परिवार के वोट का सही इस्तेमाल करें।
जय मजीठिया
रवि कुमार, मप्र
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