बस
अखबार निकलना चाहिए, पत्रकार चाहे मरते रहें
अखबार
के दफ्तरों का हाल इन दिनों कुछ ऐसा ही है। कोरोना काल में लगातार देशभर से इस तरह
के समाचार आए हैं कि फलां चैनल या फलां अखबार के संपादक ने जबरन पत्रकारों को
दफ्तर बुलाकर काम का दबाव बनाया। बाद में पूरा दफ्तर संक्रमण से प्रभावित हुआ। इस
समय नव दुनिया भोपाल के साथियों को जिस तरह से कोरोना ने अपनी चपेट में लिया है, उसके पीछे की कहानी का सच भी यही है कि
अखबार निकालने को पत्रकार साथियों की जान से ज्यादा तवज्जो दी गई। 20 से ज्यादा
पत्रकार साथी इस वक्त कोरोना पॉजिटिव हैं। धीरे-धीरे उनके परिवारों और उनसे जुडे़
रहे लोगों में भी कोरोना का संक्रमण फैल रहा है। आए दिन रिपोर्ट्स पॉजीटिव आ रही
हैं। भोपाल के प्रेस कॉम्प्लेक्स से लेकर इंदौर नव दुनिया के दफ्तर तक हड़कंप मचा
है।
मैं
इसमें से ज्यादातर लोगों को व्यक्तिगत रूप से जानता हूं। बीते एक सप्ताह से कुछ
लोगों से लगभग रेगुलर बात भी हो रही है। सबका एक स्वर से यह कहना है कि यदि वक्त
रहते अखबार प्रबंधन को सूचना दी होती और सरकार के दिशानिर्देशों को मान लिया गया
होता, तो
इतने लोगों की जान आज खतरे में नहीं होती।
आपको
शायद ये जानकर आश्चर्य होगा, लेकिन नव दुनिया भोपाल में बीते एक माह से हालात सामान्य नहीं चल रहे
थे। कोविड-19 के लिए बने दिशानिर्देशों का पालन नहीं हो पा रहा था। मसलन वर्क
फ्रॉम होम की अनदेखी कर लगातार उन्हें दफ्तर बुलाकर काम कराया गया। यदि किसी साथी
ने सामान्य बुखार या सर्दी जुकाम होने पर घर से काम करने की इच्छा जाहिर की, तो उसे दवा लेकर दफ्तर आने को कहा गया।
यहां तक कि जब पहली बार बुधवार को एक साथी की रिपोर्ट पॉजिटिव आई, तो प्रबंधन तक बात नहीं पहुंचाई गई। न
सरकारी निर्देशों को माना गया।
अखबार
के संपादक जी ने सबकी जान खतरे में डालकर अखबार निकालना ज्यादा जरूरी समझा। इसके
बाद जब छह लोगों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई तब संपादक जी का अमानवीय रवैया सबके सामने
आ गया। तय प्रोसीजर के तहत जब संक्रमित साथियों को गाड़ी इलाज के लिए लेने आई, तब भी शेष लोगों की जान बचाना आदरणीय
ने उचित नहीं समझा। यहां तक की बाकी सभी लोगों को कहा गया कि पूरे फ्लोर को
सेनेटाइज करवा दिया गया है। अब कोई खतरा नहीं है। आप सब दोबारा काम कर सकते हैं।
इस गैरजिम्मेदाराना कृत्य के लिए संपादक जी का विरोध भी किया गया। लेकिन उन्होंने
एक नहीं सुनी। सच यही है कि प्रबंधन के बाद अखबार के दफ्तर में संपादक की चलती है।
शायद यही कारण है कि लोगों को मजबूरी में काम करना पड़ा और एक सप्ताह के अंदर ही
शुक्रवार-शनिवार आते-आते कब संक्रमण बढ़ा, तो एमपी सरकार के गृह मंत्री नरोत्तम
मिश्रा ने दफ्तर को सील करने के आदेश दिए। बावजूद इसके दफ्तर सील कराने में समय
लगाया गया। यह सब होते-होते पूरा फ्लोर और अखबार के कई लोग संक्रमण की चपेट में आ
गए हैं। अब यह आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है।
एक
व्यक्ति की लापरवाही ने पूरे पत्रकार साथियों और समाज को खतरे में डाल दिया है। आज
पूरा प्रेस कॉम्प्लेक्स तब्लीगी जमात का मरकज बना हुआ है। बावजूद इसके सबसे बड़ी
दुविधा यह है कि जिनके ऊपर यह सब गुजर रहा है, वो अपनी पीड़ा किसी से खुलकर कह भी नहीं
सकते हैं। इन पत्रकार साथियों के परिवारों में उनकी पत्नियों सहित उनके छोटे-छोटे
बच्चे भी हैं। आप खुद ही सोचिए दो से तीन साल के बच्चे/बच्ची इस महामारी से कैसे
डील करेंगे। ऐसे और बहुत से सवाल हैं, जिनसे पत्रकार साथी और उनके परिवार इन
दिनों अस्पताल में जूझ रहे हैं।
-दीपक गौतम
[नोट: इसे किसी के व्यक्तिगत विरोध के तौर पर नहीं बल्कि इंसानी जिंदगियों को खतरे में डाल देने वाले एक गैर जिम्मेदाराना रवैये के रूप में देखें तो बेहतर होगा। यह उस व्यवस्था का विरोध है, जो हर कीमत पर बस काम लेना चाहती है। ]
[साभार: bhadas4media.com]
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