संदीप राय बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
मजीठिया वेजबोर्ड को लागू करने के विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अख़बार मालिकों
को 'विलफ़ुल
डिफॉल्टर' यानी जानबूझ कर
अवमानना करने वाला नहीं माना।
सोमवार, 19 जून 2017 को फैसला देते हुए कोर्ट ने कर्मचारियों की ओर से दायर अवमानना
याचिका को खारिज कर दिया, लेकिन साथ ही वेजबोर्ड की सिफ़ारिशों को लागू
करने के लिए अख़बार समूहों और समाचार एजेंसियों को एक और मौका दिया।
कर्मचारी इसे अपने हक़ में बड़ा फैसला मान रहे हैं, जबकि इस मामले
में पैरवी करने वाले दोनों पक्षों का वकील इसे संतुलित फैसला मान रहे हैं।
आइए पांच बिंदुओं में जानते हैं कि ताजा फैसला क्या है और इसमें कर्मचारियों
और अख़बार समूहों के मालिकों के लिए क्या आदेश दिए गए हैं।
कर्मचारियों के लिए क्या हैं मायने?
फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कांट्रैक्चुअल कर्मचारी, 20-जे और
वैरिएबल पे को स्पष्ट करते हुए कहा है कि संस्थान में नियुक्त स्थायी और अस्थायी
कर्मचारियों को समान रूप से नये वेतनमान का लाभ मिलना चाहिए।
मजीठिया वेजबोर्ड की सिफ़ारिशों में 20-जे एक विवादास्पद धारा रही है जिसमें
संस्थान और कर्मचारियों के समझौते पर आधारित वेतन देने की बात कही गई थी।
कर्मचारियों का कहना है कि इसकी आड़ में संस्थान नया वेतनमान लागू करने से
बचते रहे हैं, कई संस्थानों ने इस बावत मौजूदा वेतन पर सहमति के हस्ताक्षर करवाकर सबूत के
तौर पर कोर्ट में इसे पेश भी किया।
लेकिन अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 20-जे के तहत केवल कर्मचारी
को लाभ की स्थिति में ही समझौता मान्य होगा यानी कम वेतन पर समझौता मान्य नहीं
होगा।
कोर्ट ने वैरियेबल पे (परिवर्तनीय वेतन) लागू करने का भी साफ निर्देश दिया है, इससे उन
संस्थानों के कर्मचारियों को फायदा होगा, जहां नया वेतनमान तो लागू हो गया है लेकिन
वैरिएबल पे को छोड़ दिया गया है।
क्या कहते हैं कर्मचारी?
दैनिक जागरण समूह के ख़िलाफ कोर्ट में जाने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक अशोक
राणा ने बीबीसी से कहा, "इस फैसले से कर्मचारियों के एक बड़े हिस्से
को फ़ायदा होने वाला है, लेकिन बहुत सारे कर्मचारी फिर से पुरानी
स्थिति में आ गए हैं।"
अशोक राणा के अनुसार, 'कोर्ट ने स्थायी और अनुबंध पर रखे गए
पत्रकारों के बीच कोई भेद मानने से इनकार किया है। इससे उन कर्मचारियों को फ़ायदा
होगा जहां वेतन सिफ़ारिशें लागू हुई हैं, लेकिन अनुबंध के कर्मचारियों को इससे अलग रखा
गया है, जैसे समाचार
एजेंसी पीटीआई या इंडियन एक्सप्रेस समूह।'
वो इस फैसले को कर्मचारियों की आंशिक जीत मानते हैं, "कोर्ट ने
भले ही मालिकों को विलफ़ुल डिफ़ाल्टर नहीं माना, हालांकि कोर्ट के सामने इसकी कई नज़ीर थी और
अवमानना का मामला खारिज कर दिया।"
दैनिक जागरण के कर्मचारियों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने वाले जाने
माने वरिष्ठ अधिवक्ता कोलिन गोंजाल्विस ने इसे 'कर्मचारियों के पक्ष में बड़ा फैसला' बताया है।
उन्होंने कहा, "कांट्रैक्चुअल कर्मचारियों, वैरिएबल पे और
20 जे- पर स्पष्ट आदेश कर्मचारियों के लिए बहुत बड़े फायदे की बात है।"
अख़बार समूहों पर क्या असर पड़ेगा?
इस मामले में दैनिक जागरण और टाइम्स ग्रुप की ओर से पैरवी कर चुके सुप्रीम
कोर्ट के वकील वीरेंद्र कुमार मिश्रा, इस फैसले को बहुत 'संतुलित' मानते हैं।
उन्होंने बीबीसी से कहा, "माननीय कोर्ट का फैसला बहुत संतुलित है.
इसमें एक तरफ कर्मचारियों की चिंताओं को दूर किया गया है, तो दूसरी तरफ़
मालिकों को वेजबोर्ड की सिफ़ारिशों को ईमानदारी से लागू करने का मौका दिया
है।"
एडवोकेट वीरेंद्र मिश्रा के अनुसार, कोर्ट ने कहा है कि नियोक्ता के साथ आगे के
किसी भी विवाद को एक प्रक्रिया के तहत श्रम आयुक्त, श्रमिक अदालत या संबंधित तंत्र के मार्फ़त हल
किया जाय।
कुछ कर्मचारी क्यों हैं निराश?
दैनिक जागरण के ख़िलाफ़ मुख्य याचिकाकर्ता अभिषेक राजा फैसले के इस हिस्से को 'निराशाजनक' बताते हैं।
राजा कहते हैं, "कोर्ट में क़रीब चार साल की लड़ाई का नतीजा ये है कि हम फिर से लेबर कोर्ट के
चक्कर लगाएं।"
उनके अनुसार, "ये फैसला फिर उसी जगह चला गया है, जब 7 फ़रवरी
2014 को सुप्रीम कोर्ट ने मजीठिया वेजबोर्ड की सिफ़ारिशों को मानने का आदेश दिया
था।"
अभिषेक राजा का कहना है कि 'कर्मचारी बड़ी उम्मीद में थे कि अदालत
वेजबोर्ड की सिफ़ारिशें लागू करने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित करेगी, लेकिन लगता है
कर्मचारियों को अभी लंबी अदालती लड़ाई लड़नी पड़ेगी।'
इंडियन एक्स्प्रेस न्यूज पेपर्स वर्कर्स यूनियन के महासचिव पीयूष वाजपेयी कहते
हैं, "वेजबोर्ड
की सिफ़ारिशों को लागू करने की मांग करने वाले जिन कर्मचारियों की नौकरी चली गई, उनका ट्रांसफ़र
हुआ, उस पर कोई दिशा
निर्देश आने की उम्मीद की जा रही थी।" अभिषेक राजा के अनुसार, अकेले दैनिक जागरण समूह में 300 कर्मचारियों
को निकाला गया था।
क्या है मामला?
पिछली यूपीए सरकार ने पत्रकारों के वेतन को पुनः निर्धारण के लिए मजीठिया
वेजबोर्ड गठित किया था। बोर्ड पूरे देश भर के पत्रकारों और मीडिया कर्मियों से
बातचीत कर सरकार को अपनी सिफ़ारिश भेजी थीं।
तत्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार ने इन सिफ़ारिशों को मानते हुए, इसे लागू करने
के लिए अधिसूचना जारी की थी। लेकिन अख़बार मालिकों ने इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट
का दरवाजा खटखटाया और फ़रवरी 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे लागू करने के आदेश पर
मुहर लगा दी।
कोर्ट ने अप्रैल 2014 से एरियर और नए मानदंडों पर वेतन और एक साल के अंदर
एरियर देने का आदेश दिया,
लेकिन जब
संस्थानों ने इसे लागू नहीं किया तो कर्मचारी अवमानना की याचिका लेकर फिर उसी
अदालत में पहुंच गए।
इस मामले में विभिन्न अख़बारों और समाचार एजेंसियों के कर्मचारियों की ओर से
कुल 83 याचिकाएं आईं, जिनमें क़रीब 10,000 कर्मचारी शामिल थे।
ताज़ा फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने स्थाई और अस्थाई कर्मचारियों को समान लाभ
दिए जाने की बात कही है।
सबसे पहले इंडियन एक्सप्रेस की यूनियन ने अगस्त 2014 में अवमानना याचिका दायर
की थी, लेकिन मामले
बढ़ते गए और अलग अलग सुनवाई कर पाना मुश्किल हो गया तो सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी
मुकदमों को एक साथ नत्थी कर दिया और संयुक्त सुनवाई शुरू की थी।
[साभार: बीबीसी]
वीडियो- फैसले
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