देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने सभी को कोई भी क्राइम/जुर्म करने की
छूट दी है...! बस आपको कोर्ट में ये साबित करना होगा कि वह नासमझी में किया हुआ
जुर्म था।
इसके लिये आप CONTEMPT PETITION (CIVIL) NO. 411/2014 पर 19 जून 2017 के ताज़ा फैसले को भी
पेश कर सकते हैं। शीर्ष अदालत ने पत्रकारों और गैरपत्रकारों द्वारा दायर 83
अवमानना याचिकाओं का निपटारा करते हुए अपना फैसला सुनाया।
विद्वान न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने कहा कि
अवार्ड को गलत समझने के कारण मीडिया संस्थानों पर कंटेम्प्ट का मामला नहीं बनता।
साथ ही कोर्ट ने कहा कि कथित चूक वैसे तो स्पष्ट रूप से हमारे लिए साक्ष्य है, इसे करने की
इरादतन मंशा का अभाव किसी भी अखबारी संस्थान को अवमानना का भागी नहीं बना सकता।
...मतलब साफ है कुछ भी करो और अनजान बन जाओ!
*यानी GST से छुटकारा लेना है तो साबित करो कि समझ नहीं आया*
मालूम हो कि देश के प्रतिष्ठित अखबारों के खिलाफ हजारों कर्मचारियों ने WRIT PETITION (CIVIL) NO.246/2011 पर 7 फरवरी 2014 के सुप्रीम कोर्ट के आए आदेश का पालन नहीं करने पर
अवमानना का केस दायर कर रखा था। इस आदेश के अनुसार देशभर के लाखों पत्रकारों को
मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ मिलना था। जनता के टैक्स से विज्ञापन, न्यूज प्रिंट
में कोटा आदि कई तरह की सरकारी सुविधा पाकर फलने-फूलने
वाले और न्याय की बात करने वाले इन प्रिंट मीडिया घरानों ने सुप्रीम कोर्ट के
आदेश की पालना करने की बजाए वेजबोर्ड को लागू करने से बचने के लिए
कर्मचारियों की प्रताड़ना शुरु कर दी। किसी से जबरन इस्तीफा लिखवा कर नौकरी छीन ली
तो किसी को बर्खास्त कर दिया तो किसी का स्थानांतरण आतंकवाद या नक्सलवाद
प्रभावित क्षेत्रों में करना शुरु कर दिया। संस्थान से वेजबोर्ड के नाम पर एक
फूटी कौड़ी न मिलने ऊपर से प्रताड़ना, इन सबसे तंग आकर आखिरकार हजारों मीडिया
कर्मियों ने दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, हिंदुस्तान
जैसे नामी गरामी अखबारों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 2014 में अवमानना याचिका
लगाई। जिसका फैसला ढाई साल बाद 3, मई 2017 में आया।
सुनवाई के दौरान अखबार मालिकों की तरफ से वेजबोर्ड की सिफारिशों को ढंग से ना
समझने की बात कही गई। ये बात तो किसी के भी गले नहीं उतर सकती कि किसी भी छोटी से
छोटी बात पर पूरे देश को सिर पर उठा लेने वाले मीडिया संस्थान वेजबोर्ड की सिफारिशों
को पूरी तरह से नहीं समझ सके। इसलिए इनपर अवमानना नहीं बनती। जिन तथ्यों पर अखबार
मालिकों को राहत मिली, उनके अलावा कई अन्य ऐसे तथ्य भी थे जिनसे
पता चलता था कि अखबार मालिकों ने जानबूझकर आदेश का पालन नहीं किया। खैर सुप्रीम
कोर्ट ने इस फैसले में कर्मचारियों के पक्ष में कुछ बिंदुओं को साफ करते हुए अखबार
मालिकों को वेजबोर्ड लागू करने का एक और मौका दिया है। दैनिक जागरण जैसे संस्थान
जिन्होंने अभी तक अपने यहां एक भी वेजबोर्ड लागू नहीं किया है, देखते हैं कि
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश की कब पालना करते हैं।
[मजीठिया क्रांतिकारी ग्रुप से]
सुप्रीम कोर्ट के पूरे फैसले को डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्न path का प्रयोग करें- https://goo.gl/69NLej
वीडियो- फैसले पर प्रशांत भूषण की बेबाक राय, ‘मीडिया मालिकों ने पत्रकारों को बंधुआ
मजदूर बना रखा है’ http://thewirehindi.com/11541/prashant-bhushan-on-majithia-wage-board-and-supreme-court-judgement/
इन्हें भी पढ़े-
मजीठिया: जागरण प्रबंधन के
वकील ने कहा, 'फैसले में कर्मचारियों की चिंताओं को दूर किया गया है' http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/06/blog-post_13.html
मजीठिया: रिकवरी लगाने
वालों के लिए सुरक्षा कवच है 16A http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/06/16a.html
मजीठिया: बर्खास्तगी, तबादले की धमकी से ना डरे, ना दे जबरन इस्तीफा http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/05/blog-post_29.html
लोकमत प्रबंधन को मात देने
वाले महेश साकुरे के पक्ष में आए विभिन्न अदालतों के आदेशों को करें डाउनलोड http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/blog-post.html
#MajithiaWageBoardsSalary,
MajithiaWageBoardsSalary, Majithia Wage Boards Salary
No comments:
Post a Comment