विवेट सुजन पिंटो, मुंबई । आजादी के बाद भारत में सबसे बड़े कर
सुधार - वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करने के लिए गठित उच्च अधिकार संपन्न
परिषद ने प्रिंट मीडिया में विज्ञापनों की जगह और समाचार पत्र प्रकाशन संबंधी
कार्यों पर पांच प्रतिशत सेवा कर के जरिये चपत लगा दी है। प्रिंट मीडिया के सूत्रों
का कहना है कि परिषद का यह कदम हैरान करने वाला है क्योंकि इससे समाचार पत्रों पर
उनकामूल्य (कवर प्राइस) बढ़ाने का दबाव बन जाएगा।
इस संबंध में जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि देश
में समाचार पत्रों की शीर्ष संस्था इंडियन न्यूजपेपर्स सोसायटी (आईएनएस) इस
क्षेत्र में सेवा कर के खिलाफ एकजुट हुई है। इसने इस क्षेत्र को जीएसटी से पहले की
तरह कर सूची से बाहर रखने के लिए कहा है। संस्था समाचार पत्र कारोबार पर पड़ने वाले
इस कदम के असर का अध्ययन कर रही है। आईएनएस का पक्ष जानने के लिए अभी उससे संपर्क
नहीं हो सका। केपीएमजी इंडिया के निदेशक एवं प्रमुख (मीडिया और मनोरंजन) गिरीश
मेनन का कहना है कि चूंकि समाचार पत्र प्रकाशन से संबंधित कार्यों पर पांच प्रतिशत
का सेवा कर लगाए जाने से मीडिया गृह इसके मुकाबले इनपुट टैक्स क्रेडिट करेंगे
इसलिए प्रिंट में स्थान की बिक्री (विज्ञापन) पर सेवा कर को लेकर ज्यादा चिंता
है।
उनका कहना है कि पत्रिका हो या समाचार पत्र, प्रिंट प्रकाशन को अब अपने ग्राहकों को बिलों
में न केवल विज्ञापन की लागत का, बल्कि सेवा कर का भी वर्णन करना पड़ेगा। ऐसे
समय में कि जब भारत में डिजिटल विज्ञापन बढ़ रहा है, सेवा कर ग्राहकों या विज्ञापनदाताओं को
निरुत्साहित करते हुए बिल के मूल्य में इजाफा कर देगा। भारत में प्रतिदिन प्रसारित
होने वाली प्रिंट प्रतियों की संख्या 2016 में बढ़कर 6.28 करोड़ हो गई है। ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन
(एबीसी)के मुताबिक एक दशक में यह 4.87 प्रतिशत संयोजित वार्षिक वृद्धि दर
(सीएजीआर) है। मीडिया एजेंसी ग्रुप एम और मैडिसन के अनुसार डिजिटल विज्ञापन भी
पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है। यह देश में टेलीविजन और प्रिंट के बाद तीसरे
सबसे बड़े विज्ञापन माध्यम के रूप में उभरा है।
[साभार: बिजनेस स्टैंडर्ड]
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