जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में
सबसे ज्यादा शिकायत "डी बी कॉर्प लि." के अखबारों- 'दैनिक भास्कर', 'दिव्य भास्कर' और 'दिव्य मराठी' के मीडियाकर्मियों ने कर रखी है। इस संस्थान के पत्रकारों ने
माननीय सर्वोच्च न्यायालय सहित महाराष्ट्र के लेबर डिपार्टमेंट और मुंबई के लेबर
कोर्ट में तमाम शिकायतें कर रखी हैं। एक तरफ जहां डी बी कॉर्प का दावा है कि वह
खूब लाभ कमा रहा है, वहीं जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड के
अनुसार वेतन न देना पड़े, इसके लिए इस कंपनी ने अपने मुंबई के
माहिम दफ्तर में कार्यरत कई सीनियर पत्रकारों को पत्रकारों के साथ-साथ मैनेजेरियल
और एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ बना दिया है और बेचारे पत्रकारों को इस बात की भनक तक
नहीं लगी ! यही नहीं, डी बी कॉर्प ने माहिम ऑफिस में
कर्मचारियों की संख्या भी काफी कम (मात्र 13) बताई है, जबकि वहां 70 से ज्यादा लोग काम करते हैं। यह खुलासा हुआ है आर टी
आई के जरिये। जी हां, आपको जानकर आश्चर्य होगा कि डी बी
कॅार्प लि. ने मुंबई के माहिम वाले दफ्तर में कर्मचारियों की संख्या मात्र 13 बताई
है, जबकि वहां पर 70-75 लोग से कम नहीं
हैं ! चलिए, हम अगर 'माय एफएम', 'डी बी डिजिटल' और मार्केटिंग स्टाफ को छोड़ दें, तब भी वहां मजीठिया वेज बोर्ड के हकदार कर्मचारियों की अच्छी-खासी
संख्या छिपायी गई है ! सो, भास्कर प्रबंधन जिन-जिन के नामों को
छिपाकर उन्हें मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों से वंचित रखना चाहता है, उनके नाम आपको हम बताएंगे... वे नाम हैं- गुजराती अखबार 'दिव्य भास्कर' के राजेश पटेल
(सहायक संपादक), विपुल शाह (रिपोर्टर कम सब एडिटर), समीर पटेल (सब एडिटर) और मनीष पटेल (कंपोजिटर)। यहां पर कंपनी के
चमचों को शर्म आनी चाहिए कि मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक देय राशि से बचने के लिए
कुछ समय पहले ही आफिस बॅाय जॅार्ज कोली को कॅान्ट्रैक्ट पर कर दिया गया, जबकि वह करीब 10 वर्षों से पे रोल पर था ! अब बात इसी कंपनी के
मराठी अखबार 'दिव्य मराठी' के कर्मवीरों की, जिनके नाम कंपनी ने
छिपाए हुए हैं... ये नाम हैं- प्रशांत पवार (सहायक संपादक), प्रमोद चुंचूवार (ब्यूरो चीफ), शेखर देशमुख (संपादक-रसिक), विनोद तलेकर (प्रिंसिपल करेस्पॅान्डेंट), चंद्रकांत शिंदे (स्पेशल करेस्पॅान्डेंट), मृण्मयी रानाडे (संपादक-मधुरिमा), समीर परांजपे (सहायक समाचार संपादक), सुजॅाय शास्त्री (सहायक समाचार संपादक) और तुकाराम पवार (कंप्यूटर
आपरेटर)। यही नहीं, कंपनी ने जो 13 नाम कामगार आयुक्त
कार्यालय में दिए हैं, उन्हें भी पत्रकार के साथ-साथ
प्रबंधकीय एवं प्रशासनिक क्षमता से लैस बता दिया है... ये नाम हैं- दैनिक भास्कर
के ब्यूरो चीफ अनिल राही, जो बतौर पत्रकार महाराष्ट्र शासन
द्वारा मान्यताप्राप्त हैं, मगर कंपनी उन्हें भी मैनेजेरियल स्टाफ
मानती है। इसके बाद दूसरा नाम धर्मेन्द्र प्रताप सिंह का है। गौर करने की बात यह
है कि पत्रकार के तौर पर धर्मेन्द्र प्रताप सिंह को भी महाराष्ट्र सरकार ने
मान्यता दे रखी है और इन्होंने जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन और एरियर
की मांग को लेकर लेबर कोर्ट के अलावा एडवोकेट उमेश शर्मा के जरिये सुप्रीम कोर्ट
में भी केस लगा रखी है। अन्य प्रमुख नाम हैं- सीनियर रिपोर्टर सुनील कुकरेती, रिपोर्टर कम सब एडिटर (ऐसी पोस्ट होती ही नही है) उमेश कुमार
उपाध्याय, फीचर एडिटर चंडीदत्त शुक्ला, सीनियर रिपोर्टर विनोद यादव, सीनियर करेस्पॅान्डेंट सलोनी अरोड़ा और प्रियंका चोपड़ा। डी बी
कॅार्प ने जिन कर्मचारियों की लिस्ट कामगार विभाग को सौंपी है, उसमें पत्रकार से प्रबंधक और प्रशासक बने इन लोगों के अलावा लतिका
चव्हाण और आलिया शेख नामक दो रिसेप्शनिस्ट का भी नाम शामिल है। यहां बताना जरूरी
है कि मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लेकर लतिका और आलिया ने मुंबई के कामगार
विभाग में कंपनी प्रबंधन के विरुद्ध पहले ही शिकायत कर रखी है, जिसकी सुनवाई जारी है। हां, इस सूची में इन्वेस्टर हेड प्रसून पांडे और उनकी सहयोगी (डिप्टी
मैनेजर) सोनिया अग्रवाल का नाम जरूर चौंकाता है... वह इसलिए, क्योंकि मार्केट से निवेशक ढूंढने के लिए नियुक्त इन दोनों जन को
नेम ऑफ़ द जर्नलिस्ट के रूप में दिखाने की मजबूरी जहां समझ से परे है, वहीं सोनिया अग्रवाल का तो अक्टूबर (2016) की पहली तारीख को ही
मुंबई से भोपाल ट्रांसफर किया जा चुका है (मुंबई के इंडस्ट्रियल कोर्ट में यह दावा
एचआर के सतीश दुबे ने एक हलफनामा के जरिए किया है) !
शशिकांत सिंह
पत्रकार और आर टी आई
एक्सपर्ट
9322411335
http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/12/blog-post.html
http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/01/blog-post.html
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