महाराष्ट्र से प्रकाशित मराठी दैनिक लोकमत को तगड़ा झटका लगा है। 7 नवंबर को नागपुर की इंडस्ट्रीयल कोर्ट नंबर 4 ने एक आदेश जारी कर लोकमत से निकाले गए 24 स्थायी कर्मचारियों को वापस काम पर रखने का निर्देश दिया है।
इस बारे में जानकारी देते हुए लोकमत श्रमिक संगठन के संजय येवले पाटिल ने बताया कि इंडस्ट्रीयल कोर्ट ने सभी 24 स्थायी कर्मचारियों को 4 सप्ताह के अंदर काम पर रखने का निर्देश कंपनी प्रबंधन को दिया है। बताते हैं कि लोकमत प्रबंधन ने 12 नवंबर 2013 को यूनियन की गोवा के एक पदाधिकारी को काम से निकाल दिया था जिसके बाद यूनियन के सदस्यों ने असहयोग आंदोलन शुरु कर दिया था और प्रबंधन के सामने शर्त रख दी कि या तो निकाले गए कर्मचारी को काम पर रखें, नहीं तो असहयोग आंदोलन जारी रहेगा।
इसके बाद कंपनी प्रबंधन ने 15 नवंबर से 21 नवंबर 2013 के बीच यूनियन के कुल 61 लोगों को काम से निकाल दिया था। जिसमें 30 स्थायी कर्मचारी थे और बाकी 31 ठेका कर्मी थे। इन 30 स्थायी कर्मचारियों में से 24 ने इंडस्ट्रीयल कोर्ट की शरण ली। कंपनी ने 21 नवंबर 2013 को ही एक दिन में 24 कर्मचारियों को निकाला था। जिन लोगों को काम से निकाला गया था उसमें लोकमत श्रमिक संगठन के अध्यक्ष संजय येवले पाटिल, महासचिव चंद्रशेखर माहुले सहित लगभग सारे पदाधिकारियों को निकाल दिया गया था। संजय येवले पाटिल के मुताबिक कंपनी ने 21 नवंबर 2013 को ही एक प्रस्ताव लाकर पाॅकेट यूनियन बनाई। जिसमें सिटी संपादक गजानन जानभोर को अध्यक्ष बनाया गया। उसके बाद मशीन के सुपरवाईजर प्रदीप कावलकर को जनरल सेक्रेटरी बनाया। और बाकी मैनेजरियल लोगो को पदाधिकारी बना दिया। उसके बाद इस यूनियन को इंडस्ट्रीयल कोर्ट में चैलेंज किया गया। जिसमें इंडस्ट्रीयल कोर्ट ने नई यूनियन को अवैध माना और पुरानी युनियन को मान्यता दी। ये युनियन आज भी बरकरार है।
लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने वाली कर्मचारियों की यूनियन ने अदालत से गुहार लगाई कि जिन लोगो को काम से निकाला गया है उनको वापस काम पर रखा जाए और बकाया वेतन दिलाया जाए, जिसके बाद 7 नवंबर को नागपुर की इंडस्ट्रीयल कोर्ट नंबर 4 के विद्वान न्यायाधीश श्रीकांत के देशपांडे ने लोकमत से निकाले गए 24 स्थायी कर्मचारियों को वापस काम पर रखने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा है या तो इन 24 लोगो को वापस नौकरी पर रखा जाए, नहीं तो जब से इनको काम से निकाला गया है तब से मामले के निस्तारण तक उनको इनके वेतन का 75 प्रतिशत प्रत्येक माह वेतन दिया जाए।
फिलहाल कंपनी को कर्मचारियों ने 8 नवंबर को कंपनी में ज्वाइनिंग कराने के लिए पत्र तो दे दिया है, लेकिन लोकमत प्रबंधन के पास अभी चार सप्ताह का समय है कि वह क्या करेगी। इन कर्मचारियोे को ज्वाईन कराएगी या घर बैठे जबतक मामले का निस्तारण नहीं होता तब तक 75 प्रतिशत हर माह वेतन देगी। फिलहाल इस मुद्दे पर लोकमत श्रमिक यूनियन मुंबई उच्च न्यायालय की शरण में भी जा रही है कि या तो हमें ज्वाईन कराया जाए, नहीं तो केस के निस्तारण तक हमें पूरा वेतन दिया जाए। क्योकि हम 21,11,2013 से काम पर ही है और ऐसे में हमें पूरा वेतन पाने का अधिकार है। इसमें पत्रकार,ग़ैरपत्रकार शामिल हैं।
आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्न path का प्रयोग करें https://goo.gl/tJASjq
शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्सपर्ट
९३२२४११३३५
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इस बारे में जानकारी देते हुए लोकमत श्रमिक संगठन के संजय येवले पाटिल ने बताया कि इंडस्ट्रीयल कोर्ट ने सभी 24 स्थायी कर्मचारियों को 4 सप्ताह के अंदर काम पर रखने का निर्देश कंपनी प्रबंधन को दिया है। बताते हैं कि लोकमत प्रबंधन ने 12 नवंबर 2013 को यूनियन की गोवा के एक पदाधिकारी को काम से निकाल दिया था जिसके बाद यूनियन के सदस्यों ने असहयोग आंदोलन शुरु कर दिया था और प्रबंधन के सामने शर्त रख दी कि या तो निकाले गए कर्मचारी को काम पर रखें, नहीं तो असहयोग आंदोलन जारी रहेगा।
इसके बाद कंपनी प्रबंधन ने 15 नवंबर से 21 नवंबर 2013 के बीच यूनियन के कुल 61 लोगों को काम से निकाल दिया था। जिसमें 30 स्थायी कर्मचारी थे और बाकी 31 ठेका कर्मी थे। इन 30 स्थायी कर्मचारियों में से 24 ने इंडस्ट्रीयल कोर्ट की शरण ली। कंपनी ने 21 नवंबर 2013 को ही एक दिन में 24 कर्मचारियों को निकाला था। जिन लोगों को काम से निकाला गया था उसमें लोकमत श्रमिक संगठन के अध्यक्ष संजय येवले पाटिल, महासचिव चंद्रशेखर माहुले सहित लगभग सारे पदाधिकारियों को निकाल दिया गया था। संजय येवले पाटिल के मुताबिक कंपनी ने 21 नवंबर 2013 को ही एक प्रस्ताव लाकर पाॅकेट यूनियन बनाई। जिसमें सिटी संपादक गजानन जानभोर को अध्यक्ष बनाया गया। उसके बाद मशीन के सुपरवाईजर प्रदीप कावलकर को जनरल सेक्रेटरी बनाया। और बाकी मैनेजरियल लोगो को पदाधिकारी बना दिया। उसके बाद इस यूनियन को इंडस्ट्रीयल कोर्ट में चैलेंज किया गया। जिसमें इंडस्ट्रीयल कोर्ट ने नई यूनियन को अवैध माना और पुरानी युनियन को मान्यता दी। ये युनियन आज भी बरकरार है।
लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने वाली कर्मचारियों की यूनियन ने अदालत से गुहार लगाई कि जिन लोगो को काम से निकाला गया है उनको वापस काम पर रखा जाए और बकाया वेतन दिलाया जाए, जिसके बाद 7 नवंबर को नागपुर की इंडस्ट्रीयल कोर्ट नंबर 4 के विद्वान न्यायाधीश श्रीकांत के देशपांडे ने लोकमत से निकाले गए 24 स्थायी कर्मचारियों को वापस काम पर रखने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा है या तो इन 24 लोगो को वापस नौकरी पर रखा जाए, नहीं तो जब से इनको काम से निकाला गया है तब से मामले के निस्तारण तक उनको इनके वेतन का 75 प्रतिशत प्रत्येक माह वेतन दिया जाए।
फिलहाल कंपनी को कर्मचारियों ने 8 नवंबर को कंपनी में ज्वाइनिंग कराने के लिए पत्र तो दे दिया है, लेकिन लोकमत प्रबंधन के पास अभी चार सप्ताह का समय है कि वह क्या करेगी। इन कर्मचारियोे को ज्वाईन कराएगी या घर बैठे जबतक मामले का निस्तारण नहीं होता तब तक 75 प्रतिशत हर माह वेतन देगी। फिलहाल इस मुद्दे पर लोकमत श्रमिक यूनियन मुंबई उच्च न्यायालय की शरण में भी जा रही है कि या तो हमें ज्वाईन कराया जाए, नहीं तो केस के निस्तारण तक हमें पूरा वेतन दिया जाए। क्योकि हम 21,11,2013 से काम पर ही है और ऐसे में हमें पूरा वेतन पाने का अधिकार है। इसमें पत्रकार,ग़ैरपत्रकार शामिल हैं।
आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्न path का प्रयोग करें https://goo.gl/tJASjq
शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्सपर्ट
९३२२४११३३५
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