नई दिल्ली। 13 साल तक न्याय के लिए संघर्ष करने के बाद बुधवार की अंधेरी रात में मौत की आगोश में हमेशा-हमेशा के लिए सो जाने वाले हिंदुस्तान टाइम्स के कर्मी रविंद्र ठाकुर को ना ही परिजनों का और ना ही अपने संघर्ष के दिनों के साथियों का कंधा मिल पाया। मंगलवार धनतेरस के दिन दिल्ली पुलिस ने उसकी पार्थिव देह का अंतिम संस्कार कर दिया। उसके अंतिम संस्कार के समय न तो उसके परिजन मौजूद थे और न ही उसके संस्थान के साथी।
रविंद्र ठाकुर के साथियों का आरोप है कि पुलिस ने हिंदुस्तान प्रबंधन के दबाव
में जानबूझकर ऐसे दिन और समय का चुनाव किया कि जिससे कि हम उसके अंतिम संस्कार
में पहुंच ही ना सके। उन्होंने बताया कि मंगलवार दोपहर को उन्हें दिल्ली पुलिस
की तरफ से फोन आया कि रविंद्र के शव को अंतिम संस्कार के लिए सराय काले खां स्थित
श्मशान घाट ले जाया जा रहा है। ये वो समय था जब वे दिल्ली हाईकोर्ट में थे और
उनके केस की सुनवाई किसी भी समय शुरु हो सकती थी। जब तक हमारी सूचना पर दूसरे साथी
श्मशान घाट पहुंचते तब तक पुलिस रविंद्र का अंतिम संस्कार करवा कर लौट चुकी थी।
उन्होंने बताया कि हम पुलिस से पहले दिन से ही मांग कर रह रहे थे कि यदि
रविंद्र के परिजन नहीं मिल पाते हैं तो उसकी पार्थिव देह को हमें सौंप दिया जाए, जिससे उसका
अंतिम संस्कार हम खुद कर सके। ऐसे में अचानक ऐसे समय में फोन आना जब हम हिंदुस्तान
प्रबंधन से चल रही न्याय की लड़ाई से संबंधित एक केस के सिलसिले में कोर्ट में थे, दाल में कुछ
काला है कि ओर संकेत करता है। पुलिस चाहती तो हमें समय रहते सूचित कर सकती थी, जबकि हम लगातार
पुलिस के संपर्क में थे। उनका आरोप है कि पुलिस प्रबंधन पर दबाव बनाती तो रविंद्र
के हिमाचल प्रदेश स्थित गांव का पता मिल जाता और आज उसके शव का लावारिस के रुप में
अंतिम संस्कार नहीं होता। उन्होंने बताया कि इससे हम सकते में है। हमें ऐसी कतई
उम्मीद नहीं थी कि बिड़ला जी के आदर्शों पर खड़ा यह मीडिया ग्रुप अपने एक कर्मचारी
की मौत के बाद भी उसके परिजनों को उसके अंतिम संस्कार से महरुम रखने में अपनी
ताकत का बेजा इस्तेमाल करेगा।
2004 में रविंद्र ठाकुर को हिंदुस्तान टाइम्स
ने लगभग 400 अन्य
कर्मियों के साथ निकाल दिया था। कड़कड़डूमा कोर्ट से जीतने के बावजूद भी ये कर्मी
अभी तक सड़क पर ही हैं और अपनी वापसी के लिए अभी भी कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।
रविंद्र कस्तूरबा गांधी स्थित हिंदुस्तान टाइम्स की बिल्डिंग के बाहर ही रात को
सोता था, जहां वह और
उसके साथी अपने हक के लिए आंदोलन करते थे। बुधवार रात उसी धरनास्थल पर उसका निधन
हो गया। समय के थपेड़ों ने रविंद्र को अंर्तमुर्खी बना दिया था। जिस वजह से वह अपने
साथियों से अपने परिजनों के बारे में कुछ बात नहीं करता था।
(हिंदुस्तान टाइम्स के साथियों से मिले तथ्यों
पर आधारित)
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निष्ठुर
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नहीं दिया मृतक मीडियाकर्मी के परिजनों का पता, अब कौन देगा कंधा... http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/10/blog-post_14.html
Video: https://goo.gl/ckucFy
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