Friday, 13 October 2017

एचटी बिल्डिंग के सामने सिर्फ एक मीडियाकर्मी नहीं मरा, मर गया लोकतंत्र और मर गए इसके सारे खंभे



शर्म मगर इस देश के मीडिया मालिकों, नेताओं, अफसरों और न्यायाधीशों को बिलकुल नहीं आती... ये जो शख्स लेटा हुआ है.. असल में मरा पड़ा है.. एक मीडियाकर्मी है... एचटी ग्रुप से तेरह साल पहले चार सौ लोग निकाले गए थे... उसमें से एक ये भी है... एचटी के आफिस के सामने तेरह साल से धरना दे रहा था.. मिलता तो खा लेता.. न मिले तो भूखे सो जाता... आसपास के दुकानदारों और कुछ जानने वालों के रहमोकरम पर था.. कोर्ट कचहरी मंत्रालय सरोकार दुकान पुलिस सत्ता मीडिया सब कुछ दिल्ली में है.. पर सब अंधे हैं... सब बेशर्म हैं... आंख पर काला कपड़ा बांधे हैं...

ये शख्स सोया तो सुबह उठ न पाया.. करते रहिए न्याय... बनाते रहिए लोकतंत्र का चोखा... बकते बजाते रहिए सरोकार और संवेदना की पिपहिरी... हम सब के लिए शर्म का दिन है... खासकर मुझे अफसोस है.. अंदर एक हूक सी उठ रही है... क्यों न कभी इनके धरने पर गया... क्यों न कभी इनकी मदद की... ओफ्ह.... शर्मनाक... मुझे खुद पर घिन आ रही है... दूसरों को क्या कहूं... हिमाचल प्रदेश के रवींद्र ठाकुर की ये मौत दरअसल लोकतंत्र की मौत है.. लोकतंत्र के सारे खंभों-स्तंभों की मौत है... किसी से कोई उम्मीद न करने का दौर है...

(यशवंत सिंह/भड़ास)


13 साल से न्‍याय की आस में धरना स्‍थल पर बैठे मीडियाकर्मी ने दमतोड़ा  http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/10/13.html?m=1



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