मुंबई। श्रमिकों को मजदूरी का भुगतान करने में देरी या वेतन न देना संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदत्त जीवन के उनके अधिकार का उल्लंघन है। यह बात बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार को कही।
जस्टिस उज्जल भुयान और एन आर बोरकर की पीठ ने यह बात उस समय कही जब एक कंपनी को आदेश दिया कि वह लॉकडाउन के दौरान वेतन का भुगतान करे।
रायगढ़ में एक इस्पात कारखाने के लगभग 150 श्रमिकों ने अपनी यूनियन के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में कोरोनोवायरस महामारी को देखते हुए सुरक्षा उपायों को लागू करने के लिए कारखाने को दिशा-निर्देश देने की भी मांग की।
कंपनी ने वरिष्ठ वकील गायत्री सिंह के माध्यम से दायर याचिका में कहा कि मार्च, अप्रैल और मई में मजदूरों को आधे से कम मजदूरी का भुगतान किया गया था।
इसके अलावा, लॉकडाउन से पहले कंपनी ने उन्हें दिसंबर, जनवरी और फरवरी के लिए मजदूरी का भुगतान नहीं किया।
हालांकि उन्हें लॉकडाउन लागू होने के बाद मार्च में काम बंद रखने के लिए कहा गया था, लेकिन बाद में कारखाना फिर से खुल गया।
याचिका में कहा गया है कि महामारी के मद्देनजर सुरक्षा उपायों को लागू नहीं किया गया और न ही सार्वजनिक परिवहन के अभाव के बावजूद कारखाने से श्रमिकों को आने जाने के लिए कोई व्यवस्था की गई। परिणामस्वरूप, कई मजदूर काम को फिर से करने में असमर्थ हैं।
याचिका में कहा गया है कि श्रमिकों और फैक्ट्री मालिकों के बीच विवाद के कारण भुगतान में देरी हुई। याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि इस साल मई में हाईकोर्ट ने कारखाने के मालिकों को निर्देश दिया था कि तालाबंदी से पहले के महीनों के लिए श्रमिकों को उनका बकाया भुगतान करें, लेकिन कोई भुगतान नहीं किया गया था।
फैक्ट्री मालिकों ने हालांकि आरोपों का खंडन किया और कहा कि यूनियन उनके साथ एक अनौपचारिक समझौता की थी, जिसके तहत श्रमिकों को किश्तों में उनके बकाये का भुगतान किया गया था।
अदालत ने माना कि याचिकाकर्ताओं को अनौपचारिक समझौता के आधार पर उनके वेतन से वंचित नहीं किया जा सकता है।
शशिकांत सिंह
पत्रकार और मजीठिया क्रांतिकारी
9322411335
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