मजीठिया वेजबोर्ड का केस अपने हाथों से फिसलता देख राजस्थान पत्रिका प्रबंधन के हाथ-पैर फूलने लगे हैं। बेचैनी किसी कदर है, इसका अंदाज कल (सोमवार को) जयपुर के लेबर कोर्ट रूम में पत्रिका प्रबंधक पी.के.गुप्ता और पत्रिका के वकील रुपिन काला के बीच हुई तू-तू, मैं-मैं से लगाया जा सकता है। दरअसल, कल पत्रिका की ओर से टर्मिनेशन के एक केस में एच.आर हैड मनोज ठाकुर, भोपाल से सुमित पाण्डे, श्रीगंगानगर के इंद्र सिंह और जबलपुर से सचिन श्रीवास्तव के एफिडेविट दायर किए गए थे। दायर किए चार और एप्लीकेशन में लिख दिए पांच। यही नहीं, कुछ अन्य गंभीर खामियां भी छोड दी गईं। कर्मचारियों के प्रतिनिधि ऋषभ जी जैन को तो लूज बॉल मिलनी चाहिए, छक्का लग ही जाता है। ऋषभ ने जज साहब से कहा कि चार ही एफिडेविट हैं। बाद में आप और हम फाइल में पांचवें एफिडेविट को ढूंढते रहेंगे। इस पर पत्रिका के प्रबंधक पी.के.गुप्ता ने एप्लीकेशन में त्रुटि सुधार कर पांच को चार कर दिया। इसके बाद ऋषभ जी ने जज साहब को बताया कि एफिडेविट में प्रदर्श लिखकर छोड़ दिया गया है, उन पर नम्बर नहीं है। यह सुनते ही पी.के.गुप्ता ने एफिडेविट ले लिए और प्रदर्श नम्बर डालने लगे ही थे कि ऋषभ जी ने आपत्ति कर दी। ऋषभ का कहना था कि ये सभी एफिडेविट नोटरी से अटेस्टेड होने के बाद कोर्ट में पेश हो चुके हैं। अटेस्टेड एफिटेविट में किसी भी तरह का परिवर्तन कैसे किया जा सकता है? और वह भी न्यायाधीश के समक्ष। यह सुनते ही जज साहब ने गुप्ता से एफिडेविट ले लिए। स्थिति यह बनी कि चार लोगों के एफिडेविट बिना प्रदर्श नम्बरों के कोर्ट में पेश हैं।
पत्रिका के वकीलों की फौज के सरदार रुपिन काला इस वाकये से इतने बैचेन हुए कि गुप्ता को कोर्ट में ही सबके सामने डांटने लगे। काला ने कहा कि आपको क्या जल्दी रहती है? मुझे दिखाए बिना आपने कैसे कागजात पेश कर दिये? गुप्ता जी भी उखड़ गए और उन्होंने भी वकील काला को सुना दिया कि आपने भी तो अब तक खूब गलतियां की हैं, उनका कुछ नहीं। आज मुझ से एक गलती हो गई तो इतना उखड़ रहे हो। इस पर दोनों के बीच कोर्ट में ही खूब तू-तू, मैं-मैं हुई।
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