भड़ास लौट आया है। अबकी रुस में सर्वर लिया गया है जो यूरोप के डीएमसीए कानून के दायरे से बाहर का इलाका है। आप लोगों के प्यार, सपोर्ट और दुओं ने ज्यादा काम किया। हमारी टेक टीम के अगुवा भाई दिवाकर प्रताप सिंह और भाई आशीष वर्मा जी ने लगातार बारह घंटे से ज्यादा वक्त तक इमरजेंसी मोड में एक्टिव रहते हुए 11 बरस की भारी भरकम डाटाबेस वाली साइट भड़ास4मीडिया को नए सर्वर पर अपलोड कर दिया।
भड़ास के डाटा का आटोमेटिक बैकअप लेने के लिए हम लोगों ने एक अलग कंपनी से टाइअप किया हुआ था, इसलिए कोई कहीं से भी भड़ास को ब्लाक करा दे, रुकवा दे, हम लोगों पर फर्क नहीं पड़ता। चौबीस घंटे में हम लोग लाइव हो जाएंगे। कई बरस से आटोमेटिक बैकअप की फीस हम यूं ही हर महीने दे रहे थे लेकिन ये सारी फीस परसों इकट्ठे वसूल हो गई।
यूरोप वाली होस्टिंग कंपनी डिजिटल ओसियन ने हमारा डाटाबेस एसेस करने की सुविधा देना तो छोड़िए, हमारी रिप्लाई का जवाब तक नहीं दिया है क्योंकि उन्होंने अपने यहां से हमें ब्लाक करके हमारी कहानी खत्म घोषित कर दी है।
मैं कई दफे इसलिए भी स्प्रिचुवल हो जाता हूं कि बहुत सारी चीजें अनप्रिडक्टिबल होती हैं। अगर आपको जिंदा रहना है तो जिंदा रहेंगे, कोई ताकत खत्म नहीं कर सकती. आपको मरना है तो आप लाख पहरे और लाख सावधानी से रहें, निपट जाएंगे।
परसों जब भड़ास के बंद होने की मुझे पहली सूचना मिली तो मैं न उदास हुआ न परेशान हुआ। कुछ ये वाली फीलिंग थी कि भला हुआ मोरी गगरी फूटी, पनिया भरन से छूटी रे… कई दफे आप अपने काम के प्रति इतने रुटीन भाव से अटैच रहते हैं कि उब होने लगती है। मैं भड़ास को रिस्टोर करने को लेकर ज्यादा सक्रिय और उत्सुक नहीं था। हां, लोगों ने जिस कदर फेसबुक से लेकर ह्वाट्सअप तक मुझे हौसला दिया, साथ खड़े होने व किसी भी किस्म की मदद करने का ऐलान किया, वह मेरे लिए हैरतअंगेज था।
मुझे अक्सर यकीन नहीं होता कि मेरे जैसे सड़क छाप सहज भाव वाले इंसान को इतने सारे लोग प्यार करते हैं! पर कल का दिन मेरे लिए सुबूत मुहैया कराने वाला रहा। वो कहते हैं न रहीम दास कि ‘रहिमन’ विपदाहू भली जो‚ थोरे दिन होय…. हित अनहित या जगत में‚ जानि परत सब कोय… यानि छोटे-वक्त का दुख अच्छा होता है जो आपको अपने पराए का एहसास करा देता है… पर कल तो सबने सिर्फ एक बात का एहसास कराया कि मेरा कोई पराया नहीं है। सब मुझसे प्यार करते हैं, कुछ छिप कर तो ढेर सारे खुलकर!
उस खबर के लिंक को इस पोस्ट के साथ अटैच कर रहा हूं जिसे डिलीट कराने के लिए गलगोटिया वालों ने यूरोप से लेकर भारत तक एक कर दिया। काफी पैसा फूंक दिया। पर रिजल्ट मिला घंटा। वो भी चौबीस। पर चौबीस घंटा तक भड़ास को बंद कराकर पाया ये कि अपनी किरकरी और डिब्रांडिंग का दायरा और ज्यादा बड़ा कर लिया।
एक बार फिर संकट की घड़ी में कंधे से कंधा मिला कर खड़े होने के लिए आप सबका दिल से आभार करता हूं।
जनाब अहमद फ़राज़ साहब की चार लाइनों के साथ अपनी बात खत्म करुंगा…
मैं कट गिरूं कि सलामत रहूं, यक़ीं है मुझे
कि ये हिसार-ए-सितम कोई तो गिराएगा
तमाम उम्र की ईज़ा-नसीबियों की क़सम
मिरे क़लम का सफ़र राएगाँ न जाएगा.
लव यू आल!
जैजै
[भड़ास के फाउंडर और एडिटर यशवंत की एफबी वॉल से]
भड़ास के डाटा का आटोमेटिक बैकअप लेने के लिए हम लोगों ने एक अलग कंपनी से टाइअप किया हुआ था, इसलिए कोई कहीं से भी भड़ास को ब्लाक करा दे, रुकवा दे, हम लोगों पर फर्क नहीं पड़ता। चौबीस घंटे में हम लोग लाइव हो जाएंगे। कई बरस से आटोमेटिक बैकअप की फीस हम यूं ही हर महीने दे रहे थे लेकिन ये सारी फीस परसों इकट्ठे वसूल हो गई।
यूरोप वाली होस्टिंग कंपनी डिजिटल ओसियन ने हमारा डाटाबेस एसेस करने की सुविधा देना तो छोड़िए, हमारी रिप्लाई का जवाब तक नहीं दिया है क्योंकि उन्होंने अपने यहां से हमें ब्लाक करके हमारी कहानी खत्म घोषित कर दी है।
मैं कई दफे इसलिए भी स्प्रिचुवल हो जाता हूं कि बहुत सारी चीजें अनप्रिडक्टिबल होती हैं। अगर आपको जिंदा रहना है तो जिंदा रहेंगे, कोई ताकत खत्म नहीं कर सकती. आपको मरना है तो आप लाख पहरे और लाख सावधानी से रहें, निपट जाएंगे।
परसों जब भड़ास के बंद होने की मुझे पहली सूचना मिली तो मैं न उदास हुआ न परेशान हुआ। कुछ ये वाली फीलिंग थी कि भला हुआ मोरी गगरी फूटी, पनिया भरन से छूटी रे… कई दफे आप अपने काम के प्रति इतने रुटीन भाव से अटैच रहते हैं कि उब होने लगती है। मैं भड़ास को रिस्टोर करने को लेकर ज्यादा सक्रिय और उत्सुक नहीं था। हां, लोगों ने जिस कदर फेसबुक से लेकर ह्वाट्सअप तक मुझे हौसला दिया, साथ खड़े होने व किसी भी किस्म की मदद करने का ऐलान किया, वह मेरे लिए हैरतअंगेज था।
मुझे अक्सर यकीन नहीं होता कि मेरे जैसे सड़क छाप सहज भाव वाले इंसान को इतने सारे लोग प्यार करते हैं! पर कल का दिन मेरे लिए सुबूत मुहैया कराने वाला रहा। वो कहते हैं न रहीम दास कि ‘रहिमन’ विपदाहू भली जो‚ थोरे दिन होय…. हित अनहित या जगत में‚ जानि परत सब कोय… यानि छोटे-वक्त का दुख अच्छा होता है जो आपको अपने पराए का एहसास करा देता है… पर कल तो सबने सिर्फ एक बात का एहसास कराया कि मेरा कोई पराया नहीं है। सब मुझसे प्यार करते हैं, कुछ छिप कर तो ढेर सारे खुलकर!
उस खबर के लिंक को इस पोस्ट के साथ अटैच कर रहा हूं जिसे डिलीट कराने के लिए गलगोटिया वालों ने यूरोप से लेकर भारत तक एक कर दिया। काफी पैसा फूंक दिया। पर रिजल्ट मिला घंटा। वो भी चौबीस। पर चौबीस घंटा तक भड़ास को बंद कराकर पाया ये कि अपनी किरकरी और डिब्रांडिंग का दायरा और ज्यादा बड़ा कर लिया।
एक बार फिर संकट की घड़ी में कंधे से कंधा मिला कर खड़े होने के लिए आप सबका दिल से आभार करता हूं।
जनाब अहमद फ़राज़ साहब की चार लाइनों के साथ अपनी बात खत्म करुंगा…
मैं कट गिरूं कि सलामत रहूं, यक़ीं है मुझे
कि ये हिसार-ए-सितम कोई तो गिराएगा
तमाम उम्र की ईज़ा-नसीबियों की क़सम
मिरे क़लम का सफ़र राएगाँ न जाएगा.
लव यू आल!
जैजै
[भड़ास के फाउंडर और एडिटर यशवंत की एफबी वॉल से]
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