पत्रिका प्रबन्धन को फिर मुंह की खानी पड़ी। प्रबन्धन 190 कर्मचारियों के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट से स्टे ले कर उसे लम्बा खींचने की कोशिश कर रहा था। लेकिन पत्रिका प्रबन्धन की ये कोशिश नाकाम हो गई और आज राजस्थान हाईकोर्ट ने स्टे ऑर्डर खारिज करते हुए लेबर कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार मामला निपटाने के आदेश दिए।
पत्रिका के गोबर गणेशों ने अपने लकवाग्रस्त दिमागी घोड़े दौड़ा कर देख लिए, हर जगह इनको मात ही खानी पड़ रही है। अभी भी समय है, पत्रिका प्रबन्धन को समझ जाना चाहिए कि ये 1992 वाली लड़ाई नहीं है। ये 2014 की लड़ाई है जिसमें कर्मचारी इनको धोबी पछाड़ दांव लगा कर चित करेगा। कहीं ऐसा न हो कि पत्रिका की शुरुआत जिन परिस्थितियों में हुई थी, कहीं वापस वहीँ न पहुँच जाए।
[विजय शर्मा की एफबी वॉल से]
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