हमने आपको पहले ही बताया था कि मध्यप्रदेश में श्रम न्यायालयों मे चल रहे मजीठिया के मामलों में नईदुनिया जागरण प्रबंधन की हर चाल उलटी पड़ रही है। इसका एक ओर ताजा मामला सामने आया है।
जानकारी के मुताबिक ग्वालियर श्रम न्यायालय में चल रहे मामले कूट परीक्षण तक पहुंच गए हैं, लेकिन प्रबंधन बार-बार बहाना बनाकर मामलों को लटकाना चाहता है। प्रबंधन के वकील लेबर कोर्ट में बहाना बनाकर भागते हैं। पूर्व में जहां ग्वालियर हाईकोर्ट ने मामले में प्रबंधन को पांच-पांच हजार की कॉस्ट लगाई थी। इसमें सभी कर्मचारियों का प्रबंधन ने 09 अप्रैल को पांच-पांच हजार का नकद भुगतान कर दिया था। लेकिन 09 अप्रैल को राज्य अधिवक्ता संघ की हड़ताल के कारण मामले में कूट परीक्षण नहीं हो सका था और अगली तिथि 18 अप्रैल की निर्धारित हुई थी। 18 अप्रैल को कर्मचारी और उनके वकील पूरी तैयारी के साथ कूट परीक्षण के लिए श्रम न्यायालय पहुंचे थे। लेकिन प्रबंधन की ओर से एक जूनियर वकील कोर्ट में उपस्थित हुए और कूट परीक्षण के लिए अगली तारीख की मांग की।
कर्मचारियों के वकील ने इस पर आपत्ति ली और माननीय न्यायाधीश महोदय को प्रबंधन की धूर्तता से अवगत कराया। इस पर प्रबंधन के जूनियर वकील ने तर्क दिया कि उनके सीनियर वकील के यहां कोई कार्यक्रम है, इसलिए उन्हें अवसर दिया जाए। माननीय न्यायाधीश महोदय ने कर्मचारियों के वकील की आपत्ति सुनने के बाद प्रबंधन के वकील से स्पष्ट पूछा कि वे केवल हां या न में ये बताएं कि आज कूट परीक्षण करेंगे या नहीं। इस पर प्रबंधन का वकील बगले झांकने लगा। बात बिगड़ती देख बाहर आकर उसने अपने आकाओं को कोर्ट के रुख से अवगत कराया। इसके बाद सीनियर वकील भागे-भागे कोर्ट पहुंचे और उन्होंने भी तारीख देने की मांग की। इसके बाद पुन: न्यायाधीश महोदय ने कहा कि केवल अपना उत्तर हां या न में दें। इसके बाद जब प्रबंधन के वकील ने असमर्थता जताई तो माननीय न्यायाधीश महोदय ने प्रत्येक प्रकरण में 500-500 रुपए कॉस्ट लगा दी।
साथ ही माननीय न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रकरण में माननीय उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों में सुनवाई हो रही है। इसलिए मामलों को तय समय में निपटाने के लिए अब डे टू डे सुनवाई की जाएगी। इसके बाद सभी प्रकरणों में दो दिन बाद की तारीख दे दी गई है।
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जानकारी के मुताबिक ग्वालियर श्रम न्यायालय में चल रहे मामले कूट परीक्षण तक पहुंच गए हैं, लेकिन प्रबंधन बार-बार बहाना बनाकर मामलों को लटकाना चाहता है। प्रबंधन के वकील लेबर कोर्ट में बहाना बनाकर भागते हैं। पूर्व में जहां ग्वालियर हाईकोर्ट ने मामले में प्रबंधन को पांच-पांच हजार की कॉस्ट लगाई थी। इसमें सभी कर्मचारियों का प्रबंधन ने 09 अप्रैल को पांच-पांच हजार का नकद भुगतान कर दिया था। लेकिन 09 अप्रैल को राज्य अधिवक्ता संघ की हड़ताल के कारण मामले में कूट परीक्षण नहीं हो सका था और अगली तिथि 18 अप्रैल की निर्धारित हुई थी। 18 अप्रैल को कर्मचारी और उनके वकील पूरी तैयारी के साथ कूट परीक्षण के लिए श्रम न्यायालय पहुंचे थे। लेकिन प्रबंधन की ओर से एक जूनियर वकील कोर्ट में उपस्थित हुए और कूट परीक्षण के लिए अगली तारीख की मांग की।
कर्मचारियों के वकील ने इस पर आपत्ति ली और माननीय न्यायाधीश महोदय को प्रबंधन की धूर्तता से अवगत कराया। इस पर प्रबंधन के जूनियर वकील ने तर्क दिया कि उनके सीनियर वकील के यहां कोई कार्यक्रम है, इसलिए उन्हें अवसर दिया जाए। माननीय न्यायाधीश महोदय ने कर्मचारियों के वकील की आपत्ति सुनने के बाद प्रबंधन के वकील से स्पष्ट पूछा कि वे केवल हां या न में ये बताएं कि आज कूट परीक्षण करेंगे या नहीं। इस पर प्रबंधन का वकील बगले झांकने लगा। बात बिगड़ती देख बाहर आकर उसने अपने आकाओं को कोर्ट के रुख से अवगत कराया। इसके बाद सीनियर वकील भागे-भागे कोर्ट पहुंचे और उन्होंने भी तारीख देने की मांग की। इसके बाद पुन: न्यायाधीश महोदय ने कहा कि केवल अपना उत्तर हां या न में दें। इसके बाद जब प्रबंधन के वकील ने असमर्थता जताई तो माननीय न्यायाधीश महोदय ने प्रत्येक प्रकरण में 500-500 रुपए कॉस्ट लगा दी।
साथ ही माननीय न्यायालय ने स्पष्ट किया कि प्रकरण में माननीय उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों में सुनवाई हो रही है। इसलिए मामलों को तय समय में निपटाने के लिए अब डे टू डे सुनवाई की जाएगी। इसके बाद सभी प्रकरणों में दो दिन बाद की तारीख दे दी गई है।
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