Friday, 13 October 2017

मजीठिया: नवभारत के 47 कर्मचारियों ने लगाया क्लेम

मुंबई। महाराष्ट्र के प्रमुख हिंदी दैनिक नवभारत में माननीय सुप्रीमकोर्ट के 13 अक्टूबर यानि आज के आदेश का असर दिखने लगा है। यहां आज दिनांक 13 अक्टूबर को बांबे यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट संलग्न महाराष्ट्र मीडिया एंप्लाइज यूनियन से जुड़े नवभारत हिंदी दैनिक के 47 कर्मचारियों ने सामूहिक रुप से ठाणे लेबर कमिश्नर कार्यालय में मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार बकाये का क्लेम फाइल किया।
इसी बीच खबर आयी कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि छह माह के अंदर श्रम विभाग और श्रम न्यायालय में मजीठिया वेज बोर्ड से संबंधित सभी मामलों का निपटारा किया जाए। सुप्रीम कोर्ट के ताजे आदेश की खबर और ठाणे लेबर कमिश्नर कार्यालय में क्लेम फाइल की खबर मिलते ही नवभारत कर्मियों ने खुशी का इजहार किया और वहीं प्रबंधन की सांस फूलने लगी है।
शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्सपर्ट
9322411335
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एचटी बिल्डिंग के सामने सिर्फ एक मीडियाकर्मी नहीं मरा, मर गया लोकतंत्र और मर गए इसके सारे खंभे



शर्म मगर इस देश के मीडिया मालिकों, नेताओं, अफसरों और न्यायाधीशों को बिलकुल नहीं आती... ये जो शख्स लेटा हुआ है.. असल में मरा पड़ा है.. एक मीडियाकर्मी है... एचटी ग्रुप से तेरह साल पहले चार सौ लोग निकाले गए थे... उसमें से एक ये भी है... एचटी के आफिस के सामने तेरह साल से धरना दे रहा था.. मिलता तो खा लेता.. न मिले तो भूखे सो जाता... आसपास के दुकानदारों और कुछ जानने वालों के रहमोकरम पर था.. कोर्ट कचहरी मंत्रालय सरोकार दुकान पुलिस सत्ता मीडिया सब कुछ दिल्ली में है.. पर सब अंधे हैं... सब बेशर्म हैं... आंख पर काला कपड़ा बांधे हैं...

ये शख्स सोया तो सुबह उठ न पाया.. करते रहिए न्याय... बनाते रहिए लोकतंत्र का चोखा... बकते बजाते रहिए सरोकार और संवेदना की पिपहिरी... हम सब के लिए शर्म का दिन है... खासकर मुझे अफसोस है.. अंदर एक हूक सी उठ रही है... क्यों न कभी इनके धरने पर गया... क्यों न कभी इनकी मदद की... ओफ्ह.... शर्मनाक... मुझे खुद पर घिन आ रही है... दूसरों को क्या कहूं... हिमाचल प्रदेश के रवींद्र ठाकुर की ये मौत दरअसल लोकतंत्र की मौत है.. लोकतंत्र के सारे खंभों-स्तंभों की मौत है... किसी से कोई उम्मीद न करने का दौर है...

(यशवंत सिंह/भड़ास)


13 साल से न्‍याय की आस में धरना स्‍थल पर बैठे मीडियाकर्मी ने दमतोड़ा  http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/10/13.html?m=1



Thursday, 12 October 2017

मजीठिया पर आज सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को माजीठिया मामले में अहम फैसला सुनाते हुए देश के सभी राज्यों के श्रम विभाग एवं श्रम अदालतों को निर्देश दिया कि वे अखबार कर्मचारियों के मजीठिया संबंधी बकाये सहित सभी मामलों को छह महीने के अंदर निपटाएं।

सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति रंजन गोगोई एवं नवीन सिन्हा की पीठ ने ये निर्देश अभिषेक राजा बनाम संजय गुप्ता/दैनिक जागरण (केस नंबर 187/2017) मामले की सुनवाई करते हुए दिए। गौरतलब है कि मजीठिया के अवमानना मामले में 19 जून 2017 के फैसले में इस बात का जिक्र नहीं था जिसे लेकर अभिषेक राजा ने सुप्रीम कोर्ट से इस पर स्पष्टीकरण की गुहार लगाई थी। हालांकि स्पष्टीकरण की याचिका जुलाई में ही दायर कर दी गई थी मगर इस पर फैसला आज आया जिससे मीडियाकर्मियों में एक बार फिर खुशी की       लहर है।

आप सभी मीडियाकर्मियों से अपील है कि अपना बकाया हासिल करने के लिेए श्रम विभाग में क्लेम जरूर डालें अन्यथा आप इससे वंचित रह सकते हैं। अब अखबार मालिक किसी भी तरह से आनाकानी नहीं कर सकेंगे या फिर या मामले को लंबा नहीं खिच सकेंगे। अगर वे ऐसा करते हैं तो इस बार वे निश्चित रूप से विलफुल डिफेमेशन के दोषी करार दिए जाएंगे।

(साभर: 4पिलर)


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13 साल से न्‍याय की आस में धरना स्‍थल पर बैठे मीडियाकर्मी ने दमतोड़ा



नई दिल्‍ली। हिंदुस्‍तान टाइम्‍स के सामने पिछले 13 साल से न्‍याय की आस में बैठे रविंद्र ठाकुर बृहस्‍पतिवार सुबह धरने स्‍थल पर मृत पाए गए। लगभग 56-57 वर्षीय रविंद्र ठाकुर मूल रुप से हिमाचल प्रदेश के रहने वाले हैं। बाराखंभा पुलिस को रविंद्र के परिजनों का इंतजार है, जिससे वह उनके शव का पोस्‍टमार्टम करवा सके। 

हिंदुस्‍तान टाइम्‍स ने 2004 में लगभग 400 कर्मियों को एक झटके में सड़क पर ला कर खड़ा कर दिया था। जिसमें रविंद्र ठाकुर भी शामिल थे। इसके बाद शुरु हुई न्‍याय की जंग में रविंद्र ने अपने कई साथियों को बदहाल हालत में असमय दुनिया छोड़ते हुए देखा। बदहाली के दौर से गुजर रहे इनके कुछ साथियों ने तो खुदकुशी करने जैसे आत्‍मघाती कदम तक उठा लिए। अपने कई साथियों को कंधे देने वाला यह शख्‍स खुद इस तरह इस दुनिया से रुखस्‍त हो जाएगा किसी ने सोचा भी ना था।

रविंद्र ने पिछले 13 सालों में कई उतार-चढ़ाव देखे। कभी किसी कोर्ट से राहत की खबर के बाद चेहरे पर खुशी की लहर, तो कभी प्रबंधन द्वारा स्‍टे ले लेने पर चेहरे पर उपजी निराशा। रविंद्र के लिए तो कस्‍तूबरा गांधी मार्ग में हिंदुस्‍तान टाइम्‍स के कार्यालय के बाहर स्थित धरना स्‍थल ही जैसे घर बन गया हो। उसके साथियों के अनुसार वह पिछले कई सालों से अपने घर भी नहीं गए थे। वह रात में धरनास्‍थल पर ही सोते थे।

रोजगार का कोई अन्‍य साधन न होने की वजह से वह अपने साथियों व आसपास स्थित दुकानदारों पर निर्भर थे। कभी मिला तो खा लिया, नहीं मिला तो भूखे ही सो गए। इस फाकामस्‍ती के दौर में वह जल्‍द-जल्‍द बीमारी की पकड़ में भी आने लगे थे। परंतु उन्‍होंने कभी धरनास्‍थल नहीं छोड़ा। पिछले 13 साल से धरने स्‍थल पर रहने वाले रविंद्र ठाकुर की मौत की खबर पाकर वहां पहुंचे साथियों को उनके परिजनों के बारे में कोई जानकारी नहीं है। बस वे इतना ही जानते हैं कि उसका घर हिमाचल प्रदेश और पंजाब की सीमा पर कहीं स्थित है।

अपने कई साथियों को कंधे देने वाले इस शख्‍स की आत्‍मा को आज खुद अपनी पार्थिव देह के अंतिम संस्‍कार के लिए अपने परिजनों के कंधे की तलाश है। इस खबर को पढ़ने वालों से अनुरोध है कि वह इसको शेयर या फारवर्ड जरुर करें, जिससे असमय काल के गाल में गए जुझारु रविंद्र ठाकुर को उनकी अंतिम यात्रा में उनके परिजनों का कंधा मिल सके। भगवान उनकी आत्‍मा का शांति दे एवं हिंदुस्‍तान टाइम्‍स के निष्‍ठुर हो चुके प्रबंधन को सद्बुद्वि दे कि वह अपने इन कर्मियों की सुधि ले और उनके साथ न्‍याय करे।

(हिंदुस्‍तान टाइम्‍स के साथियों से मिले तथ्‍यों पर आधारित) 

Video: https://goo.gl/ckucFy

 


बड़ी खबर: एचटी के 400 लोगों ने मुकदमा जीता, होंगे बहाल, मिलेगा बकाया http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/05/400.html

Tuesday, 10 October 2017

मजीठिया: जाट की जीत से पत्रिका प्रबन्धन में जबरदस्त बौखलाहट, CCTV से रखी जा रही नजर

पत्रिका ग्वालियर के जितेंद्र जाट की शानदार जीत पत्रिका प्रबन्धन को हजम नहीं हो रही, इसीलिए जाट को जिस जगह बैठाया गया है उस जगह पर ख़ास तौर से CCTV कैमरा लगाया गया है ताकि यह देखा जा सके कि जाट से कौन कौन कर्मचारी बात कर रहा है? और जाट से बात करने वाले कर्मचारी को सजा दी जा सके। साथ ही जाट के CCTV रेंज से बाहर जाते ही फोन कर पूछा जाता है कि जाट इस समय कहाँ पर है? कहीं कर्मचारियों से बात कर उनको मजीठिया क्लेम के लिए तैयार तो नहीं कर रहा?

इस तरह की तमाम आशंकाओं के डर से जाट पर पत्रिका के हैड ऑफिस जयपुर और ग्वालियर से दोहरी नजर रखी जा रही है। वहीँ दूसरी तरफ भोपाल के साथियों का केस भी फैसले के नजदीक है जिसमें पत्रिका प्रबन्धन को 100 प्रतिशत आशंका है कि भोपाल से भी 440 वोल्ट का झटका लगने वाला है इसीलिए भोपाल लेबर कोर्ट में न तो पत्रिका के लीगल मामले देखने वाला उपस्थित हो रहा और ना ही पत्रिका का वकील यह कह रहा कि जवाब जयपुर से आएगा।
वर्ना अभी तक पत्रिका का वकील जयपुर से मिले दिशानिर्देश के अनुसार ही काम किया करता था लेकिन अब वकील अपने हिसाब से ही कोर्ट की कार्यवाही निबटा रहा है।
इससे साफ़ तौर पर पत्रिका प्रबन्धन की घबराहट नजर आ रही है।

जाट की जीत से पहले तक अपने आपको चाणक्य मानने वाले पत्रिका के आला अधिकारियों ने अपने मालिकों को आश्वस्त किया हुआ था कि आप चिंता मत करो हम बैठे हुए हैं हम कर्मचारियों को जीतने नहीं देंगे लेकिन हुआ उलटा ही। जिससे पत्रिका के मालिक चिढ गए उन चाणक्यों पर, और इसी वजह से आला अधिकारियों का फ्यूज उड़ गया। अब उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा कि क्या किया जाये?

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मजीठिया: पत्रिका को मुंह की खानी पड़ी, जाट आज करेगा जॉइन http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/10/blog-post_4.html?m=1


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Wednesday, 4 October 2017

मजीठिया: पत्रिका को मुंह की खानी पड़ी, जाट आज करेगा जॉइन

पत्रिका ग्वालियर से मजीठिया के लड़ाके जितेंद्र जाट को पत्रिका प्रबन्धन ने द्वेषवश टर्मिनेट कर दिया था। जाट ने इस टर्मिनेशन को ग्वालियर लेबरकोर्ट में चुनौती दी। लगभग 6 माह इस मामले की सुनवाई चली जिसमें पत्रिका प्रबन्धन ने झूठ छल प्रपंच का जमकर सहारा लिया लेकिन पत्रिका प्रबन्धन को मुंह की खानी पड़ी और लेबर कोर्ट ने जितेंद्र जाट के टर्मिनेशन को अवैध करार देते हुए जाट को नौकरी पर बहाल करने के आदेश कर दिए। पत्रिका प्रबन्धन ने लेबर कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी।

हाई कोर्ट में जितेंद्र जाट की तरफ से आवेदन दिया गया कि मामले की सुनवाई से पहले 17 ख का पालन करवाया जाए जिसको हाईकोर्ट ने स्वीकृति देते हुए पत्रिका प्रबन्धन को आदेश दिया कि जितेंद्र जाट को नौकरी पर बहाल किया जाय फिर मामले की सुनवाई शुरू होगी।

इस पर पत्रिका प्रबन्धन की हवा निकल गई और खिसियाते हुए कोर्ट की अवमानना के डर से जाट को जॉइनिंग लेटर देना पड़ा। लेटर मिलने के बाद जाट आज जॉइन करेंगे। वहीँ दूसरी तरफ पत्रिका भोपाल के 6 कर्मचारियों के ट्रांसफर का केस और 3 कर्मचारियों का टर्मिनेशन केस भी भोपाल लेबर कोर्ट में निर्णय के करीब है।

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Tuesday, 3 October 2017

नवभारत के निदेशक के खिलाफ ड्राइवर ने कराया मामला दर्ज

महाराष्ट्र के नई मुम्बई से एक बड़ी खबर आ रही है। यहां  नवभारत अखबार के निदेशक के खिलाफ उन्ही के ड्राइवर द्वारा दलित उत्पीड़न का मामला दर्ज कराने की सूचना सामने आई है ।

सूत्रों के मुताबिक महाराष्ट्र मीडिया एंप्लाइज यूनियन नवभारत इकाई सदस्यों द्वारा विजयादशमी के दिन गेट मीटिंग में शामिल नवभारत के निदेशक डी वी शर्मा के ड्राइवर रमाकांत को शर्मा द्वारा दलित विरोधी गाली देते हुए कंपनी से निकाल दिया गया। रमाकांत ने  दिनांक 3 अक्टूबर को शाम 4:00 बजे सानपाड़ा पुलिस स्टेशन में शर्मा के खिलाफ मामला दर्ज कराया। इसके बाद पुलिस अधिकारी काकड़े ने  शर्मा को फोन कर बुलाया तो शर्मा ने शाम 7:00 बजे आने की बात कही, लेकिन वे पुलिस स्टेशन  नही पहुंचे। शर्मा ने नवभारत के एक और कर्मचारी संतोष जयसवाल को भी गाली देते हुए कंपनी से निकाल देने की धमकी दी है। इसके बाद संतोष जायसवाल ने भी सानपाड़ा पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज कराया । ये दोनों कर्मचारी मजीठिया की मांग को लेकर और स्थाई करने की मांग को लेकर यूनियन से जुड़े हुए हैं, लेकिन शर्मा को इन दोनों का यूनियन से जुड़ना नागवार गुजरा। इसलिए शर्मा ने दोनों को बुलाकर यूनियन से  बाहर निकलने की बात की और ना निकलने पर दलित शब्द का उपयोग करते हुए गालियां दी तथा कंपनी से निकालने की धमकी दी ।रमाकांत ड्राइवर को कल  बाहर निकाल भी दिया गया। शर्मा की इस कार्यवाही से आहत ड्राइवर रमाकांत ने सानपाड़ा पुलिस स्टेशन मैं मामला दर्ज कराया है। पुलिस फिलहाल पूरे मामले की छानबीन कर रही है।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आर टी आई एक्सपर्ट
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