नवभारत मैनेजमेंट की मनमानी से सैकड़ों कर्मचारी परेशान
आवाज दबाने के लिए अपना रहा तरह-तरह के हथकंडे
पत्रकारों और गैर पत्रकारों की मेहनत पर हर महीने करोड़ों रुपये विज्ञापन के जरिए कमाने वाला मुंबई से प्रकाशित नवभारत का मैनेजमेंट कर्मचारियों का लगातार शोषण कर रहा है। कोरोना काल के पहले दर्जनों कर्मचारी मैनेजमेंट के शोषण का शिकार हुए। कोरोना काल के दौरान मानो मैनेजमेंट की लॉटरी लग गई हो। इस दौरान मैनेजमेंट ने कई कर्मचारियों से जबरन इस्तीफे लिए और उन्हें कान्ट्रैक्ट पर रखा, जिन कर्मचारियों ने कान्ट्रैक्ट स्वीकार नहीं किया उनसे जबरन इस्तीफे लेकर उनके मेहनत की कमाई मसलन ग्रेज्युटी के पैसे मात्र पांच-पांच हजार रुपये महीने का ही दिया। यह खुलासा स्प्राउट्स की स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम ने किया है।
टीम के सदस्यों से कई कर्मचारियों ने मिलकर अपनी आपबीती सुनाई। इनमें कुछ कर्मचारी वर्षों से परमानेंट और सैलरी के लिए कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे हैं। इस उम्मीद से कि एक दिन न्याय मिलेगा। नवभारत प्रबंधन की मनमानी यहीं समाप्त नहीं हुई। कर्मचारियों ने पीएफ डिपार्टमेंट से भी शिकायत की है, जिसमें कहा है कि अक्टूबर 1997 से शुरू हुआ अखबार 2005 तक करीब आधा दर्जन कर्मचारियों का डिडेक्शन नहीं किया। वहीं जिन लोगों का किया वह भी पीएफ के नियम के अनुसार नहीं कर रहा है।
कर्मचारी पीएफ वाशी कार्यालय से आर्डर निकालने में सफल हुए, लेकिन मामला ट्रिब्यूनल कोर्ट में अटका हुआ है। उधर कुछ कर्मचारी ठाणे लेबर कमिश्नर के पास न्याय की उम्मीद लेकर गए, लेकिन उन्हें लेबर कोर्ट भेज दिया गया। यहां भी तारीख मिल रही है। इस बीच नवभारत मैनेजमेंट पुलिस का सहारा लेना शुरू किया है और कर्मचारियों को छूठे केस में फंसाने की कोशिश कर रहा है।
रीडर, विज्ञापनदाता व सरकार की आंखों में झोक रहा धूल
शातिर दिमाग नवभारत मैनेजमेंट यहीं तक नहीं रुका है, उसने आरएनआई अधिकारियों की मिलीभगत से लाखों प्रतियां छापने का सर्टिफिकेट लेकर हर महीने डीएवीपी और डीजीआईपीआर के अलावा प्राइवेट विज्ञापन के जरिए करोड़ों कमा रहा है।
वास्तविकता सामने यह है कि कोरोना काल के पहले नवभारत मुंबई की 30 से 40 हजार के बीच में प्रतियां छपती थीं, जबकि कोराना के बाद यह घटकर 10 से 12 हजार के बीच में आ गई हैं।
इसके बावजूद आरएनआई अधिकारियों की मिलीभगत से मैनेजमेंट ने मुंबई एडीशन 2 लाख 95 हजार, नाशिक एडीशन का 1 लाख 544 हजार और पुणे एडीशन का 2 लाख 4 हजार 804 प्रतियां प्रतिदिन छापने का सर्टिफिकेट लिया है, जबकि स्प्राउट्स की स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम की छानबीन में पता चला कि 11 अप्रैल 2018 को मुंबई के लिए 38 हजार 373, नाशिक के लिए 2 हजार 263, पुणे के लिए 11 हजार 206 प्रतियां ही नवभारत की छापी गई हैं।
इस संबंध में 26 मई 2022 को तत्कालीन मुंबई पुलिस कमिश्नर संजय पांडेय से जांच की मांग करते हुए एक एविडेंस के साथ पत्र लिखा गया, लेकिन पुलिस की ओर से अभी तक छानबीन किए जाने की जानकारी नहीं मिली है।
Sprouts Exclusive .
Unmesh Gujarathi
Editor in Chief
sproutsnews.com
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