नई दिल्ली, 9 जनवरी, 2018। सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया को खुली छूट देते हुए कहा कि किसी गलत रिपोर्टिग के लिए प्रेस को मानहानि के मामलों में नहीं घसीटना चाहिए। अभिव्यक्ति की आजादी और मीडिया के भाव को पूर्ण अनुमति होनी चाहिए। साथ ही दलील दी कि लोकतंत्र में बर्दाश्त करना सीखना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पटना हाईकोर्ट के एक पत्रकार और मीडिया हाउस के मानहानि के मामले को खारिज करके खिलाफ अपील को खारिज कर दिया।
जस्टिस एएम खानविल्कर और डीवाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने कहा कि लोकतंत्र में आप को (याचिकाकर्ता) सहन करना सीखना चाहिए। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि किसी घोटाले के आरोप की रिपोर्टिंग में थोड़ी गलती या उत्सुकता दिखाई जा सकती है। लेकिन हमें अभिव्यक्ति की आजादी देनी चाहिए। प्रेस को अपनी भावना व्यक्ति करने का पूरा मौका मिलना चाहिए। कुछ गलत रिपोर्टिग की गुंजाइश रहती है लेकिन इसके लिए उन्हें मानहानि के मामलों में नहीं घसीटना चाहिए।
अपने पूर्ववर्ती फैसले को उचित ठहराते हुए मानहानि के मामले पीनल लॉ के लिए वैध हैं। इसके प्रावधान संवैधानिक हैं। लेकिन किसी घोटाले के बारे में कोई गलत रिपोर्ट मानहानि का मामला नहीं बनता है।
गौरतलब है कि पटना हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका में बिहार की पूर्व महिला विधायक रहमत फातिमा अमानुल्लाह ने कहा था कि उनके पिता वरिष्ठ ब्यूरोक्रेट अफजल अमानुल्लाह और मां परवीन बिहार सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। लेकिन हिंदी न्यूज चैनल आईबीएन7 की गलत खबर से पूरे परिवार की बदनामी हुई है। अवमानना का मामला अप्रैल 2010 में बिहिया इंडस्ट्रियल एरिया में जमीन आवंटन में कथित धांधली की खबर से जुड़ा है। याचिका के मुताबिक हिंदी न्यूज चैनल ने उनके और परिवार खिलाफ अपमानित करने वाली टिप्पणियां की थीं। इसलिए याचिकाकर्ता ने सरदेसाई, चैनल व इससे जुड़े अन्य पत्रकार को आरोपी बनाया था, लेकिन पटना हाईकोर्ट ने अवमानना का मामला खारिज कर दिया था तो इस महिला नेता ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई।
(साभार: pti/एजेंसियां)
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पटना हाईकोर्ट के एक पत्रकार और मीडिया हाउस के मानहानि के मामले को खारिज करके खिलाफ अपील को खारिज कर दिया।
जस्टिस एएम खानविल्कर और डीवाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने कहा कि लोकतंत्र में आप को (याचिकाकर्ता) सहन करना सीखना चाहिए। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि किसी घोटाले के आरोप की रिपोर्टिंग में थोड़ी गलती या उत्सुकता दिखाई जा सकती है। लेकिन हमें अभिव्यक्ति की आजादी देनी चाहिए। प्रेस को अपनी भावना व्यक्ति करने का पूरा मौका मिलना चाहिए। कुछ गलत रिपोर्टिग की गुंजाइश रहती है लेकिन इसके लिए उन्हें मानहानि के मामलों में नहीं घसीटना चाहिए।
अपने पूर्ववर्ती फैसले को उचित ठहराते हुए मानहानि के मामले पीनल लॉ के लिए वैध हैं। इसके प्रावधान संवैधानिक हैं। लेकिन किसी घोटाले के बारे में कोई गलत रिपोर्ट मानहानि का मामला नहीं बनता है।
गौरतलब है कि पटना हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर याचिका में बिहार की पूर्व महिला विधायक रहमत फातिमा अमानुल्लाह ने कहा था कि उनके पिता वरिष्ठ ब्यूरोक्रेट अफजल अमानुल्लाह और मां परवीन बिहार सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। लेकिन हिंदी न्यूज चैनल आईबीएन7 की गलत खबर से पूरे परिवार की बदनामी हुई है। अवमानना का मामला अप्रैल 2010 में बिहिया इंडस्ट्रियल एरिया में जमीन आवंटन में कथित धांधली की खबर से जुड़ा है। याचिका के मुताबिक हिंदी न्यूज चैनल ने उनके और परिवार खिलाफ अपमानित करने वाली टिप्पणियां की थीं। इसलिए याचिकाकर्ता ने सरदेसाई, चैनल व इससे जुड़े अन्य पत्रकार को आरोपी बनाया था, लेकिन पटना हाईकोर्ट ने अवमानना का मामला खारिज कर दिया था तो इस महिला नेता ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई।
(साभार: pti/एजेंसियां)
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