साथियों, हम सभी जहां बेसब्री से सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं और वहीं
समाचार पत्र प्रबंधन लगातार कर्मचारियों के उत्पीड़न पर लगा हुआ हैं और दूसरों के
हक की आवाज उठाने वाली हमारी कौम आज अपने हक के लिए ढंग से आवाज तक भी नहीं उठा
पा रही है। इसके पीछे हमारा खुद का डर, अपने कानूनी हकों के प्रति अज्ञानता, निजी स्वार्थ, हमारे साथ तो
नहीं हो रहा... ऐसी सोच के साथ-साथ कर्मचारियों के लिए ईमानदारी से संघर्ष करने
वाली यूनियनों की संख्या में लगातार होती कमी भी है। भास्कर व दैनिक जागरण जैसे
बड़े अखबारों में यूनियनों का ना होना और जिनमें हैं भी उनका दायरा लगातार सिमटता
जाना भी। इसी का फायदा ये समाचार मालिक उठा रहे हैं। इसी का नजीता है कि वे जबरन
इस्तीफा मांगते हैं और हम आसानी से उन्हें अपना इस्तीफा सौंप देते हैं। शायद
इतनी आसानी से हिरण भी शेर का शिकार नहीं बनता, जितनी आसानी से हम बन जाते हैं।
अभी तीन चार महीने पहले ही हिंदुस्तान नोएडा ने अपने मशीन के 15-16
कर्मचारियों से बर्खास्तगी और ग्रेच्युटी आदि रोकने की धमकी देकर जबरन इस्तीफा
ले लिया और कई अन्य पर इस्तीफा देने का दबाव बनाया हुआ है। जबरन इस्तीफा देने
वाले वे साथी अब सड़क पर हैं या कोई छोटा-मोटा काम कर गुजर बसर कर रहे हैं। वहीं, भास्कर ने भी
जबरन इस्तीफा अभियान चलाया हुआ है, यहां बस इतना ही अंतर है कि जिन साथियों के
इस्तीफे लिए गए हैं उनमें से ज्यादातर अभी संस्थान में ही कार्यरत हैं। इनके
इस्तीफों का कहां और कैसे इस्तेमाल होगा किसी को नहीं पता। ऐसा ही कुछ अन्य
संस्थानों में भी चल रहा है या चल चुका है। आज समाज जैसे कुछ समाचार-पत्रों में
तो स्थायी कर्मियों को तीन साल के अनुबंध पत्र दे दिए गए।
क्या खो रहे हैं आप
प्रबंधन एक सोची समझी नीति के तहत काम कर रहा है। उसे पता है 7 फरवरी 2014 में
मजीठिया वेजबोर्ड और वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट 1955 को खत्म करने को लेकर सिविल
पिटिशन 246/2011 के साथ सुप्रीम कोर्ट में दायर उनकी अन्य सभी याचिकाएं खारिज हो
गई थी। उसके बाद उनकी रिव्यू पिटिशन भी खारिज हो गई। ऐसे में उनको अपने संस्थान
में मजीठिया वेजबोर्ड आज नहीं तो कल लागू करना ही पड़ेगा और उन्हें अपने कर्मियों
को मजीठिया के अनुसार वेतन और एरियर का भुगतान करना ही पड़ेगा। ऐसे में व़ह
मजीठिया वेजबोर्ड के तहत आने वाले कर्मियों की संख्या में कमी करके भविष्य में
अपने ऊपर आने वाले आर्थिक बोझ को कम करने का प्रयास कर रहे हैं।
यहां आने वाले बोझ शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया गया है, क्योंकि जिन
कर्मियों का वह इस्तीफा नहीं ले पाएगा उन्हें उसे मजीठिया के अनुसार एरियर तो
देना ही पड़ेगा वहीं, फिटमैन और प्रमोशन के अनुसार व़ेजबोर्ड के
सभी लाभ देने पड़ेंगे तब तक जब तक की वह नौकरी पर रहता है। यानि मजीठिया के अनुसार
जो वेतन बनता है वो देना पड़ेगा। आपको समझाने के लिए नीचे एक उदाहरण दे रहे हैं-
मजीठिया के अनुसार नवंबर 2011
में ग्रेड ए के समाचार पत्र में एक्स श्रेणी के शहर में भर्ती सीनियर सब एडिटर
रमेश का 17,000 रुपए बेसिक के हिसाब से 37,761 रुपए वेतन बनता है। जो कि बढ़ते-बढ़ते
मई 2017 में 63,163 रुपये हो जाता है। इसमें रात्रि भत्ता शामिल नहीं है।
ऐसे में रमेश का नवंबर 2011 से मई 2017 तक का औसत वेतन 25 हजार रुपये प्रतिमाह
मान लिया जाए तो ऱमेश को कम से कम 15 लाख रुपये का एरियर संस्थान को देना पड़ेगा
(इसमें लगभग डेढ़ लाख रुपये के करीब रात्रि भत्ता और पीएफ, एलटीए आदि का
अंतर शामिल नहीं है)। इसके अलावा इसका बढ़ा हुआ वेतन अर्थात कम से कम 63,163 रुपये
हर माह देने पड़ेंगे और इसके अलावा ना चाहते हुए भी मजीठिया के अनुसार हर साल वेतन
में बढ़ोतरी और हर पांच साल में एक विशेष एक्रीमेंट और हर दस साल में एक प्रमोशन
देना पड़ेगा। प्रबंधन जानता है कि वेजबोर्ड के अंतर्गत आने वाले रमेश जैसे
कर्मियों का वेतन कुछ समय बाद लाख रुपये से ऊपर पहुंच जाएगा। ऐसे में उनकी ग्रेच्युटी
और पीएफ का एमाउंट भी बढ़ता जाएगा।
इसलिए वे जबरन इस्तीफा अभियान चलाए हुए हैं कि एरियर से नहीं बच सकते तो कम
से कम बढ़ते हुए वेतनमान पर तो कैंची चला दी जाए। कैसे इसे भी उदाहरण देकर समझाते
हैं।
संस्थान ने रमेश के साथ ही उसी तिथि और पद पर भर्ती ओम से मई 2017 में जबरन
इस्तीफा ले लिया। अब जब संस्थान को मजीठिया वेजबोर्ड लागू करना पड़ेगा तो रमेश
अपने 15 लाख रुपये के एरियर के साथ कम से कम 21510 के बेसिक पर 63,163 रुपये
वेतनमान के रुप में प्राप्त करेगा (रात्रि भत्ता शामिल नहीं)। वहीं, ओम के हाथ
लगेंगे एरियर के केवल 15 लाख रुपये। यदि कंपनी ओम को उसी पद पर नई भर्ती दिखाकर
नौकरी पर रखती भी है तो, उसका 17,000 के बेसिक के अनुसार वेतनमान
50,129 रुपये होगा (इसमें रात्रि भत्ता शामिल नहीं है)। यानि कि हर महीने कम से
कम 13 हजार रुपये और पीएफ, ग्रेच्युटी, एलटीए, प्रमोशन आदि में नुकसान, जोकि समय के
साथ-साथ तेजी से बढ़ता ही जाएगा। और यदि हिंदुस्तान के साथियों की तरह नौकरी पर
नहीं रखती हैं तो अब आप खुद समझ सकते हैं आपका कितना बड़ा नुकसान हो रहा है।
ना दें जबरन इस्तीफा
उपरोक्त उदाहरणों से आपको वस्तुस्थिति समझ में आ गई होगी। हिंदुस्तान के
कुछ साथियों ने ग्रेच्युटी की मामूली सी राशि रुकने के डर से और कुछ ने अन्य
कारणों से इस्तीफा दे दिया। संस्थान ने इस्तीफा लेने के बाद उन्हें तुरंत बाहर
का रास्ता दिखा दिया। ऐसे में इस्तीफा देकर क्या आप भी उनकी श्रेणी में आना
चाहते हैं। इसलिए यदि आपसे संस्थान जबरन ग्रेच्युटी रोकने, बर्खास्तगी, तबादले आदि की
धमकी देकर इस्तीफा मांगता है तो कतई न दे और कानूनी उपायों को अपनाने की तरफ कदम
बढ़ाए।
क्या करें
ऐसा नहीं है सुप्रीम कोर्ट इससे अनजान है, सुनवाई के दौरान यह मुद्दा हमारे वकीलों
द्वारा कई बार उठाया जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी 2016 की सुनवाई के बाद
दिए ऑर्डर में उल्लेख किया है... It has been
brought to our notice by the learned counsels for some of the contesting
parties that in case of some establishments, details of which need not be
specifically mentioned herein, employees have been retrenched/terminated and in
respect of certain other establishments the employees have been
forced/compelled to sign undertakings which were later on used as to make out
declarations that the employees do not desire to be covered by the Wage Board
reommendations.
जबरन इस्तीफे के एक मामले का उल्लेख मध्यप्रदेश श्रमायुक्त द्वारा सुप्रीम
कोर्ट में दायर रिपोर्ट में भी है। जिसमें पेज नंबर 20 पर भास्कर के साथी sanjay kumar chuhan के Forced Resignation का मामला इंदौर उप श्रमायुक्त द्वारा लेबर कोर्ट को रेफर करने का जिक्र है।
इसके अलावा कुछ अन्य साथियों ने भी अलग-अलग राज्यों में जबरन इस्तीफा देने
के बाद उप श्रमायुक्त कार्यालय में अपनी शिकायत दर्ज करवाने के साथ रिकवरी भी लगा
रखी है, जिनपर सुनवाई जारी
है। इसलिए हमारा उन सभी साथियों से अनुरोध है जिनका जबरन इस्तीफा प्रबंधन ने लिया
है, वे पुलिस में
एफआईआर दर्ज कराएं। हम जानते हैं एफआईआर दर्ज कराने में आपको कई दिक्कतों का
सामना करना पड़ेगा, क्योंकि प्रभावशाली समाचार पत्र प्रबंधन के
कारण पुलिस आपकी एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर सकती है। ऐसे में यदि आपके राज्य
में ऑनलाइन पुलिस शिकायत दर्ज कराने की सुविधा है तो वहां ऑनलाइन एफआईआर दर्ज
करवाएं। नहीं तो केस लड़ रहे अपने साथियों से संपर्क कर उनकी मदद मांगे। इसके बाद
आप रिकवरी बनवाकर और किसी कानून के जानकार से मैटर लिखवाकर डीएलसी में 17(1) और
जबरन इस्तीफे के खिलाफ अलग-अलग केस लगवाएं। डीएलसी में दायर 17(1) की रिकवरी और
इस्तीफे के खिलाफ लगवाए गए केस की प्रतिलिपि पर मोहर लगवाना व साइन करवाना न
भूलें।
(हिंदुस्तान व भास्कर के साथियों से प्राप्त
तथ्यों पर आधारित)
हम आपकी सुविधा के लिए मजीठिया केस से जुड़े कुछ वकीलों का संपर्क नंबर दे रहे
हैं, आप इनसे बेहिचक बात कर सकते हैं।
वरिठ वकील परमानंद पांडेय जी
09868553507
parmanand.pandey@gmail.com
वरिठ वकील उमेश शर्मा जी
9868235388
दिनेश तिवारी जी (प्रभात खबर प्रबंधन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से स्थानांतरण
पर स्टे लेने वाले वकील)
9210004761
इनके अलावा आप इन साथियों से भी संपर्क कर सकते
हैं-
Vinod Kohli ji – 09815551892
President, Chandigarh-Punjab Union of Journalists (CPUJ)
Indian Journalists Union
kohlichd@gmail.com
रविंद्र अग्रवाल जी
9816103265
ravi76agg@gmail.com
राकेश वर्मा जी
9829266063
शशिकांत सिंह जी
पत्रकार और आर टी आई एक्टिविस्ट
9322411335
महेश कुमार जी
9873029029
kmahesh0006@gmail.com
प्रदीप गौड़ जी
9928092537
पुरुषोत्तम जी
9810718633
पुरुषोत्तम जी
9810718633
महेश साकुरे जी
8275284645
शारदा त्रिपाठी जी
9452108610
मयंक जैन जी
9300124476
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हमें क्यों चाहिए मजीठिया भाग-17D: सभी ग्रेड के साथी
एरियर बनाते हुए इन बातों का रखें ध्यान http://goo.gl/Npp9Hp
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नवभारत के 400 मीडियाकर्मियो
ने बनायी यूनियन http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/05/400.html
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मजीठिया की मांग
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कर रहे मीडिया मालिक, लागू हो मजीठिया सिफारिशें
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