Monday, 29 May 2017

मजीठिया: बर्खास्‍तगी, तबादले की धमकी से ना डरे, ना दे जबरन इस्‍तीफा

साथियों, हम सभी जहां बेसब्री से सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं और वहीं समाचार पत्र प्रबंधन लगातार कर्मचारियों के उत्‍पीड़न पर लगा हुआ हैं और दूसरों के हक की आवाज उठाने वाली हमारी कौम आज अपने हक के‍ लिए ढंग से आवाज तक भी नहीं उठा पा रही है। इसके पीछे हमारा खुद का डर, अपने कानूनी हकों के प्रति अज्ञानता, निजी स्‍वार्थ, हमारे साथ तो नहीं हो रहा... ऐसी सोच के साथ-साथ कर्मचारियों के लिए ईमानदारी से संघर्ष करने वाली यूनियनों की संख्‍या में लगातार होती कमी भी है। भास्‍कर व दैनिक जागरण जैसे बड़े अखबारों में यूनियनों का ना होना और जिनमें हैं भी उनका दायरा लगातार सिमटता जाना भी। इसी का फायदा ये समाचार मालिक उठा रहे हैं। इसी का नजीता है कि वे जबरन इस्‍तीफा मांगते हैं और हम आसानी से उन्‍हें अपना इस्‍तीफा सौंप देते हैं। शायद इतनी आसानी से हिरण भी शेर का शिकार नहीं बनता, जितनी आसानी से हम बन जाते हैं।

अभी तीन चार महीने पहले ही हिंदुस्‍तान नोएडा ने अपने मशीन के 15-16 कर्मचारियों से बर्खास्‍तगी और ग्रेच्‍युटी आदि रोकने की धमकी देकर जबरन इस्‍तीफा ले लिया और कई अन्‍य पर इस्‍तीफा देने का दबाव बनाया हुआ है। जबरन इस्‍तीफा देने वाले वे साथी अब सड़क पर हैं या कोई छोटा-मोटा काम कर गुजर बसर कर रहे हैं। वहीं, भास्‍कर ने भी जबरन इस्‍तीफा अभियान चलाया हुआ है, यहां बस इतना ही अंतर है कि जिन साथियों के इस्‍तीफे लिए गए हैं उनमें से ज्‍यादातर अभी संस्‍थान में ही कार्यरत हैं। इनके इस्‍तीफों का कहां और कैसे इस्‍तेमाल होगा किसी को नहीं पता। ऐसा ही कुछ अन्‍य संस्‍थानों में भी चल रहा है या चल चुका है। आज समाज जैसे कुछ समाचार-पत्रों में तो स्‍थायी कर्मियों को तीन साल के अनुबंध पत्र दे दिए गए।

क्‍या खो रहे हैं आप
प्रबंधन एक सोची समझी नीति के तहत काम कर रहा है। उसे पता है 7 फरवरी 2014 में मजीठिया वेजबोर्ड और वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट 1955 को खत्‍म करने को लेकर सिविल पिटिशन 246/2011 के साथ सुप्रीम कोर्ट में दायर उनकी अन्‍य सभी याचिकाएं खारिज हो गई थी। उसके बाद उनकी रिव्‍यू पिटिशन भी खारिज हो गई। ऐसे में उनको अपने संस्‍थान में मजीठिया वेजबोर्ड आज नहीं तो कल लागू करना ही पड़ेगा और उन्‍हें अपने कर्मियों को मजीठिया के अनुसार वेतन और एरियर का भुगतान करना ही पड़ेगा। ऐसे में व़ह मजीठिया वेजबोर्ड के तहत आने वाले कर्मियों की संख्‍या में कमी करके भविष्‍य में अपने ऊपर आने वाले आर्थिक बोझ को कम करने का प्रयास कर रहे हैं।

यहां आने वाले बोझ शब्‍द का इस्‍तेमाल इसलिए किया गया है, क्‍योंकि जिन कर्मियों का वह इस्‍तीफा नहीं ले पाएगा उन्‍हें उसे मजीठिया के अनुसार एरियर तो देना ही पड़ेगा वहीं, फि‍टमैन और प्रमोशन के अनुसार व़ेजबोर्ड के सभी लाभ देने पड़ेंगे तब तक जब तक की वह नौकरी पर रहता है। यानि मजीठिया के अनुसार जो वेतन बनता है वो देना पड़ेगा। आपको समझाने के लिए नीचे एक उदाहरण दे रहे हैं-

मजीठिया के अनुसार नवंबर 2011 में ग्रेड ए के समाचार पत्र में एक्‍स श्रेणी के शहर में भर्ती सीनियर सब एडिटर रमेश का 17,000 रुपए बेसिक के हिसाब से 37,761 रुपए वेतन बनता है। जो कि बढ़ते-बढ़ते मई 2017 में 63,163 रुपये हो जाता है। इसमें रात्रि भत्‍ता शामिल नहीं है।

ऐसे में रमेश का नवंबर 2011 से मई 2017 तक का औसत वेतन 25 हजार रुपये प्रतिमाह मान लिया जाए तो ऱमेश को कम से कम 15 लाख रुपये का एरियर संस्‍थान को देना पड़ेगा (इसमें लगभग डेढ़ लाख रुपये के करीब रात्रि भत्‍ता और पीएफ, एलटीए आदि का अंतर शामिल नहीं है)। इसके अलावा इसका बढ़ा हुआ वेतन अर्थात कम से कम 63,163 रुपये हर माह देने पड़ेंगे और इसके अलावा ना चाहते हुए भी मजीठिया के अनुसार हर साल वेतन में बढ़ोतरी और हर पांच साल में एक विशेष एक्रीमेंट और हर दस साल में एक प्रमोशन देना पड़ेगा। प्रबंधन जानता है कि वेजबोर्ड के अंतर्गत आने वाले रमेश जैसे कर्मियों का वेतन कुछ समय बाद लाख रुपये से ऊपर पहुंच जाएगा। ऐसे में उनकी ग्रेच्‍युटी और पीएफ का एमाउंट भी बढ़ता जाएगा।

इसलिए वे जबरन इस्‍तीफा अभियान चलाए हुए हैं कि एरियर से नहीं बच सकते तो कम से कम बढ़ते हुए वेतनमान पर तो कैंची चला दी जाए। कैसे इसे भी उदाहरण देकर समझाते हैं।

संस्‍थान ने रमेश के साथ ही उसी तिथि और पद पर भर्ती ओम से मई 2017 में जबरन इस्‍तीफा ले लिया। अब जब संस्‍थान को मजीठिया वेजबोर्ड लागू करना पड़ेगा तो रमेश अपने 15 लाख रुपये के एरियर के साथ कम से कम 21510 के बेसिक पर 63,163 रुपये वेतनमान के रुप में प्राप्‍त करेगा (रात्रि भत्‍ता शामिल नहीं)। वहीं, ओम के हाथ लगेंगे एरियर के केवल 15 लाख रुपये। यदि कंपनी ओम को उसी पद पर नई भर्ती दिखाकर नौकरी पर रखती भी है तो, उसका 17,000 के बेसिक के अनुसार वेतनमान 50,129 रुपये होगा (इसमें रात्रि भत्‍ता शामिल नहीं है)। यानि कि हर महीने कम से कम 13 हजार रुपये और पीएफ, ग्रेच्‍युटी, एलटीए, प्रमोशन आदि में नुकसान, जोकि समय के साथ-साथ तेजी से बढ़ता ही जाएगा। और यदि हिंदुस्‍तान के साथियों की तरह नौकरी पर नहीं रखती हैं तो अब आप खुद समझ सकते हैं आपका कितना बड़ा नुकसान हो रहा है।

ना दें जबरन इस्‍तीफा 
उपरोक्‍त उदाहरणों से आपको वस्‍तुस्थिति समझ में आ गई होगी। हिंदुस्‍तान के कुछ साथियों ने ग्रेच्‍युटी की मामूली सी राशि रुकने के डर से और कुछ ने अन्‍य कारणों से इस्‍तीफा दे दिया। संस्‍थान ने इस्‍तीफा लेने के बाद उन्‍हें तुरंत बाहर का रास्‍ता दिखा दिया। ऐसे में इस्‍तीफा देकर क्‍या आप भी उनकी श्रेणी में आना चाहते हैं। इसलिए यदि आपसे संस्‍थान जबरन ग्रेच्‍युटी रोकने, बर्खास्‍तगी, तबादले आदि की धमकी देकर इस्‍तीफा मांगता है तो कतई न दे और कानूनी उपायों को अपनाने की तरफ कदम बढ़ाए।

क्‍या करें
ऐसा नहीं है सुप्रीम कोर्ट इससे अनजान है, सुनवाई के दौरान यह मुद्दा हमारे वकीलों द्वारा कई बार उठाया जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी 2016 की सुनवाई के बाद दिए ऑर्डर में उल्‍लेख किया है... It has been brought to our notice by the learned counsels for some of the contesting parties that in case of some establishments, details of which need not be specifically mentioned herein, employees have been retrenched/terminated and in respect of certain other establishments the employees have been forced/compelled to sign undertakings which were later on used as to make out declarations that the employees do not desire to be covered by the Wage Board reommendations.

जबरन इस्‍तीफे के एक मामले का उल्‍लेख मध्‍यप्रदेश श्रमायुक्‍त द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर रिपोर्ट में भी है। जिसमें पेज नंबर 20 पर भास्‍कर के साथी sanjay kumar chuhan के Forced Resignation का मामला इंदौर उप श्रमायुक्‍त द्वारा लेबर कोर्ट को रेफर करने का जिक्र है।


इसके अलावा कुछ अन्‍य साथियों ने भी अलग-अलग राज्‍यों में जबरन इस्‍तीफा देने के बाद उप श्रमायुक्‍त कार्यालय में अपनी शिकायत दर्ज करवाने के साथ रिकवरी भी लगा रखी है, जिनपर सुनवाई जारी है। इसलिए हमारा उन सभी साथियों से अनुरोध है जिनका जबरन इस्‍तीफा प्रबंधन ने लिया है, वे पुलिस में एफआईआर दर्ज कराएं। हम जानते हैं एफआईआर दर्ज कराने में आपको कई दिक्‍कतों का सामना करना पड़ेगा, क्‍योंकि प्रभावशाली समाचार पत्र प्रबंधन के कारण पुलिस आपकी एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर सकती है। ऐसे में यदि आपके राज्‍य में ऑनलाइन पुलिस शिकायत दर्ज कराने की सुविधा है तो वहां ऑनलाइन एफआईआर दर्ज करवाएं। नहीं तो केस लड़ रहे अपने साथियों से संपर्क कर उनकी मदद मांगे। इसके बाद आप रिकवरी बनवाकर और किसी कानून के जानकार से मैटर लिखवाकर डीएलसी में 17(1) और जबरन इस्‍तीफे के खिलाफ अलग-अलग केस लगवाएं। डीएलसी में दायर 17(1) की रिकवरी और इस्‍तीफे के खिलाफ लगवाए गए केस की प्रतिलिपि पर मोहर लगवाना व साइन करवाना न भूलें।
(हिंदुस्‍तान व भास्‍कर के साथियों से प्राप्‍त तथ्‍यों पर आधारित)

हम आपकी सुविधा के लिए मजीठिया केस से जुड़े कुछ वकीलों का संपर्क नंबर दे रहे हैं, आप इनसे बेहिचक बात कर सकते हैं।

वरिठ वकील परमानंद पांडेय जी
09868553507
parmanand.pandey@gmail.com

वरिठ वकील उमेश शर्मा जी
9868235388

दिनेश तिवारी जी (प्रभात खबर प्रबंधन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से स्‍थानांतरण पर स्‍टे लेने वाले वकील)
9210004761

इनके अलावा आप इन साथियों से भी संपर्क कर सकते हैं-

Vinod Kohli ji  – 09815551892
President, Chandigarh-Punjab Union of Journalists (CPUJ)
Indian Journalists Union
kohlichd@gmail.com


रविंद्र अग्रवाल जी
9816103265
ravi76agg@gmail.com

राकेश वर्मा जी
9829266063

शशिकांत सिंह जी
पत्रकार और आर टी आई एक्टिविस्ट
9322411335

महेश कुमार जी
9873029029
kmahesh0006@gmail.com

प्रदीप गौड़ जी
9928092537

पुरुषोत्‍तम जी 
9810718633

महेश साकुरे जी
8275284645

शारदा त्रिपाठी जी
9452108610

मयंक जैन जी
9300124476


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पत्रकारों की वेतन वृद्धि के लिए लोकसभा में की गई वेजबोर्ड के गठन की मांग

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लोकसभा में फिर उठी मजीठिया की मांग

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पत्रकारिता छोड़कर सब धंधे कर रहे मीडिया मालिक, लागू हो मजीठिया सिफारिशें

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लोकसभा में गूंजा मजीठिया वेजबोर्ड

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Sunday, 14 May 2017

सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार का झूठा हलफनामा, कहा-हिन्दुस्तान की दसों यूनिटों में है मजीठिया लागू

देश के अन्य राज्यों में भले ही प्रिंट मीडिया के कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक वेतनमान और एरियर न मिल रहा हो, लेकिन उत्तर प्रदेश में एचटी मीडिया कंपनी का अखबार ‘हिन्दुस्तान’ अपनी सभी यूनिटों में मजीठिया वेज बोर्ड को लागू करके सभी कर्मचारियों को इसका लाभ देकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पूरी तरह अनुपालन कर रहा है। भले ही यह खबर मीडिया जगत के लिए चौंकाने वाली हो, हकीकत इससे परे है, मगर उत्तर प्रदेश में तत्कालीन अखिलेश सरकार के समय बनी श्रम विभाग की रिपोर्ट तो यही दर्शा रही है।

श्रम विभाग की यह रिपोर्ट उत्तर प्रदेश की तत्कालीन श्रमायुक्त शालिनी प्रसाद ने 06 जून 2016 को सुप्रीम कोर्ट में मजीठिया वेज बोर्ड के मामले में अखबार मालिकों के विरुद्ध विचाराधीन अवमानना याचिका संख्या- 411/2014 में सुनवाई के दौरान शपथपत्र के साथ दाखिल की है, जिसके मुताबिक यूपी में सिर्फ हिन्दुस्तान अख़बार ने ही मजीठिया वेज बोर्ड को लागू कर न्यायालय के आदेश का अनुपालन किया है।

उत्तर प्रदेश में हिन्दुस्तान की कुल दस यूनिटें हैं, जिनमें 955 कर्मचारी होना दर्शाया गया है। शासन की रिपोर्ट के मुताबिक हिन्दुस्तान लखनऊ में 159, मेरठ में 75, मुरादाबाद में 68, गोरखपुर में 51, अलीगढ़ में 48, बरेली में 82, नोएडा में 224, वाराणसी में 84, इलाहाबाद में 47, कानपुर में 117 यानि कुल मिलाकर 955 कर्मचारियों को हिन्दुस्तान अखबार मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों से लाभान्वित कर रहा है।
आइए जानते हैं, श्रम विभाग के रीजनल कार्यालय  के किस अधिकारी ने हिन्दुस्तान की किस यूनिट में कब जाकर जाँच-पड़ताल करके स्टेट्स रिपोर्ट तैयार की। वर्ष 2015 में 15 सितम्बर को डॉ. हरीशचंद्र ने लखनऊ, 17 सितम्बर को रामवीर गौतम ने मेरठ, 20 अगस्त को बी.पी. सिंह ने मुरादाबाद, 20 अगस्त को अमित प्रकाश सिंह ने गोरखपुर, 30 दिसंबर को एस.पी. मौर्या व एस.आर. पटेल ने अलीगढ़, 17 सितम्बर को राधेश्याम सिंह, बालेश्वर सिंह व ऊषा वाजपेयी की टीम ने नोएडा, 21 सितम्बर को आर.एल. स्वर्णकार ने वाराणसी, 04 जुलाई को एस.एन. यादव, आर.के . पाठक और अन्य तीन अधिकारियों की टीम ने इलाहाबाद, 13 अगस्त को सहायक श्रमायुक्त रवि श्रीवास्तव ने कानपुर यूनिट में जाकर पड़ताल की।
यूपी की तत्कालीन श्रमायुक्त शालिनी प्रसाद की ओर से कोर्ट में दाखिल स्टेट्स रिपोर्ट के मुताबिक यूपी के मुजफ्फरनगर का अखबार शाह टाइम्स अपने 22 और लखनऊ में इंडियन एक्सप्रेस अपने सात कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ दे रहा है। रिपोर्ट में यहां तक कहा गया कि शाह टाइम्स ने अपने सभी कर्मचारियों को मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक बकाया एरियर का भी भुगतान कर दिया है। अमर उजाला ने आंशिक लागू कर बकाया एरियर 48 समान किस्तों में देने का कर्मचारियों से समझौता कर लिया है। दैनिक जागरण ने 20जे के तहत वेज बोर्ड उनके संस्थान पर लागू न होना बताया।

उत्तर प्रदेश में मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर शासन की सर्वाधिक चौंकाने वाली स्टेट्स रिपोर्ट हिन्दुस्तान समाचार पत्र की है। यही वजह है कि हिन्दुस्तान प्रबंधन सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर निश्चिंत नजर आ रहा है क्योंकि उत्तर प्रदेश का श्रम विभाग उनको पहले ही क्लीन चिट दे चुका है, वह यदि परेशान है, तो उन कर्मचारियों को लेकर है, जिन्होंने हाल ही में श्रम विभाग में मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक वेतनमान और बकाया एरियर न मिलने का क्लेम ठोंक कर हिन्दुस्तान प्रबंधन की आरसी जारी करा दी हैं। हिन्दुस्तान के खिलाफ आगरा से 11 और बरेली से 3 आरसी कटने के बाद से प्रबंधन की चूलें हिली हुई हैं। बरेली में एक और आरसी कटने के कगार पर है। इसके अलावा लखनऊ के 16 कर्मचारी भी ताल ठोकर हिन्दुस्तान प्रबंधन के खिलाफ मैदान में कूद पड़े हैं।

इन आरसी के कटने से जहां एक और श्रम विभाग की हिन्दुस्तान के पक्ष में कोर्ट में दाखिल स्टेट्स रिपोर्ट झूठी साबित हो रही है, वहीं हिन्दुस्तान प्रबंधन को यदि इन क्लेमकर्ताओं को पैसा देना पड़ा, तो अन्य कर्मचारियों में जबरदस्त असंतोष फैलेगा। उस गंभीर स्थिति से निपटना प्रबंधन के लिए बेहद मुश्किल भरा होगा।

तत्कालीन श्रमायुक्त की स्टेट्स रिपोर्ट वायरल होते ही हिन्दुस्तान में अभी भी मजीठिया का लाभ मिलने की आस में नौकरी कर रहे कर्मचारियों में अब अंदर ही अंदर असंतोष बढ़ रहा है। इस खुलासे के बाद अब उनकी यह आस भी खत्म होने लगी है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने पर हिन्दुस्तान प्रबंधन उनको मजीठिया का कोई लाभ देगा।



क्या योगी सरकार करेगी कार्रवाई:

उत्तर प्रदेश में श्रम विभाग के रीजनल कार्यालय के जिन अफसरों ने हिन्दुस्तान में मजीठिया वेज बोर्ड लागू होने की स्टेट्स रिपोर्ट श्रमायुक्त को सौंपी, क्या उनको खरीदा गया? अगर नहीं तो इस तरह की रिपोर्ट बनाने का उन पर किसका दबाव था, यह जांच की विषय है। हालांकि सभी दसों यूनिटों की एक जैसी ही रिपोर्ट इस बात का संकेत है कि हिन्दुस्तान के बारे में ऐसी ही रिपोर्ट मांगी गई। हिन्दुस्तान प्रबंधन ने किसको धनलक्ष्मी से मैनेज किया? तत्कालीन श्रमायुक्त शालिनी प्रसाद ने किस वजह से इतना बड़ा महाझूठ देश की सर्वोच्च अदालत में शपथ पत्र देकर बोलना पड़ा ? हालांकि उस समय की तत्कालीन सरकार के मुखिया अखिलेश यादव और उनके पिता मुलायम सिंह यादव की हिन्दुस्तान अखबार के समूह संपादक शशि शेखर और लखनऊ के प्रादेशिक संपादक केके उपाध्याय से नजदीकियां और गलबहियां भी किसी से छिपी नहीं है। ये भी संभव है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव में मदद देने के नाम पर मुलायम-अखिलेश की शशि शेखर और केके उपाध्याय से डील हुई हो? ये ऐसे सवाल हैं, जिनका जवाब उत्तर प्रदेश की मौजूदा योगी आदित्यनाथ सरकार ही कोई उच्चस्तरीय जांच बैठाकर तलाश सकती है। अगर ऐसा होता है तो अखबार मालिकों के हाथों की कठपुतली बने श्रम विभाग का बदनुमा चेहरा उजागर हो जाएगा। उधर, केंद्र की मोदी सरकार के ऊर्जा मंत्रालय में तैनात अतिरिक्त सचिव शालिनी प्रसाद की भी मुश्किलें बढ़ जाएंगी।हालाँकि हिंदुस्तान के समूह संपादक शशिशेखर और लखनऊ के संपादक केके उपाध्याय जब से योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली है, तभी से उनकी गणेश परिक्रमा कर सैटिंग में लगे हुए हैं।
(मजीठिया क्रांतिकारी ग्रुप से)

मुंबई में नवभारत के 400 मीडियाकर्मियो ने बनायी यूनियन

केसर सिंह विष्ट अध्यक्ष  और अरुण कुमार गुप्ता सचिव बनाये गये

वेज बोर्ड के लिये भी बनायी गयी कमेटी

मुंबई से एक बड़ी खबर आरही है। यहां प्रमुख हिन्दी दैनिक नवभारत के कर्मचारियों ने अपनी वेज बोर्ड और दुसरी मांग को लेकर  12 मई को एक यूनियन का गठन कर लिया है। इस यूनियन का लिखित पत्र बकायदे प्रबंधन को भी दे दिया गया है। इस यूनियन में 400 सदस्य होने का दावा यूनियन के एक पदाधिकारी ने किया है।
। जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड के गठन और माननीय सुप्रीमकोर्ट में हुयी अवमानना मामले के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी समाचार पत्र संस्थान में बकायदे यूनियन का गठन किया गया है। यह यूनियन महाराष्टÑ मीडिया इम्प्लाईज यूनियन के अधीन गठन की गयी है जिसकी शाखा नवभारत प्रेस लिमिटेड सानपाड़ा, नयी मुंबई के नाम से काम करेगी। नवभारत के इस यूनियन में नवभारत के केसर सिंह विष्ट को अध्यक्ष, अरुण कुमार गुप्ता को सचिव और मोहन सिंह धामी को कोषाध्यक्ष चूना गया है। मुंबई के बीयूजे में हुयी एक बैठक के बाद इस यूनियन के गठन की घोषणा की गयी। नवभारत प्रेस लिमिटेड सानपाड़ा, नयी मुंबई की इस यूनियन की कार्यकारिणी सदस्यों में शेर सिंह , किरण करकेरा, विष्णू मांजरेकर और सागर चव्हाण को शामिल किया गया है। इसके अलावा जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड सहित दुसरे वेज बोर्ड को नवभारत में लागू कराने के लिये वेज बोर्ड कमेटी भी बनायी गयी है जिसमें विष्णू भारद्वाज, अरुण कुमार गुप्ता, राजित यादव, विमल मिश्र और नागेश पांडे को शामिल किया है। इस यूनियन में नवभारत के मुंबई और नयी मुंबई के  कर्मचारियों को सदस्य बनाया गया है। इस यूनियन के लिये बकायदे एक यूनियन का संविधान भी बनाया गया है। तथा इसकी प्रार्थमिक सदस्यता १०० रुपये प्रतिमाह रखी गयी है।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्सपर्ट
9322411335

डीएवीपी की मीडिया पॉलिसी को चुनौती

सर्कूलेशन जांच के अधिकार प्रेस रजिस्ट्रार को, किसी दूसरी एजेन्सी को नही

 याचिका पर हाईकोर्ट ने जारी किए नोटिस

जोधपुर। ऑल इण्डिया स्माल एण्ड मीडियम न्यूज पेपर फेडरेशन द्वारा डीएवीपी की मीडिय पॉलिसी 2016 एवं सर्कूलेशन जांच के अधिकार प्रेस रजिस्ट्रार के अलावा किसी दूसरी एजेन्सी को दिये जाने के मामले मे दायर की गई चुनौती याचिका पर सुनवाई बाद राजस्थान उच्च न्यायालय ने गुंरूवार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया हैं। याचिका मे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव, डीएवपी, प्रेस पंजीयक, सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग के प्रिन्सिपल सेक्रेटरी एवं डीआईपीआर को भी पार्टी बनाया गया हैं। याचिका फेडरेशन के जिलाध्यक्ष खरथाराम द्वारा दायर की गई हैं। याचिकाकर्ता की ओर से हाईकोर्ट मे वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज भंडारी, एस.पी. शर्मा एवं दलपतसिंह राठौड़ ने पैरवी की।

एडवोकेट दलपतसिंह राठौड़ ने बताया कि डीएवीपी की विज्ञापन पॉलिसी 2016 मे प्रेस पुस्तक पंजीकरण अधिनियम 1867 के प्रावधानों को दरकिनार कर महानिदेशक ने समाचार पत्रों की सर्कूलेशन की जांच का अधिकार न केवल स्वंय ने ले लिया बल्कि बाद मे एक आदेश जारी कर राजस्थान के प्रिन्सिपल सेक्रेटरी को भी जिला स्तरीय जन सम्पर्क अधिकारियों से जांच करवाने के निर्देश जारी कर दिये। दिल्ली हाईकोर्ट इससे पूर्व सर्कूलेशन जांच के अधिकार प्रेस रजिस्ट्रार के अतिरिक्त किसी अन्य विभाग के अधिकारी या निजी एजेन्सी को देने संबंधित आदेश को अवैध ठहराते हुए रद्द कर चुका हैं। यहां तक प्रेस काउंसिंल ऑफ इण्डिया ने भी विभिन्न मामलों मे माना हैं कि स्टेट ऑथरटिज को समाचार पत्र की सर्कूलेशन जांच का अधिकार नही हैं।

उन्होने बताया कि याचिका मे बताया गया हैं कि डीएवीपी से अनुमोदित चल रहे मौजूदा अखबारों को 1 जनवरी 16 से 31 दिसंबर 18 तक की 3 साल की अवधि की विज्ञापन दर का अनुबंध दिया जा चुका हैं जो पूर्व मे प्रभावी विज्ञापन नीति 2007 के तहत दिया गया था। उक्त पॉलिसी मे प्रावधान था कि महानिदेशक द्वारा किया गया अनुबंध आखिरी अवधि तक वैद्य रहेगा, लेकिन डीएवीपी ने 5 मई 17 को एक एडवाइजरी जारी कर निर्देश दिये हैं कि 45000 से अधिक की सर्कूलेशन वाले अखबारों को आरएनआई अथवा एबीसी से सकू्रलेशन वेरीफीकेशन प्रमाण पत्र लाकर प्रस्तुत करना होगा, अन्यथा 1 जून 17 से विज्ञापन दर जारी नही की जायेगी। इस याचिका मे राजस्थान के सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग के सेक्रेटरी एवं निदेशक के उस आदेश को भी चुनौती दी गई हैं जिसमें जिला स्तर के पीआरओ के माध्यम से अनुमोदि अखबारों की सर्कूलेशन की जांच के निर्देश दिये गये हैं। हाईकोर्ट की एकलपीठ के न्यायाधीश संगीत लोढा ने याचिका पर सुनवाई बाद संबंधित पक्षकारों को कारण बताओ नोटिस जारी कर 25 मई तक जवाब तलब किया हेैं।

(दलपतसिंह राठौड़)
एडवोकेट, राजस्थान हाईकोर्ट
ओपन एयर चैम्बर, जोधपुर (राज)
मो.9414701846, 8209698856

मजीठिया-फैसले के आसपास, सांसदों से कुछ सवाल (2)

इससे पहले आप शरद यादव के बारे में पढ चुके होंगे। आज चर्चा तरुण विजय की करते हैं-

2. श्री तरुण विजय -पांचजन्य के पत्रकार/23 तारीख को जंतर-मंतर पर केयूजे के प्रदर्शन के बाद यही परिचय उनका दिया गया था। पांचजन्य अखबार है। जेएनयू पर स्टोरी छापने के बाद आरएसएस ने इसे अपना मुखपत्र मानने से इंकार कर दिया था।
हमारा पूर्व सांसद और बीजेपी नेता से सिर्फ इतना ही कहना है कि मजीठिया का मामला कोई नया मामला नहीं है। इनकी पार्टी की सरकार तब भी थी और अब भी कई राज्यों में है। और इन्हीं के राज्यों में मजीठिया का खूब मजाक मालिक उड़ाते रहे हैं लेकिन ताज्जुब है श्री विजय के कान पर इससे पहले कान पर जूं तक नहीं रेंगी।
अब न जाने क्यों उस दिन लाल झंडा लिए मजीठिया दिलाने जंतर-मंतर पर चले आए। एक बार भी राज्य सभा में, जब सदस्य थे,  इस मामले को नहीं उठाया। क्या गजब के आरएसएस के मुखपत्र से निकले पत्रकार हैं।
क्या इन बीजेपी के पत्रकारनुमा सांसद या पूर्व सांसद/ नेता फैसला आने के बाद समाचार पत्र के कर्मचारियों को उनका हक दिलाने के लिए कम से कम अपने प्रदेशों की सरकार पर दबाव बनाएंगे।
इन्हीं बीजेपी शासित राज्यों में अखबारों के साथ सबसे अधिक अन्याय और इनका शोषण हो रहा है। आप खुद ही देख लीजिए इन राज्यों और वहां के अखबार मालिकों की करतूत।
राजस्थान- राजस्थान पत्रिका,  दैनिक भास्कर
हरियाणा- दैनिक जागरण,  दैनिक भास्कर, अमर उजाला
उत्तर प्रदेश- दैनिक जागरण,  दैनिक भास्कर, अमर उजाला,  हिन्दुस्तान,  इंडियन एक्सप्रेस,  इंडिया टुडे
उत्तराखंड- दैनिक जागरण,  दैनिक भास्कर, अमर उजाला,  हिन्दुस्तान
मध्य प्रदेश- दैनिक जागरण,  दैनिक भास्कर
छत्तीसगढ़- राजस्थान पत्रिका,  दैनिक भास्कर
 जम्मू एवं कश्मीर- दैनिक जागरण,  अमर उजाला
झारखंड- दैनिक जागरण,  दैनिक भास्कर, प्रभात खबर, हिन्दुस्तान
महाराष्ट्र- सकाल,  इंडियन एक्सप्रेस,  लोकमत समाचार आदि।
इनके अलावा कई और राज्यों में भी भाजपा की सरकार है जहां की हालत अच्छी नहीं है।
-मजीठिया मंच से साभार

Monday, 8 May 2017

दैनिक जागरण के मीडियाकर्मी पंकज कुमार के ट्रांसफर मामले को सुप्रीमकोर्ट ने अवमानना मामले से अटैच किया

दैनिक जागरण के बिहार के मीडियाकर्मी पंकज कुमार के ट्रांसफर के मामले पर सोमवार को माननीय सुप्रीमकोर्ट में सुनवाई हुई। इस मामले की सुनवाई के दौरान माननीय न्यायाधीश रंजन गोगोई ने इसको भी जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड के अवमानना मामला संख्या 411/2014 के साथ अटैच कर दिया। माननीय न्यायाधीश ने कहा कि ऐसे ही अन्य मामलों पर निर्णय आने वाला है, लिहाजा याचिका का निपटारा भी इसी में हो जाएगा। पत्रकार पंकज कुमार के ट्रांसफर मामले में उनका पक्ष सुप्रीमकोर्ट में पटना हाई कोर्ट के रिटायर मुख्य कार्यकारी न्यायाधीश नागेंद्र राय ने रखा और राज्य सरकार के साथ साथ दैनिक जागरण को भी इस मामले में पार्टी बनाया गया है। यह सुनवाई न्यायाधीश रंजन गोगोई की खंडपीठ में हुई। उन्होंने जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की सुनवाई को पूरा करके इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रखा है।

बिहार गया के वरिष्ठ पत्रकार पंकज कुमार का तबादला मजीठिया मांगने के कारण दैनिक जागरण प्रबन्धन द्वारा जम्मू कर दिया गया था। इसके खिलाफ भड़ास ने आवाजाही में एक रिपोर्ट भी प्रकाशित की थी। पंकज कुमार सामाजिक सरोकार के व्यक्ति रहे हैं और गया में मगध सुपर थर्टी के संचालन से जुड़े हुए हैं जहां प्रतिभावान गरीब छात्र छात्राओं को गुरुकुल परंपरा के तहत निशुल्क आवासन, भोजन तथा पठन पाठन की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। इस संस्थान से निकले सैकडों छात्र छात्राएं आईआईटी, एनआईटी तथा अन्य महत्वपूर्ण तकनीकी शिक्षण संस्थाओं में पढ़ रहे हैं या नौकरी कर रहे हैं। उग्रवाद प्रभावित मगध क्षेत्र से आने वाले युवा भी इसके माध्यम से आज अपना जीवन संवार रहे है और समाज को राह दिखा रहे हैं।

पंकज कुमार के साथ दैनिक जागरण द्वारा किए गए व्यवहार की खबर जैसे ही भड़ास पर प्रकाशित हुई, सैकडों युवा तथा पंकज कुमार के बारे में जानने वाले व्यक्तियों ने भड़ास की कटिंग/लिंक लगाकर पीएम तथा केन्द्रीय मंत्रियों को भी ट्वीट कर पंकज कुमार के साथ हो रहे अत्याचार में हस्तक्षेप करने की मांग की। पंकज कुमार की इमानदारी का ही फल था कि उच्चतम न्यायालय में बिहार पटना उच्च न्यायालय के रिटायर्ड कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश नागेन्द्र राय जी उनसे बिना कोई फीस लिए मुकदमा लड़ने के लिए तैयार हो गए। उक्त मुकदमे की सुनवाई सोमवार को माननीय सुप्रीम कोर्ट में कोर्ट नम्बर 4 में आयटम नम्बर 9, सिविल रिट 330/2017 के तहत की गई।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आर टी आई एक्सपर्ट
9322411335



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...समानता होती तो आज इतने मीडिया कर्मी शोषण के शिकार नहीं होते

हर जगह हर संस्थान में लोग अपने अधिकार और अपने हक के लिए जगरूक है। आज 8 मई की ही बात है राजस्थान के कोटा जिले में प्रसिद्ध ओर चर्चित अस्पताल है "सुधा हॉस्पिटल"। होने को तो थोड़ा महँगा है, लेकिन सुविधा सम्पन्न है। यहाँ मरीजों के परिजनों को ज्‍यादा भटकना नहीं पड़ता, यहाँ का आफिस स्टाफ ही परिजन की भूमिका निभाता है। यहाँ लगभग 250 कर्मियों का स्टाफ है।

हर साल यहाँ कर्मियों का 10% से 15% इन्क्रीमेंट लगता है, लेकिन इस साल सिर्फ 5% इन्क्रीमेंट लगा। कर्मचारियो को धोखा लगा लेकिन वो हाथ पर हाथ धर कर नही बैठे रहे, उन्होंने सोचा और आज सामूहिक रूप से हड़ताल करके अपना विरोध प्रदर्शन किया। और अंत में जाकर हॉस्पिटल प्रबंधन झुका और इन्क्रीमेंट 5% से बढ़ाकर 10% कर दिया और कर्मियों की जीत हुई है।

सभी हॉस्पिटल कर्मियों के जज्बे को सलाम ओर हॉस्पिटल के मालिक आर.के. अग्रवाल को दिल से आभार जिन्‍होंने हॉस्पिटल कर्मियों की पीड़ा को खुद की पीड़ा समझा। लेकिन पता नहीं इस देश का मीडिया कर्मी अब तलक क्यों सोया हुआ है।
रात दिन शोषण का शिकार होते हैं। मजीठिया वेजबोर्ड लाभ का कोई अता पता नहीं। ओवरटाइम किसी को मिलता नहीं। छुट्टी मांग लो तो प्रबंधन ऐसे आचरण करता है जैसे प्रबंधन की माँ का देहांत हो गया।

फिर भी मीडिया कर्मी खामोश है। पूरे देश भर में मीडिया कर्मियों में मजीठिया को लेकर हलचल है और सब उसका लाभ लेना चाहते हैं, लेकिन अपना कदम कोई बढ़ाना कोई नहीं चाहता जिन्होंने अपने कदम इस ओर बढ़ाया है वो जरूर इसका लाभ लेकर रहेंगे।

मीडिया कर्मियों को भी अपने हक के लिए जगरूक होना पड़ेगा नहीं तो पूरा जीवन गुलाम की तरह जीवन यापन करना पड़ेगा।

ताज्‍जुब की बात दैनिक भास्कर का मालिक भी अग्रवाल है और सुधा का मालिक भी अग्रवाल है, लेकिन दोनों में जमीन आसमान का अंतर है। भास्कर वाले अग्रवाल जी का दिल इतना बड़ा नहीं जितना सुधा हॉस्पिटल वाले अग्रवाल जी का है। काश समानता होती तो आज इतने मीडिया कर्मी शोषण के शिकार नहीं होते।

एक प्रताड़ित मीडिया कर्मी  
  

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मजीठिया फैसले के आसपास, सांसदों से सवाल

साथियों,

हम सबकी हिम्मत और कोशिश से मजीठिया का मामला एक मुकाम तक पहुंचने वाला है। पिछले दिनों संसद में भी इसकी आवाज उठी। देर से ही सही लेकिन हमारे सांसदों की नींद खुली। लेकिन असली काम फैसला आने के बाद का है।

इन सांसदों से कुछ सवाल हैं-

1 श्री शरद यादव: बड़े तेज-तर्रार और वरिष्ठ सांसद हैं। आपने अर्णब गोस्वामी को अन्ना आंदोलन के समय पानी पिला दिया था। महोदय क्या आप बता पाएंगे कि बिहार में आपकी सरकार है तो वहां समाचार पत्रों के कर्मचारियों के लिए मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश कब लागू होगी। अब तक वहां क्यों नहीं लागू की गई। आपकी सरकार इतने दिनों से क्या कर रही है। अगर मान भी लिया जाए कि मामला सुप्रीम कोर्ट में था तो फैसला आने के बाद आप और आपकी सरकार का क्या कदम होगा।

आप बड़े नेता हैं। आपको तो पता ही होगा कि आपकी ही पार्टी के एक सांसद राज्यसभा में हैं। नाम है श्री हरिवंश। श्री हरिवंश या श्री वंश ने इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान ही राज्य सभा टीवी पर बिग पिक्चर कार्यक्रम में स्वर्गीय गिरीश निगम के पूछने पर साफ कहा था कि प्रभात खबर ने इस मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को लागू नहीं किया है। वहीं प्रभात खबर का प्रबंधन बिहार और झारखंड में सुप्रीम कोर्ट गए साथियों को धमकाता रहा। उनका तबादला करता रहा और अब मामले की अंतिम सुनवाई के दिन समझौते का फर्रा सुप्रीम कोर्ट में पेश कर दिया।

माननीय महोदय, संसद में आवाज उठाने के साथ अखबार कर्मचारियों को हक दिलाने के लिए आप पहल करें। अपनी बिहार की सरकार से और फिर जहां जरूरत पड़े वहां। आप सर्वश्रेष्ठ सांसद रह चुके हैं। आपकी बात लोग मानेंगे।

[मजीठिया मंच से साभार]


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