Tuesday, 18 April 2017

नवभारत में कर्मचारियों के शौचालय जाने पर रोक

मामला पहुंचा पुलिस आयुक्त तक


महाराष्ट्र सहित मध्यप्रदेश के प्रमुख हिंदी दैनिक नवभारत से खबर आ रही है कि नवभारत के नयी मुम्बई स्थित कार्यालय में कर्मचारियों का जमकर शोषण किया जा रहा है। हालात ये हो गए हैं कि इस अखबार में कर्मचारियों के लिए पहली मंजिल पर बने एक मात्र शौचालय का इस्तेमाल करने से भी कर्मचारियों को रोक दिया गया है और उस शौचालय पर नवभारत के डायरेक्टर के लिए रिजर्व कर कर्मचारियों को इसकी सूचना दे दी गयी है।
सूत्र बताते हैं कि वर्ष 2005 में नवभारत का संपादकीय विभाग मुम्बई से नयी मुम्बई आया और तब से लगभग 12 साल हो गए नवभारत के कर्मी इस शौचालय का इस्तेमाल करते थे मगर अब उसे डायरेक्टर के लिए रिजर्व कर दिया गया है। नवभारत प्रबन्धन पर ये भी आरोप है कि वह अपने कर्मचारियों को समय से वेतन भी नहीं दे रहा है और वेतन मांगने पर बाहर निकालने की धमकी भी दी जा रही है। साथ ही यहाँ कैंटीन सुविधा और चाय सुविधा तक नहीं है। साथ ही कर्मचारियों के बाहर जाने पर भी रोक है। नरक से बदतर जिंदगी जी रहे इन कर्मचारियों ने इस मामले की लिखित शिकायत पुलिस और तमाम सरकारी महकमों से की है। आपको बता दें की यहाँ कई कर्मचारियों ने जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड की मांग सरकारी महकमों को पत्र लिखकर कर रखी है।
आरोप यो यहाँ तक है कि नवभारत में छींकने पर भी रोक है और अगर किसी ने डायरेक्टर के सामने छिक दिया तो उसे जमकर डांट सुननी पड़ती है।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आर टी आई एक्सपर्ट
9322411335

पेश है नवभारत कर्मचारियों द्वारा पुलिस विभाग को लिखे गए पत्र का विवरण

दिनांक-14 अप्रैल, 2017

नवभारत भवन,
प्लाट नम्बर;13,
सेक्टर-8, सानपाड़ा ((पूर्व),
नवी मुंबई, महाराष्ट्र

सेवा में,
मा. पुलिस आयुक्त,
पुलिस आयुक्तालय,
नवी मुंबई

विषय- 'नवभारत' के निदेशक (संचालन) श्री डी. बी. शर्मा द्वारा कर्मचारियों की मानसिक प्रताड़ना के सन्दर्भ में ।

आदरणीय महोदय,
हम 'नवभारत प्रेस लिमिटेड' के कर्मचारी विगत कई वर्षों से श्री डी. बी. शर्मा (निदेशक-संचालन) से मानसिक रूप से लगातार प्रताड़ित किये जा रहे हैं। श्री शर्मा जी द्वारा कैंटीन, शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित किये जाने के साथ-साथ कर्मचारियों को लगातार नौकरी से निकालने की धमकी भी दी जा रही है। इससे कई कर्मचारी गहरे अवसाद की स्थिति में पहुँच गए हैं।
महोदय, हालात अब बेहद संवेदनशील हो गए हैं। निदेशक महोदय अब तो अपने प्रबन्ध सहयोगियों के मार्फत कर्मचारियों को शारीरिक रूप से 'ठीक' करने की धमकी भी देने लगे हैं। अखबारी कार्यालय में कंपनी के सर्वोच्च पदस्थ अधिकारी का यह व्यवहार चौंकाता है। विगत कुछ दिनों से निदेशक महोदय द्वारा कंपनी के भीतर हिंसक माहौल बनाने की कोशिश की जा रही है, जिसका बेहद अफ़सोस है और किसी अनहोनी की आशंका भी है। अतः आज हम यह शिकायत करने मजबूर हुए हैं।

हम आपका ध्यान निम्न मुद्दों की ओर आकृष्ट कराना चाहते हैं-

1. प्रथम मजले पर स्थित एकमात्र शौचालय को निदेशक महोदय ने एक दिन अचानक 'ओनली फॉर डायरेक्टर' की तख्ती लगवा कर ताला लगवा दिया।
2. कर्मचारियों के लिए कोई कैंटीन की व्यवस्था नहीं है और चाय/नाश्ते के लिए बाहर जाने पर भी पाबंदी लगा दी गयी है।
3. इतना ही नहीं, दवाई जैसी आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी के लिए बाहर जाने की इजाज़त तक नहीं दी जाती।
4. कर्मचारियों के बुनियादी अधिकारों का हनन करते हुए न उनके नाश्ते का समय तय किया गया है और न ही भोजन का।
5. अर्थात, एक बार कंपनी में प्रवेश किया तो आप आवश्यक कार्य के लिए 10-15 मिनट भी बाहर नहीं जा सकते। दफ्तर को एक किस्म के क़ैदख़ाने में ही तब्दील कर दिया गया है।
6. इसके अलावा छुट्टियाँ मांगने पर धमकाना और लाख अनुनय-विनय के बाद बमुश्किल कुछेक दिनों की अपर्याप्त छुट्टी देना।
7. समय पर तनख्वाह न देना और इस बाबत पूछने पर नौकरी से निकालने की धमकी देना।
8. कर्मचारियों को प्रताड़ित करने के लिए उनके विभाग बदल देना।
9. कर्मचारियों पर निजी काम के लिए दवाब डालना।

हद तो यह है कि-
10. अग़र कभी किसी कर्मचारी ने छींक भी दिया, तो उसे निदेशक महोदय सरेआम बेइज़्ज़त करते हैं कि क्यों छींका।

इस तरह की कई घटनाएं हैं, जिसके चलते कर्मचारी मानसिक रूप से बुरी तरह प्रताड़ित हैं और अब निदेशक महोदय द्वारा बनाये जा रहे हिंसक माहौल से स्थिति तनावपूर्ण भी हो गयी है। ऐसी स्थिति में किसी अनहोनी की आशंका है। अगर इस तरह के हिंसक माहौल में कोई वारदात होती है, तो उसके लिए निदेशक (संचालन) श्री डी. बी. शर्मा जी एवं प्रबंधन ज़िम्मेदार होगा।

महोदय, प्रताड़नाओं को लंबे समय से झेलते कर्मचारी अब आपकी शरण में हैं आपसे न्याय की गुहार लगा रहे हैं।

धन्यवाद!

प्रतिलिपि-

1. मा. मुख्यमंत्री, महाराष्ट्र सरकार
2. मा. श्रम मंत्री , महाराष्ट्र सरकार
3. मा. कामगार आयुक्त, वागले इस्टेट, ठाणे
4. मा. आयुक्त, मानवाधिकार आयोग, महाराष्ट्र राज्य
5. मा. उपायुक्त, वाशी पुलिस स्टेशन, नवी मुंबई
6. मा. अध्यक्ष, बृहन्मुंबई यूनियन ऑफ़ जॉर्नलिस्ट, डी. एन. रोड, मुम्बई
7. मा. अध्यक्ष, महाराष्ट्र मीडिया एम्प्लॉयस यूनियन, डी. एन. रोड, मुम्बई

(कर्मचारी नाम व हस्ताक्षर संलग्न)



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सुप्रीमकोर्ट के आदेश की फिर अखबार मालिको ने की अवमानना!



मुंबई के एक भी अखबारों ने नहीं किया विशाखा समिति का गठन!

आरटीआई से हुआ खुलासा

देश भर के अखबार मालिक माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेश को भी ताक पर रखते हैं और जिदकर के बैठे हैं कि सुप्रीमकोर्ट का आदेश नहीं मानेंगे। पहले जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड का आदेश अखबार मालिकों ने नहीं माना और अब माननीय सुप्रीमकोर्ट द्वारा निजी और सरकारी संस्थानों में काम करने वाली महिला कर्मचारियों के सम्मान से जुड़े विशाखा समिति की स्थापना के लिये दिये गये आदेश को भी मानने से मुंबई के अखबार मालिको ने मना कर दिया है और साफ कहें तो सुप्रीमकोर्ट के आदेश को एक बार फिर से ठेंगा दिखा दिया है। ये खुलासा हुआ है आरटीआई के जरिये। मुंबई की जानी महिला पत्रकार और एनयूजे की महाराष्ट्र की महासचिव शीतल करंदेकर ने जिलाधिकारी कार्यालयमुंबई शहर की जनमाहिती अधिकारी से आरटीआई के जरिये 18 जनवरी 2017 को जानकारी मांगी थी कि माननीय सुप्रीमकोर्ट के आदेशानुसार मुंबई शहर के कितने अखबार मालिकों ने अपने यहां विशाखा समिति की सिफारिश लागू किया है उसकी पूरी जानकारी उपलब्ध कराईये।
अगर इन अखबार मालिकों ने अपने यहां ये सिफारिश नहीं लागू किया तो उनके खिलाफ क्या क्या कारवाई की गयी उसका पूरा विवरण दिजिये। शीतल करंदेकर की इस आरटीआई को जिलाधिकारी और जिलादंडाधिकारी कार्यालय मुंबई शहर ने 9 फरवरी 2017 को जिला महिला व बाल विकास अधिकारी कार्यालय को भेज दिया। जिला महिला व बाल विकास अधिकारी कार्यालय मुंबई की जनमाहिती अधिकारी तथा जिला महिला व बाल विकास अधिकारी एन.एम. मस्के ने 29 मार्च 2017 को भेजे गये जबाव में शीतल करंदेकर को जानकारी दी है कि उनके कार्यालय में यह जानकारी उपलब्ध नहीं है। यानि साफ तौर पर कहें तो जिला महिला व बाल विकास अधिकारी कार्यालय में भी ये जानकारी नहीं है कि कितने अखबारों ने विशाखा समिति की सिफारिश लागू किया है। आपको बता दें कि यह रोजगार प्रदाता का दायित्व है कि व यौन उत्पीड़न से निवारण के लिए कंपनी की आचार संहिता में एक नियम शामिल करें।
संगठनों को अनिवार्य रूप से शिकायत समितियों की स्थापना करनी चाहिएजिसकी प्रमुख महिलाओं को बनाया जाना चाहिए ।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्सपर्ट
9322411335


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Wednesday, 12 April 2017

Supreme Court Declines Early Hearing of Majithia Case


The bench consisting of Chief Justice J.S. Khehar, Justice D.Y. Chandrachud and Justice Sanjay Kishan Kaul today declined the request for early hearing of the Majithia Wage Boards case. The Chief Justice said that more pressing cases were pending therefore the request for advancing the hearing of the Majithia case could not be conceded.

Advocate Parmanand Pandey first went to the bench of Justice Ranjan Gogoi and mentioned for the early hearing but Justice Gogoi asked him to go to the court of the Chief Justice as per the new procedure of the Registry, decisions in such matters could be taken only by the CJI.

It may be noted here that the last hearing of the Majithia Wage Board case was on 10.01.2017 before the bench of Justice Gogoi and Ashok Bhushan. The bench had then passed the order for further hearing on 17.01.2017. However, the case has not been listed even after more than three months’ have passed.

The newspaper employees who have filed their cases of contempt against the proprietors are feeling frustrated over this delay by the judiciary. Shri Pandey also pointed out to the Chief Justice that thousands of newspapers employees across the country have been are looking towards the Hon’ble Supreme Court with very high hopes of getting justice but the delay was distressing. Shri Pandey has decided to again mention the case to draw the attention of the Chief Justice over pathetic plight of the newspaper employees.

 Rinku Yadav
Treasurer-IFWJ



टूटा 20जे का खौफ, सबको मिलेगा मजीठिया, अब न करें देर http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/08/20.html



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मोदी सरकार ने गिराई गाज: 269556 पत्र-पत्रिकाओं के टाइटिल निरस्त, 804 अखबार डीएवीपी विज्ञापन सूची से बाहर

नरेंद्र मोदी सरकार की सख्ती की गाज छोटे अखबारों और पत्रिकाओं पर पड़ी है। इससे दूरदराज की आवाज उठाने वाली पत्र-पत्रिकाओं का संचालन ठप पड़ गया है, साथ ही इससे जुड़े लाखों लोग बेरोजगार भी हो गए हैं। ऐसे दौर में जब बड़े मीडिया घराने पूरी तरह कारपोरेट के चंगुल में आ चुके हैं और असल मुद्दों को दरकिनार कर नकली खबरों को हाईलाइट करने में लगे हैं, मोदी सरकार उन छोटे अखबारों और पत्रिकाओं की गर्दन दबोचने में लगी है जो अपने साहस के बल पर असली खबरों को प्रकाशित कर भंडाफोड़ किया करते थे। हालांकि दूसरा पक्ष यह है कि उन हजारों लोगों की अकल ठिकाने आ गई है जो अखबारों पत्रिकाओं की आड़ में सिर्फ और सिर्फ सरकारी विज्ञापन हासिल करने की जुगत में लगे रहते थे और उनका पत्रकारिता से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं हुआ करता था। वो अखबार पत्रिका के जरिए ब्लैकमेलिंग और उगाही के धंधे में लिप्त थे।

मोदी सरकार द्वारा सख्ती के इशारे के बाद आरएनआई यानि समाचार पत्रों के पंजीयक का कार्यालय और डीएवीपी यानि विज्ञापन एवं दृश्य प्रचार निदेशालय काफी सख्त हो चुके हैं। समाचार पत्र के संचालन में जरा भी नियमों को नजरअंदाज किया गया तो आरएनआई समाचार पत्र के टाईटल पर रोक लगाने को तत्पर हो जा रहा है। उधर, डीएवीपी विज्ञापन देने पर प्रतिबंध लगा दे रहा है। देश के इतिहास में पहली बार हुआ है जब लगभग 2,69,556 समाचार पत्रों के टाइटल निरस्त कर दिए गए और 804 अखबारों को डीएवीपी ने अपनी विज्ञापन सूची से बाहर निकाल दिया है। इस कदम से लघु और माध्यम समाचार पत्रों के संचालकों में हड़कम्प मच गया है।

पिछले काफी समय से मोदी सरकार ने समाचार पत्रों की धांधलियों को रोकने के लिए सख्ती की है। आरएनआई ने समाचार पत्रों के टाइटल की समीक्षा शुरू कर दी है। समीक्षा में समाचार पत्रों की विसंगतियां सामने आने पर प्रथम चरण में आरएनआई ने प्रिवेंशन ऑफ प्रापर यूज एक्ट 1950 के तहत देश के 2,69,556 समाचार पत्रों के टाइटल निरस्त कर दिए। इसमें सबसे ज्यादा महाराष्ट्र के अखबार-मैग्जीन (संख्या 59703) और फिर उत्तर प्रदेश के अखबार-मैग्जीन (संख्या 36822) हैं। इन दो के अलावा बाकी कहां कितने टाइटिल निरस्त हुए हैं, देखें लिस्ट.... बिहार 4796, उत्तराखंड 1860, गुजरात 11970, हरियाणा 5613, हिमाचल प्रदेश 1055, छत्तीसगढ़ 2249, झारखंड 478, कर्नाटक 23931, केरल 15754, गोआ 655, मध्य प्रदेश 21371, मणिपुर 790, मेघालय 173, मिजोरम 872, नागालैंड 49, उड़ीसा 7649, पंजाब 7457, चंडीगढ़ 1560, राजस्थान 12591, सिक्किम 108, तमिलनाडु 16001, त्रिपुरा 230, पश्चिम बंगाल 16579, अरुणाचल प्रदेश 52, असम 1854, लक्षद्वीप 6, दिल्ली 3170 और पुडुचेरी 523।

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