साथियों जैसा की आपको पता है कि केंद्र सरकार कई श्रम कानूनों के साथ-साथ हमारे हितों के रक्षक श्रमजीवी पत्रकार और अन्य समाचारपत्र कर्मचारी (सेवा की शर्तें) और प्रकीर्ण उपबंध अधिनियम,1955 तथा श्रमजीवी पत्रकार (मजदूरी की दरों का निर्धारण) अधिनियम, 1958 को निरस्त करने जा रही है। यदि आप इसको बचाना चाहते हैं तो निम्न पत्र लोकसभा की स्थायी श्रम समिति को भेजे या फिर मेल करें। पता और ईमेल ये है- (माननीय अध्यक्ष एवं सदस्यगण, लोकसभा की स्थायी श्रम समिति, संसद भवन, नई दिल्ली। E-mail : comm.labour-lss@sansad.nic.in)
पत्र के नीचे अपना नाम, पता, संस्थान का नाम-यूनिट समेत, मोबाइल नंबर आदि जरूर भरें। पत्र इस प्रकार है...
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सेवा में, दिनांक- 07-11-2019
माननीय अध्यक्ष एवं सदस्यगण
लोकसभा की स्थायी श्रम समिति
संसद भवन, नई दिल्ली
E-mail : comm.labour-lss@sansad.nic.in
विषय :-
श्रमजीवी पत्रकार एवं अन्य समाचार पत्र कर्मचारी(सेवा की शर्तें)और प्रकीर्ण उपबन्ध अधिनियम(वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट)-1955
तथा
श्रमजीवी पत्रकार(मजदूरी दरों का निर्धारण) अधिनियम-1958
को अवक्रमित अथवा समाप्त नहीं किया जाए तथा प्रिंटमीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया, वेब पोर्टल मीडिया आदि को इसके दायरे में लाने हेतु संशोधित किया जाए तथा व्यापक सुधार कर और अधिक प्रभावी किया जाने का निवेदन किये जाने के सम्बन्ध में : -
सम्मानित महोदय,
आपको अवगत कराना है कि तत्कालीन सरकार द्वारा गठित "प्रथम प्रेस आयोग" द्वारा समाज और राष्ट्र की सेवा में कार्यरत पत्रकारों के श्रम की संवेदनशील प्रकृति के कारण अन्य व्यवसायिक श्रमिकों से अलग रखते हुए 1954 में की गई संस्तुति के आधार पर यह श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम बनाया गया था। जो कि श्रमजीवी पत्रकारों को समय-समय पर वेजबोर्ड के गठन नौकरी की सुरक्षा, अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा और उचित वेतनमान व भत्ते प्रदान कर आजीविका के प्रबंध की व्यवस्था करता है। जो कि "वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट"-1955 & 1958 कहलाया।
भारत सरकार द्वारा न्यायमूर्ति जी सी राज्याध्यक्ष की अध्यक्षता में गठित "प्रथम प्रेस आयोग" के सदस्यों में डॉ० जाकिर हुसैन, आर वेंकटरमन ( बाद में दोनों भारत के राष्ट्रपति बने), दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के निदेशक वीकेआरवी राव (बाद में इन्दिरा गांधी की सरकार में केंद्रीय मंत्री बने), त्रिभुवन नारायण सिंह (बाद में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने), जयपाल मुंडा (आदिवासी नेता और संसद सदस्य), एम चेलापति राव (इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स IFWJ के तत्कालीन अध्यक्ष) महत्वपूर्ण हस्तियां शामिल थी।
माननीय सुप्रीम कोर्ट (सर्वोच्च न्यायालय) द्वारा अनेक अवसरों पर वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट को मान्यता दी गई तथा केन्द्रीय कर्मचारियों के समान वेतन देने की सिफारिश की गई।
इतना महत्वपूर्ण होने के बावजूद इसे समाप्त किया जाना न्यायसंगत नही है।
आपको बता दे कि
वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट सहित 13 विभिन्न श्रम कानूनों को समाप्त कर, 23 मार्च 2019 में इसका ड्राफ्ट तथा 4 माह बाद 23 जुलाई को मात्र "व्यवसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता"- 2019 लोकसभा में पेश कर दिया गया, जिसमें पत्रकार हितों की भारी अनदेखी हुई है।
वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट के तहत समय-समय पर वेज बोर्ड के गठन और प्रिंट मीडिया के लिए काम करने वाले पत्रकारों और गैर पत्रकार कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में संशोधन के प्रावधान तथा व्यवसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य, कार्य की स्थिति को विनियमित करने वाले कानूनों में संशोधन की व्यवस्था समाप्त हो गई है।
फिलहाल समीक्षा और संशोधन के लिए लोकसभा की स्थायी श्रमसमिति के पास विचाराधीन है।
यदि वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट-1955 +1958 समाप्त कर दिया गया तो इसके परिणामस्वरूप मीडिया संस्थान के मालिक अपनी मनमानी पर उतर आएंगे और लोकतंत्र के सजग प्रहरी पत्रकार बंधुआ और दैनिक मजदूर से भी बदतर स्थिति में सड़क पर आ जाएंगे।
विनम्र निवेदन है कि पत्रकार हितों पर कुठाराघात करने वाली नई श्रमसंहिता-2019 में से वर्किंग जर्नलिस्ट्स एक्ट को पृथक करके इस हद तक संशोधित किया जाए जिससे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, वेब पोर्टल मीडिया, सोशल मीडिया भी इसके दायरे में आ जाए ताकि उनका संरक्षण और नियमन भी किया जा सके।
अतः उपरोक्त विषयक मांग पूरी करते हुए इसे और अधिक व्यापक एवं प्रभावी बनाने का कष्ट करें। ताकि लोकतंत्र जिन्दा रह सकें।
पत्रकार जगत आपका आभारी रहेगा।
निवेदक
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