-मत बांधों हमसे इतनी उम्मीदें, हम अब निष्पक्ष नहीं
समतल नहीं उत्तल और अवतल दर्पण हो गया मीडिया
-अधिकारियों से भी अधिक शिकायतें हैं पत्रकारों के खिलाफ: पीसीआई
समतल नहीं उत्तल और अवतल दर्पण हो गया मीडिया
-अधिकारियों से भी अधिक शिकायतें हैं पत्रकारों के खिलाफ: पीसीआई
आज नेशनल प्रेस डे है। भारतीय प्रेस काउंसिल यानी पीसीआई की स्थापना इसलिए की गई थी कि मीडिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता पर काम करें। लेकिन विगत कुछ वर्षों से पीसीआई पत्रकारों की शिकायतों की सुनवाई नहीं कर पा रहा है। पीसीआई का उद्देश्य ही भटक गया है। कारण, पत्रकारों की इतनी शिकायतें पीसीआई को मिली हैं कि समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर किस मीडिया संस्थान और किस पत्रकार को पीला, नीला या काला मानें। साफ है कि अब कारपोरेट जनर्लिज्म को दौर है। जनपक्षधरता बची ही नहीं। एक उदाहरण दे रहा हूं, देहरादून में आयुष छात्रों की फीस कई गुणा बढ़ा दी गई। मुख्यधारा के समाचार पत्रों या चैनलों का एक भी जिन्दा दिल पत्रकार या संस्थान ऐसा नहीं है जिसने घटनात्मक रिपोर्टिंग के अलावा समस्या की जड़ तक जाने का प्रयास किया हो। हालांकि 50 दिन से धरने पर बैठे इन बच्चों में पत्रकारों के कई सगे-संबंधी भी हैं, लेकिन उनकी मजबूरी यह है कि वो चाहकर भी सरकार के खिलाफ नहीं जा सके। कारण, सरकार विज्ञापन रोक देगी तो संपादक की कुर्सी हिल जाएगी। संपादक एक डरा हुआ आदमी है, वह संपादक कम दलाल अधिक है। उसे खबरों से अधिक मालिक के काम शासन से कराने होते हैं। संपादक का अर्थ असहाय और चाटुकार है। इसलिए अब कोई सरकार के खिलाफ चूं नहीं करेगा तो लोगो मत बांधों हमसे अधिक उम्मीदें। हम मिशनरी नहीं कारपोरेट पत्रकार हैं। तो बोला, प्रेस डे की जय।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]
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