हाईकोर्ट में केस कोई भी जीते, लेकिन हारेगी दोस्ती
सहारा प्रबंधन ने पत्रकार के खिलाफ पत्रकार खड़ा किया
मजीठिया व बकाया वेतन भुगतान को लेकर मैं राष्ट्रीय सहारा के खिलाफ लेबर कोर्ट गया और वहां से जीत भी गया। अब सहारा प्रबंधन ने लेबर कोर्ट के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी है। हाईकोर्ट में सहारा प्रबंधन के पैरोकार बने हैं एडवोकेट राजेश जोशी और प्रबंधन की ओर से नुमाइंदगी करेंगे हल्द्वानी के राष्ट्रीय सहारा के पत्रकार गणेश पाठक। एडवोकेट राजेश जोशी राष्ट्रीय सहारा में हाईकोर्ट के समाचार वर्षों से देते आए हैं। सहारा उनको खबरों की एवज में एक रुपये भी नहीं देता है। चूंकि मैं सहारा में लंबे समय तक गढ़वाल व कुमाऊं प्रभारी रहा। मैंने कई बार राजेश जोशी और उनकी तरह ही अन्य कई स्ट्रिंगर को मानदेय देने का मुद्दा भी तत्कालीन संपादकों के आगे उठाया था। चलो, जोशी से कोई शिकायत नहीं। उनका काम जो है वही कर रहे हैं। लेकिन गणेश पाठक तो पत्रकार हैं और सबसे बड़ी बात वो मेरे दोस्त भी हैं।
वेतन न मिलने पर हम दोनों मिलकर सहारा प्रबंधन को घंटों कोसते थे। गणेश भी सहारा के मालिक सुब्रत राय से लेकर ग्रुप संपादकों को खूब कोसते थे, लेकिन आज जब अपने अधिकारों और इंसाफ की लड़ाई की बात हुई तो गणेश प्रबंधन के आगे झुक गए। मैं समझता हूं कि उनकी मजबूरी होगी, लेकिन ऐसी मजबूरी भी क्या? जो दोस्त को दोस्त के खिलाफ खड़ा कर दे। पूरे देश में मजीठिया की लड़ाई लड़ने वाले पत्रकारों के लिए यह मिसाल है कि प्रबंधन ने एक पत्रकार के खिलाफ कोर्ट में पत्रकार को खड़ा कर दिया।
सहारा में ऐसा ही होता है। जयचंदों को उपहार हैं। जब हम वेतन के लिए सहारा में आंदोलन कर रहे थे और हमने तीन दिन तक अखबार नहीं निकलने दिया तो ब्यूरो प्रभारी जितेंद्र नेगी और भूपेंद्र कंडारी ने प्रबंधन का साथ दिया। ईनाम जितेंद्र नेगी को संपादक बना दिया और देहरादून के पत्रकारों ने तो गजब ही ढा दिया। मजीठिया और पत्रकारों के हकों के घोर विरोधी भूपेंद्र कंडारी को प्रेस क्लब का अध्यक्ष बना दिया। शायद यही कारण है कि गणेश पाठक ने भी प्रबंधन के तलुवे चाटने की सोची हो, भावी संपादक बनने के लिए। बस, शिकवा तो यही है कि पापी पेट और दोस्ती की लड़ाई में दोस्ती हार गयी। लेकिन, यह तो धर्मयुद्ध है, इंसाफ और अपने हक की लड़ाई है, मुझे तो लड़ना ही होगा और मैं लडूंगा।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से]
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Bhaisaab, Geeta Ko yaad karo, na koi dost na Dushman, jo sach ke saath vo dost jo nahi vo Dushman, maghtivya ne to dost dusman ki pechan karwa di hai.
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