Wednesday, 29 November 2017

मजीठिया: ‘दैनिक भास्कर’ के सुनील कुकरेती ने भी लगाया क्लेम

“डी बी कॉर्प लि.” द्वारा संचालित ‘दैनिक भास्कर’ समाचार-पत्र के प्रिंसिपल करेस्पॉन्डेंट धर्मेन्द्र प्रताप सिंह द्वारा मजीठिया वेज बोर्ड मामले में कंपनी को धूल चटाए जाने के बाद ‘भास्कर’ के मुंबई ब्यूरो में बागियों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। अपने बकाए की वसूली के लिए श्रम विभाग पहुंचने वालों में अब नया नाम जुड़ा है सुनील कुकरेती का, जो इस संस्थान में बतौर सीनियर रिपोर्टर कार्यरत हैं।
आपको बता दें कि धर्मेन्द्र प्रताप सिंह के बाद रिसेप्शनिस्ट लतिका चव्हाण और आलिया शेख ने भी बगावत का बिगुल बजाया था, जिसके परिणाम स्वरूप श्रम विभाग से कटी आरसी पर स्टे लेने के लिए ‘भास्कर’ प्रबंधन बॉम्बे हाई कोर्ट गया। इस पर न्यायालय ने जब आदेश दिया कि आरसी में उल्लेख की गई रकम की आधी धनराशि पहले कोर्ट में जमा की जाए, तब प्रबंधन ने माननीय सुप्रीम कोर्ट में जाकर हाई कोर्ट के इस आदेश को चुनौती दी। यह बात और है कि सुप्रीम कोर्ट से इन्हें बैरंग लौटना पड़ा… आखिर हाई कोर्ट के आदेश के मुताबिक, प्रबंधन ने सिंह और चव्हाण के साथ ही आलिया की आरसी का आधा पैसा माननीय अदालत में जमा करवा दिया है।
‘भास्कर’ प्रबंधन की हुई इस फजीहत का नतीजा यह हुआ है कि पहले जहां सिस्टम इंजीनियर ऐस्बर्ट गोंजाल्विस और ब्यूरो चीफ अनिल राही ने क्लेम लगाया, वहीं हालिया डेवलपमेंट को देखते हुए अब हिम्मत का परिचय सुनील कुकरेती ने दिया है… कुकरेती ने भी कंपनी के खिलाफ बगावत का झंडा उठा लिया है! जी हां, सुनील कुकरेती ने मुंबई के श्रम आयुक्त कार्यालय में 7 नवंबर, 2017 को 35 लाख रुपए का क्लेम लगा कर अपने बकाया की मांग की है, जिसके तहत कंपनी को नोटिस जारी हुआ और विगत 27 नवंबर से सुनवाई भी शुरू हो चुकी है। इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख 15 दिसंबर है। यहां बताना आवश्यक है कि मजीठिया क्रांतिकारियों के संपर्क में ‘भास्कर’ के दो और कर्मचारी हैं, जो जल्द ही क्लेम लगाने जा रहे हैं। जाहिर है कि ‘भास्कर’ संस्थान में बागियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है तो देश के सबसे बड़े और विश्वसनीय अखबार में इन दिनों हड़कंप का माहौल है!

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्टिविस्ट
एनयूजे मजीठिया सेल समन्वयक
9322411335

Tuesday, 28 November 2017

ठेका कर्मचारियों को भी मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ देना जरूरी


महाराष्ट्र के लेबर कमिश्नर ने अखबार मालिकों को दिया सख्‍त निर्देश

सभी अखबारों की होगी फिर से जांच


महाराष्ट्र के लेबर कमिश्नर द्वारा बुलाई गई त्रिपक्षीय समिति की बैठक में लेबर कमिश्नर यशवंत केरुरे ने अखबार मालिकों के प्रतिनिधियों को स्‍पष्‍ट निर्देश दिया कि आपको माननीय सुप्रिमकोर्ट के आदेश का पालन करना ही पड़ेगा। केरुरे ने कहा कि वेजबोर्ड का लाभ ठेका कर्मचारियों को भी देना अनिवार्य है। मुम्बई के बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्श के लेबर कमिश्नर कार्यालय में बुलाई गई इस बैठक में राज्यभर के विभागीय अधिकारियों को भी आमंत्रित किया गया था। इस बैठक में सवाल उठाया गया कि जस्टिस मजिठिया वेजबोर्ड के अनुसार अपने बकाये का क्लेम लगाने में मीडिया कर्मियों में डर का माहौल है। अखबार मालिक लोगों को परेशान कर रहे हैं। ट्रांसफर टर्मिनेशन कर रहे हैं। नौकरी से निकालने या पेपर बन्द करने की धमकी देकर सादे कागज पर साइन कराया जा रहा है। कई अखबार मालिक अपने समाचार पत्र के कर्मचारियों से त्यागपत्र लेकर नई कंपनी में ठेके पर ज्वाइन करा रहे हैं। कई अखबार मालिक अपने कर्मचारियों को डिजिटल में ज्वाइन करा रहे हैं। ये मुद्दा नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट महाराष्ट्र की पत्रकार प्रतिनिधि शीतल करंदेकर ने उठाया ।
इसपर लेबर कमिश्नर ने कहा कि मीडियाकर्मियों को घबराने की कोई जरूरत नही है। इसमे कोई संदेह नही होना चाहिए कि मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ मीडियाकर्मियों को नही मिलेगा। उन्हें इसका लाभ जरूर मिलेगा। माननीय सर्वोच्च न्यायालय का आदेश न मानने वालों के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना का मामला चलेगा। और जहां भी मीडियकर्मियोंको परेशान किया जा रहा है वे शिकायत करें। उन्होंने सभी अधिकारियों को निर्देश दिया कि ऐसे मामलों का तीन महीने में निस्तारण किया जाए।

एनयूजे महाराष्ट्र ने सभी अखबारों के फिर से सर्वे करने की मांग की जिसपर सहमति बनी। इसपर अखबार मालिकों के प्रतिनिधियों ने एतराज जताया और कहा कि फिर से जांच की कोई जरूरत नही है। इस दौरान ये मुद्दा भी उठा कि सखबार मालिक सरकारी विज्ञापन लेते समय खुद को नंबर वन का ग्रेड बताकर विज्ञापन लेते हैं जबकि मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिश लागू करते समय खुद का निचला ग्रेड बताते हैं। आयुक्त ने जनवरी तक सभी समाचार पत्रों की जॉच करने का आदेश दिया। इस जॉच की डेट सभी पत्रकार प्रतिनिधियों को भी बताने की मांग की गई जिसे आयुक्त ने मान्य कर लिया। इस अवसर पर बीयूजे के इन्दरजैंन ने फिक्सेशन सार्टिफिकेट प्रत्येक कर्मचारी को देने का निवेदन किया। इस अवसर पर एनयूजे महाराष्ट्र ने मांग की कि समिति के कई सदस्य बैठक में नही आते उनकी जगह मजीठिया के जानकार लोगों को सदस्य बनाया जाए।इस दौरान शीतल करंदेकर ने ये भी मुद्दा उठाया कि लेबर विभाग ने सुप्रीमकोर्ट को जो रिपोर्ट भेजी है उसमें कई अखबारों में दिखाया है कि इन अखबारों में मानिसना वेजबोर्ड की सिफारिश लागू है इसकी भी जांच कराई जाए। इस बैठक में लेबर डिपार्टमेंट के उपसचिव कार्णिक भी मौजूद थे।बैठक का संचालन ड्यूपीटी लेबर कमिश्नर बुआ ने किया।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आर टी आई एक्सपर्ट
एनयूजे महाराष्ट्र मजीठिया वेज बोर्ड समन्यवयक
9322411335

मजीठिया: सुप्रीम कोर्ट ने अखबार मालिकों को राहत देने से किया इनकार

आप भी देखिए सुप्रीम कोर्ट का नया ऑर्डर 



जस्टिस मजीठिया वेजबोर्ड मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट अखबार मालिकों के खिलाफ सख्त होता जा रहा है। जी हां, सुप्रीम कोर्ट ने अखबार मालिकों के लिए दो सख्त आदेश दिए हैं… पहला तो यह कि उन्हें अपने कर्मचारियों को जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ देना ही पड़ेगा, भले ही उनका अखबार घाटे में हो। दूसरा, अखबार मालिकों को उन कर्मचारियों को भी मजीठिया वेज बोर्ड के मुताबिक लाभ देना पड़ेगा, जो ठेके पर हैं। सुप्रीम कोर्ट के रुख से यह भी स्पष्ट हो चुका है कि जिन मीडियाकर्मियों को मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ चाहिए, उन्हें क्लेम लगाना ही होगा।
आपको बता दें कि मीडियाकर्मियों ने माननीय सुप्रीम कोर्ट का ध्यान जब इस ओर दिलाया कि लेबर कोर्ट में जाने पर बहुत टाइम लगेगा… वहां इस तरह के मामले में कई-कई साल लग जाते हैं, तब माननीय सु्प्रीम कोर्ट ने उन्हें एक और राहत दी। यह राहत थी लेबर कोर्ट को टाइम बाउंड करने की। सुप्रीम कोर्ट ने लेबर कोर्ट को स्पष्ट आदेश दे दिया कि वह 17 (2) से जुड़े सभी मामलों को वरीयता के आधार पर 6 माह में पूरा करे। इसके बाद कुछ मीडियाकर्मी फिर सुप्रीम कोर्ट की शरण में पहुंच गए और वहां गुहार लगाई कि मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार, अपना बकाया मांगने पर संस्थान उन्हें नौकरी से निकाल दे रहा है! इस पर सुप्रीम कोर्ट के विद्वान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने मीडियाकर्मियों का दर्द एक बार फिर समझा और आदेश दिया कि जिन लोगों का भी मजीठिया मांगने के चलते ट्रांसफर या टर्मिनेशन हो रहा है, ऐसे मामलों का भी निचली अदालत 6 माह में निस्तारण करे। इससे अखबार मालिकों ने मजीठिया वेजबोर्ड के अनुसार, बकाया मांगने वालों के ट्रांसफर / टर्मिनेशन की गति जहां धीमी कर दी, वहीं सुप्रीम कोर्ट द्वारा मीडियाकर्मियों का दर्द समझे जाने का असर यह हुआ कि अब निचली अदालतें भी नए ट्रांसफर / टर्मिनेशन के मामलों में मीडियाकर्मियों को फौरन राहत दे रही हैं।

यहां बताना यह भी आवश्यक है कि पिछले दिनों मुंबई में ‘दैनिक भास्कर’ की प्रबंधन कंपनी “डी बी कॉर्प लि.” के प्रिंसिपल करेस्पॉन्डेंट धर्मेन्द्र प्रताप सिंह, रिसेप्शनिस्ट लतिका चव्हाण और आलिया शेख के पक्ष में लेबर डिपार्टमेंट ने रिकवरी सर्टिफिकेट (आरसी) जारी किया था… कलेक्टर द्वारा वसूली की कार्यवाही भी तेजी से शुरू हो गई थी। हालांकि “डी बी कॉर्प लि.” ने इस पर बॉम्बे हाई कोर्ट पहुंच कर आरसी पर रोक लगाने की मांग की, मगर हाई कोर्ट ने उनकी एक न सुनी और साफ शब्दों में कह दिया कि कर्मचारियों की जो बकाया धनराशि है, पहले उसका 50 फीसदी हिस्सा कोर्ट में जमा किया जाए। यह बात अलग है कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद “डी बी कॉर्प लि.” ने माननीय सु्प्रीम कोर्ट में पहुंच कर विद्वान न्यायाधीश रंजन गोगोई से गुहार लगाई कि हुजूर, हाई कोर्ट का पैसा जमा कराने का आदेश गलत है और इस पर तत्काल रोक लगाई जाए। लेकिन वहां इनका दांव उल्टा पड़ गया… गोगोई साहब और जस्टिस नवीन सिन्हा का नया आदेश एक बार फिर मीडियाकर्मियों के पक्ष में ‘ब्रह्मास्त्र’ बन गया है। असल में “डी बी कॉर्प लि.” को राहत देने से इनकार करते हुए उन्होंने ऑर्डर दिया कि हमें नहीं लगता कि हाई कोर्ट के निर्णय पर हमें दखल देना चाहिए। स्वाभाविक है कि इसके बाद मरता, क्या न करता? सो, जानकारी मिल रही है कि “डी बी कॉर्प लि.’ प्रबंधन ने बॉम्बे हाई कोर्ट में तीनों कर्मचारियों की आधी-आधी बकाया राशि जमा करवा दी है।

इससे साफ हो गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने यहां अखबार मालिकों के आने का रास्ता लगभग बंद कर दिया है। अब कोई भी मीडियाकर्मी अगर क्लेम लगाता है तो उसका निस्तारण भी जल्द होगा।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्टिविस्ट
एनयूजे मजीठिया सेल समन्वयक
9322411335

Tuesday, 21 November 2017

IFWJ strongly condemns killing of Tripura journalist by policeman

New Delhi, 21st November: Indian Federation of Working Journalists (IFWJ) has expressed shock and serious concern over the brutal killing of a senior journalist Sudip Dutta Bhowmik today near Agartala. He was a crime reporter of ‘Syandan Patrika’, a widely circulated Bengali daily of Agartala (Tripura). This is the second gruesome murder of a journalist in Tripura within two months. Last time on 20thSeptember a young TV journalist Shantanu Bhaumik was killed by some hoodlums in the presence of police force but this time a policeman himself went berserk and ripped the body of the journalist Sudip Dutta Bhowmik by pumping bullets from his  AK47 from his service gun.

With the murder of 54 year old Sudip Dutta Bhomik, the entire journalist community is horrified. According to the reports available from Debasish Majumder, the former Secretary of ‘Tripura Working Journalists Association’ (TWJA) and colleague of Sudip Dutta Bhowmik, he was killed 15 kms away from Agartala in the residential campus of Tripura State Rifles, where he had gone to meet Tapan Dev Barman, the Commandant of the Tripura State Rifles (STF).

IFWJ President B.V. Mallikarjunaiah and Secretary General Parmanand Pandey have asked the government to order an inquiry by the CBI into the unprovoked killing of the senior journalist. Any inquiry by the state government will not be acceptable because that is bound to be tainted and biased. IFWJ has also demanded that a monetary help of Rs. 50 lakh must be immediately given by the Chief Minister Manik Sarkar to the bereaved family members of the late journalist.

Parmanand Pandey
Secretary General-IFWJ

मजीठिया: ग्वालियर में पत्रिका को फिर झटका, दीपक यदुवंशी के ट्रांसफर पर कोर्ट ने लगाई रोक




राजस्थान पत्रिका को एक और तगड़ा झटका लगा है। जितेंद्र जाट के बाद दीपक यदुवंशी को लेबर कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। लेबर कोर्ट ने दीपक के ट्रांसफर पर रोक लगा दी है। दीपक ने प्रबंधन से मजीठिया वेजबोर्ड के तहत अपने हक का वेतन मांगा था, लेकिन अपनी आदत के तहत पत्रिका प्रबंधन दमन पर उतर आया। लेकिन, इस बार भी ग्वालियर के वकील नवनिधि पढ़रया देवदूत बनकर आए। नवनिधि जितेंद्र जाट के वकील भी हैं।

दीपक यदुवंशी की नियुक्ति राजस्थान पत्रिका प्रा. लि. में हुई थी। कुछ समय बाद उसे बिना बताए फोर्ट फोलियो (यह कंपनी पत्रिका ने कर्मचारियों को वेतनमान से महरूम रखने के लिए बनाई हुई है) में डाल दिया। जब दीपक ने कोर्ट में मजीठिया के लिए आवेदन लगाया तो प्रबंधन बौखला गया। दीपक का यह कहते हुए नागौर (राजस्थान) ट्रांसफर किया गया कि ग्वालियर में पत्रिका को फोर्ट फोलियो कंपनी के कर्मचारी दीपक की जरूरत नहीं है। नागौर में जरूर काम है, वहां चले जाओ। यानी सीधे-सीधे दमन।

प्रबंधन के ट्रांसफर को दीपक ने वकील नवनिधि के माध्यम से लेबर कोर्ट में चैलेंज किया। माननीय न्यायाधीश ने दीपक के ट्रांसफर पर रोक लगा दी है। दीपक को पुनः ज्वाइन कराने के आदेश दिए हैं।

डेढ़ माह पहले जितेंद्र जाट को भी प्रबंधन को पुनः ज्वाइनिंग देनी पड़ी थी (जितेंद्र को बिना कारण डेढ़ साल पहले बर्खास्त कर दिया गया था, जबकि वो ग्वालियर में चीफ रिपोर्टर के पद पर कार्यरत थे और वो मजीठिया वेतनमान के लिए सुप्रीम कोर्ट गए थे)। हद तो यह है कि जितेंद्र को ज्वाइनिंग के बाद संपादकीय कार्यालय के बजाय मशीन में एक छोटे से कमरे में बैठाया गया है। पहले दिन उन्हें समीक्षा के लिए कंप्यूटर दिया गया, जब जितेंद्र ने अच्छी समीक्षा कर दी तो दूसरे दिन कंप्यूटर हटा लिया गया।

जितेंद्र के बाद दीपक को कोर्ट से राहत मजीठिया वेतनमान के लिए लड़ रहे पत्रकारों और गैर पत्रकारों की बड़ी जीत है। प्रबंधन का शोषण उनके लिए चेतावनी भी है, जो आज चुप हैं और सहन कर रहे हैं। हो सकता है अगला नंबर आपका हो। शोषण के खिलाफ आवाज उठाएं, आज शांत रह गए तो आगे आने वाली पीढ़ियां आपको माफ नहीं करेंगी।

इसे भी पढ़े...

मजीठिया: जाट की जीत से पत्रिका प्रबन्धन में जबरदस्त बौखलाहट, CCTV से रखी जा रही नजर 

http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/10/blog-post_10.html?m=1


#MajithiaWageBoardsSalary, MajithiaWageBoardsSalary, Majithia Wage Boards Salary

प्रिंट मीडिया कर्मी खफा, मीडिया में भाजपा का ग्राफ गिरा



पत्रकार बोले, मूडीज की रेटिंग सिर्फ छलावा

पत्रकारों पर अन्याय देख लोग बीजेपी से खफा


लखनऊ। उत्तर प्रदेश के निकाय चुनाव में पत्रकारों ने एकजुट होकर भाजपा के खिलाफ बिगुल फूंक दिया है, उन्होंने मोहल्लों और वार्डों में लोगों से मुलाक़ात कर मूडीज को बीजेपी का प्रोपेगेंडा बताया। कहा अगर सब कुछ सही है तो आपके व्यापार में बढ़त क्यों नहीं। लोगों ने स्वीकारा कि बीजेपी लोगों को छल रही है। असर अब दिखने लगा है। जनमानस बीजेपी के खिलाफ अब अपनी बात रख रहा है। लोगों ने पत्रकारों पर हो रहे अन्याय के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया। पत्रकारों की अपील पर लोग बीजेपी के खिलाफ वोट करने के मूड में है। लोग सपा और कांग्रेस के प्रत्याशियों को समर्थन कर रही है। 

भाजपा की मीडिया कवरेज घटी

लगातार प्रिंट मीडिया कर्मियों पर हो रहे अत्याचार का असर अब साफ देखा जा सकता है। मीडिया कवरेज के नाम पर कांग्रेस, सपा को बीजेपी से ज्यादा स्थान मिल रहा है। प्रिंट मीडिया में काम करने वाले पत्रकारों की नाराजगी से प्रिंट, डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बीजेपी को काफी कम स्थान मिल रहा है। क़रीब 5 हजार पत्रकार मजीठिया वेज बोर्ड की मांग के चलते प्रिंट मीडिया से निकाले जा चुके हैं। और उनमें से ज्यादातर पत्रकार अब इलेट्रॉनिक मीडिया की ओर रुख कर चुके है।

कैसे हो रहा विरोध

उत्तर प्रदेश के पत्रकारों ने ‘भाजपा हराओ, मजीठिया पाओ’ नामक व्हाट्सएप ग्रुप तैयार किया है। लगातार 24 घंटे सक्रिय होकर इस ग्रुप में भाजपा को हराने की रणनीति तैयार की जा रही है। इस ग्रुप में दैनिक जागरण, अमर उजाला,  टाइम्स ऑफ इंडिया, हिन्दुस्तान और हिन्दुतान टाइम्स समेत कई बड़े अखबार के पत्रकार सदस्य हैं।

क्या है मामला

प्रिंट मीडिया में देश भर के पत्रकारों को मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार वर्ष 2011 से वेतन मिलना था। देश भर के पत्रकार अपना वाजिब मेहनताना मांगते रहे लेकिन कंपनी मालिकों का दिल आज तक नहीं पसीजा। इसमें श्रम विभाग भी पूरी तरह अखबार मालिकों के साथ खड़ा दिखा। जिस पत्रकार ने मजीठिया वेज बोर्ड की मांग की उसे या तो नौकरी से निकल दिया गया या फिर इतना परेशान किया गया कि वह स्वतः नौकरी छोड़ने को मजबूर हो गया। उत्तर प्रदेश के करीब 50 हजार पत्रकारों ने अब अपनी मजीठिया वेज बोर्ड की मांग को लेकर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

(साभार: http://shagunnewsindia.com)

#MajithiaWageBoardsSalary, MajithiaWageBoardsSalary, Majithia Wage Boards Salary

Saturday, 18 November 2017

लोकमत को लगा तगड़ा झटका, नौकरी से निकाले गए 24 कर्मियों को वापस काम पर रखने का आदेश

महाराष्ट्र से प्रकाशित मराठी दैनिक लोकमत को तगड़ा झटका लगा है। 7 नवंबर को  नागपुर की इंडस्ट्रीयल कोर्ट नंबर 4 ने एक आदेश जारी कर लोकमत से निकाले गए 24 स्थायी कर्मचारियों को वापस काम पर रखने का निर्देश दिया है।

इस बारे में जानकारी देते हुए लोकमत श्रमिक संगठन के संजय येवले पाटिल ने बताया कि इंडस्ट्रीयल कोर्ट ने सभी 24 स्थायी कर्मचारियों को 4 सप्ताह के अंदर काम पर रखने का निर्देश कंपनी प्रबंधन को दिया है। बताते हैं कि लोकमत प्रबंधन ने 12 नवंबर 2013 को यूनियन की गोवा के एक पदाधिकारी को काम से निकाल दिया था जिसके बाद यूनियन के सदस्यों ने असहयोग आंदोलन शुरु कर दिया था और प्रबंधन के सामने शर्त रख दी कि या तो निकाले गए कर्मचारी को काम पर रखें, नहीं तो असहयोग आंदोलन जारी रहेगा। 

इसके बाद कंपनी प्रबंधन ने 15 नवंबर से 21 नवंबर 2013 के बीच यूनियन के कुल 61 लोगों को काम से निकाल दिया था। जिसमें 30 स्थायी कर्मचारी थे और बाकी 31 ठेका कर्मी थे। इन 30 स्थायी कर्मचारियों में से 24 ने इंडस्ट्रीयल कोर्ट की शरण ली।  कंपनी ने 21 नवंबर 2013 को ही एक दिन में 24 कर्मचारियों को निकाला  था। जिन लोगों को काम से निकाला गया था उसमें लोकमत श्रमिक संगठन के अध्यक्ष संजय येवले पाटिल, महासचिव चंद्रशेखर माहुले सहित  लगभग सारे पदाधिकारियों को निकाल दिया गया था। संजय येवले पाटिल के मुताबिक कंपनी ने 21 नवंबर 2013 को ही एक  प्रस्ताव लाकर पाॅकेट यूनियन बनाई। जिसमें सिटी संपादक गजानन जानभोर को अध्यक्ष बनाया गया। उसके बाद मशीन के सुपरवाईजर  प्रदीप कावलकर को जनरल सेक्रेटरी बनाया। और बाकी मैनेजरियल लोगो को पदाधिकारी बना दिया। उसके बाद इस यूनियन को इंडस्ट्रीयल कोर्ट में चैलेंज किया गया। जिसमें इंडस्ट्रीयल कोर्ट ने नई यूनियन को अवैध माना और पुरानी युनियन को मान्यता दी। ये युनियन आज भी बरकरार है।

लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने वाली कर्मचारियों की यूनियन ने अदालत से गुहार लगाई कि जिन लोगो को काम से निकाला गया है उनको वापस काम पर रखा जाए और बकाया वेतन दिलाया जाए, जिसके बाद  7 नवंबर को  नागपुर की इंडस्ट्रीयल कोर्ट नंबर 4 के विद्वान न्यायाधीश श्रीकांत के देशपांडे ने  लोकमत से निकाले गए 24 स्थायी कर्मचारियों को वापस काम पर रखने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने यह भी कहा है या तो इन 24 लोगो को वापस नौकरी पर रखा जाए, नहीं तो जब से इनको काम से निकाला गया है तब से  मामले के निस्तारण तक उनको इनके वेतन का 75 प्रतिशत प्रत्येक माह वेतन दिया जाए।

फिलहाल कंपनी को कर्मचारियों ने 8 नवंबर को कंपनी में ज्वाइनिंग कराने के लिए पत्र तो दे दिया है, लेकिन लोकमत प्रबंधन के पास अभी चार सप्ताह का समय है कि वह क्या करेगी। इन कर्मचारियोे को ज्वाईन कराएगी या घर बैठे जबतक मामले का निस्तारण नहीं होता तब तक 75 प्रतिशत हर माह वेतन देगी। फिलहाल इस मुद्दे पर लोकमत श्रमिक यूनियन मुंबई उच्च न्यायालय की शरण में भी जा रही है कि या तो हमें ज्वाईन कराया जाए, नहीं तो केस के निस्तारण तक हमें पूरा वेतन दिया जाए। क्योकि हम 21,11,2013 से काम पर ही है और ऐसे में हमें पूरा वेतन पाने का अधिकार है। इसमें पत्रकार,ग़ैरपत्रकार शामिल हैं। 

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें या निम्‍न path का प्रयोग करें  https://goo.gl/tJASjq


शशिकांत सिंह  
पत्रकार और आरटीआई एक्सपर्ट  
९३२२४११३३५

इसे भी पढ़े...

HAIL THE HEROES ! 

http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2017/11/all-india-newspaper-employees.html