Friday, 15 June 2018

पीड़ित पत्रकारों ने कहा, "अधिकारियों द्वारा काम न करने के केजरीवाल के आरोप सही"

पिछले 5 दिन से अपने मंत्रियों के साथ LG निवास पर धरने पर बैठे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आला अधिकारियों द्वारा काम न करने के आरोप बिल्‍कुल सही है। ये कहना है कि अखबार मालिकों की प्रताड़ना के शिकार कर्मियों का। ये कर्मी पिछले कुछ सालों से अपना हक पाने के लिए डीएलसी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक अखबार मालिकों से लड़ रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों के तहत वेतनमान और एरियर के रुप में प्रति कर्मी लाखों रुपये ना देने पड़े, इसके लिए देश के ज्‍यादातर नामचीन अखबारों ने अपने हजारों कर्मियों की नौकरी खा ली या फिर इतना प्रताड़ित किया कि उन्‍हें नौकरी छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा।

सुप्रीम कोर्ट ने WP(C)246/2011 के मामले में 7 फरवरी 2014 को मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को सही मानते हुए अखबार मालिकों को अप्रैल 2014 से नए वेतनमान के अनुसार वेतन और एरियर के रुप में बने 11 नवंबर 2011 से लेकर मार्च 2018 तक की बकाया एरियर की राशि को एक साल के भीतर देने का आदेश दिया था। इस आदेश के बाद ही अखबार मालिकों ने अपने कर्मियों का दमनचक्र शुरु कर दिया। जिसके बाद पीड़ित कर्मियों ने अखबार मालिकों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई अवमानना याचिकाएं दायर की।
जिसमें CONT. PET.(C) No. 411/2014 पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हर राज्य से मजीठिया लागू करने के बारे में रिपोर्ट मांगी। जिस पर दिल्ली के श्रम विभाग के अधिकारियों द्वारा जागरण समेत सभी अखबारों में मजीठिया लागू होने की फर्जी रिपोर्ट बनाकर सुप्रीम कोर्ट को भेज दी गई। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में कर्मचारियों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का केस दायर करने वाले एडवोकेट और ifwj के सेक्रेटरी जनरल परमानन्द पांडे जी की अगुवाई में सभी अखबारों के पत्रकारों का एक प्रतिनिधिमंडल श्रम मंत्री गोपाल राय से मिला और इस गलत रिपोर्ट को बदलने की मांग की।
इसके बाद दिल्‍ली सरकार ने सही तथ्‍यों के आलोक में रिपोर्ट तैयार कर संशोधित रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की। संशोधित रिपोर्ट में जागरण, भास्‍कर जैसे देश के नामी अखबारों में मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशें लागू नहीं किए जाने के जिक्र के साथ-साथ कर्मचारियों के उत्पीड़न का जिक्र भी था। ये सुप्रीम कोर्ट में किसी भी राज्‍य की तरफ से दायर सब से सही रिपोर्ट थी। बाकि राज्यों ने ज्यादातर सही तथ्‍यों को नजरअंदाज करते हुए अखबार मालिकों के पक्ष में रिपोर्ट दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पीड़ितकर्मियों को डीएलसी में केस लगाने को कहा था, जिसके बाद हजारों अखबार कर्मियों ने देशभर में रिकवरी और प्रताड़ना को लेकर अपने केस दर्ज करवाए थे।

देशभर में इन केसों पर सुनवाई के दौरान अखबार कर्मियों को श्रम कार्यालयों में कई तरह की दिक्‍कतों का सामना करना पड़ा। ऐसी ही दिक्‍कतें दिल्‍ली के श्रम कार्यालयों में केस लगाने वाले अखबार कर्मियों के सामने भी आ रही थी। जिसके बाद पिछले साल दिल्‍ली में कार्यरत कर्मियों की तरफ से एक प्रतिनिधिमंडल मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिला था। उस मुलाकात के दौरान श्रम विभाग के आलाधिकारी भी वहीं उपस्थित थे। केजरीवाल ने पत्रकारों की शिकायतों को ध्‍यान से सुना और उनके शिकायती पत्रों को लेकर उनका निकारण करने के लिए अधिकारियों को कहा। केजरीवाल के सामने ही पत्रकारों ने जब अधिकारियों को शिकायती पत्र देने की कोशिश की तो उन्‍होंने उनको लेने की जगह एक दूसरे पर टालने की कोशिश की। इस पर जब केजरीवाल को ध्यान दिलाया गया तो उन्होंने गुस्से में अधिकरियों से कहा कि हम यहां जनता की सेवा के लिए बैठे हैं या...। जिसके बाद श्रम कार्यालयों में केसों को जल्‍द निपटाने की प्रक्रिया शुरु हुई। अब आपको सोचना है कि दिल्‍ली सरकार का अधिकारियोँ के प्रति ये रोष जायज है या नहीं...

आप चाहें तो आरटीआई लगाकर जान सकते हैं दिल्‍ली स्थित अखबारों पर श्रम कार्यालयों में कितने केस चल रहे हैं और वे कब दायर किए गए और कितने समय के अंदर उनका निपटान किया गया और अभी तक कितने पेंडिंग है। विशेष तौर पर अखबारों के 95 फीसदी से अधिक कार्यालय नई दिल्‍ली में पड़ते हैं इसलिए नई दिल्‍ली स्थित केनिंग लेन के श्रम कार्यालय की स्थिति क्‍या है।

इसके अलावा दिल्ली ही ऐसा पहला राज्य है जहां पर वेजबोर्ड की सिफारिशों को लागू ना करने वाले अखबार मालिकों पर अधिकतम दंड लगाने के साथ-साथ उन्हें जेल भेजने का भी प्रवाधान किया गया है। अखबार मालिकों के खिलाफ आज तक इस तरह का कड़ा कानून लाने की हिम्मत किसी अन्य राज्य ने नहीं दिखाई। इस कानून को 2 साल पहले दिल्ली विधानसभा में पारित किया गया था और इसे अमलीजामा पहनाने के लिए LG के पास भेज दिया गया था। जिसके बाद इसमें कई अड़ंगे अटकाए गए। इन अड़ंगो की वजह से कानून पर इस साल मोहर लगी। जिसके बाद ही दिल्ली सरकार इसकी अधिसूचना जारी कर सकी।


(दैनिक जागरण, भास्कर, हिंदुस्तान, टाइम आफ इंडिया, इंडियन एक्सप्रेस, सहारा के पीड़ित कर्मी)

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Tuesday, 12 June 2018

मजीठिया: फूल रहे पत्रिका प्रबंधन के हाथ-पैर, कोर्ट रूम में प्रबंधक और वकील में तू-तू, मैं-मैं

मजीठिया वेजबोर्ड का केस अपने हाथों से फिसलता देख राजस्थान पत्रिका प्रबंधन के हाथ-पैर फूलने लगे हैं। बेचैनी किसी कदर है, इसका अंदाज कल (सोमवार को) जयपुर के लेबर कोर्ट रूम में पत्रिका प्रबंधक पी.के.गुप्ता और पत्रिका के वकील रुपिन काला के बीच हुई तू-तू, मैं-मैं से लगाया जा सकता है। दरअसल, कल पत्रिका की ओर से टर्मिनेशन के एक केस में एच.आर हैड मनोज ठाकुर, भोपाल से सुमित पाण्डे, श्रीगंगानगर के इंद्र सिंह और जबलपुर से सचिन श्रीवास्तव के एफिडेविट दायर किए गए थे। दायर किए चार और एप्लीकेशन में लिख दिए पांच। यही नहीं, कुछ अन्य गंभीर खामियां भी छोड दी गईं। कर्मचारियों के प्रतिनिधि ऋषभ जी जैन को तो लूज बॉल मिलनी चाहिए, छक्का लग ही जाता है। ऋषभ ने जज साहब से कहा कि चार ही एफिडेविट हैं। बाद में आप और हम फाइल में पांचवें एफिडेविट को ढूंढते रहेंगे। इस पर पत्रिका के प्रबंधक पी.के.गुप्ता ने एप्लीकेशन में त्रुटि सुधार कर पांच को चार कर दिया। इसके बाद ऋषभ जी ने जज साहब को बताया कि एफिडेविट में प्रदर्श लिखकर छोड़ दिया गया है, उन पर नम्बर नहीं है। यह सुनते ही पी.के.गुप्ता ने एफिडेविट ले लिए और प्रदर्श नम्बर डालने लगे ही थे कि ऋषभ जी ने आपत्ति कर दी। ऋषभ का कहना था कि ये सभी एफिडेविट नोटरी से अटेस्टेड होने के बाद कोर्ट में पेश हो चुके हैं। अटेस्टेड एफिटेविट में किसी भी तरह का परिवर्तन कैसे किया जा सकता है? और वह भी न्यायाधीश के समक्ष। यह सुनते ही जज साहब ने गुप्ता से एफिडेविट ले लिए। स्थिति यह बनी कि चार लोगों के एफिडेविट बिना प्रदर्श नम्बरों के कोर्ट में पेश हैं।
पत्रिका के वकीलों की फौज के सरदार रुपिन काला इस वाकये से इतने बैचेन हुए कि गुप्ता को कोर्ट में ही सबके सामने डांटने लगे। काला ने कहा कि आपको क्या जल्दी रहती है? मुझे दिखाए बिना आपने कैसे कागजात पेश कर दिये? गुप्ता जी भी उखड़ गए और उन्होंने भी वकील काला को सुना दिया कि आपने भी तो अब तक खूब गलतियां की हैं, उनका कुछ नहीं। आज मुझ से एक गलती हो गई तो इतना उखड़ रहे हो। इस पर दोनों के बीच कोर्ट में ही खूब तू-तू, मैं-मैं हुई।

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मजीठिया: थूक कर चाटना कोई पत्रिका प्रबंधन से सीखे

थूककर चाटना कोई राजस्थान पत्रिका प्रबंधन से सीखे। मजीठिया वेजबोर्ड मांग रहे कर्मचारियों का पहले स्थानांतरण किया। वे नए स्थान पर नहीं गए तो उनके खिलाफ घरेलू वकीलों के माध्यम से जांच की खानापूर्ति की और फिर सामंती तरीके से कर्मचारियों के टर्मिनेशन का निर्णय कर लिया। अदालत में मामला फंसा तो अब पत्रिका प्रबंधन कह रहा है कि कर्मचारी चाहें तो वापस नौकरी पर आ सकते हैं।
दरअसल, यह कर्मचारियों के प्रतिनिधि श्री ऋषभ जी जैन द्वारा रचे गए चक्रव्यूह का परिणाम है। पत्रिका प्रबंधन ने मजीठिया क्रांतिकारी ललित जैन, श्रीमती सोमा शर्मा, विजय शर्मा, अनिल कटारा और कुन्दन गुप्ता के मामलों में धारा 33 (1) के तहत आवेदन कर कहा था कि इन कर्मचारियों को जांच के बाद अमुक-अमुक तारीख से टर्मिनेट करने का निर्णय किया गया है। अदालत स्वीकृति दे तो इन्हें उस तारीख से टर्मिनेट कर दिया जाए। तीन दिन पूर्व कर्मचारियों के प्रतिनिधि ऋषभ जी जैन ने अदालत से कहा कि पत्रिका अपने आवेदन में स्वीकृति कहां मांग रहा है, वह तो जानकारी दे रहा है कि अमुक तारीख से टर्मिनेशन का निर्णय किया गया है। अदालत भूतलक्षी प्रभाव से कैसे कह सकती है कि गुजर चुकी अमुक तारीख से कर्मचारी को टर्मिनेट करने की स्वीकृति दी जाती है। आगे ऋषभ जी ने सुप्रीम कोर्ट की नजीरें पेश करते हुए अदालत को बताया कि ऐसे मामलों में टर्मिनेशन के निर्णय की तारीख से ही कर्मचारी को सस्पेंशन भत्ता दिए जाने का प्रावधान है। ऐसा कोई भत्ता भी नहीं दिया गया, इसलिए पत्रिका के 33 (1) के तहत ये आवेदन ही रद्द किए जाने के योग्य हैं।
सुप्रीम कोर्ट की ठोस नजीरों का आधार देखकर पत्रिका के वकीलों को लग गया कि ये मामले अब ज्यादा दिन टिकने वाले नहीं हैं। घबराकर पत्रिका प्रबंधन ने कल (सोमवार को) इन पांचों के संबंध में लगाई गई 33 (1) की एप्लीकेशन वापस लेने की अर्जी लगा दी। अब प्रबंधन का कहना है कि कर्मचारी चाहें तो नौकरी ज्वाइन कर सकते हैं। प्रबंधन की अर्जियों पर कर्मचारियों के प्रतिनिधि ऋषभ जी ने आपत्ति लगा दी है कि इस स्टेज पर अर्जी वापस कैसे ली जा सकती है? पांचों लोगों ने पिछले ढाई साल में जो परेशानी सही है, कोर्ट में उनका जो खर्चा हुआ है, उसको कौन वहन करेगा? इस पर जज साहब ने ऑर्डर कर दिया कि वो इस मामले पर दोनों वकीलों की बहस सुनेंगे, इसके बाद ही 33 (1) की अर्जी वापस लेने के मामले में ऑर्डर करेंगे। इस मामले में पत्रिका प्रबंधन की हालत छांप छछूंदर की सी हो गई है। न उगलते बन रहा है न निगलते।

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Saturday, 9 June 2018

मजीठिया क्रांतिकारी पुरुषोत्तम शर्मा के बेटे की गंगा नदी में डूबने से मौत


घंटो बाद पहुंचे गोताखोर, पुलिस ने भी नहीं की समय पर मदद

वाराणसी से एक दुखभरी खबर आरही है। राजस्थान के सीकर के रहने वाले तथा दैनिक भास्कर के जोधपुर यूनीट के प्रोडक्शन विभाग मेंरिर्वाडिंग आपरेटर पद पर कार्यरत मजीठिया क्रांतिकारी पुरुषोत्तम शर्मा के २१ साल के बेटे सुबोध शर्मा की शुक्रवार को वाराणसी में गंगा नदी में डूबने से मौत हो गयी। सुबोध ७ जून को सुबह पुरे परिवार के साथ काशी दर्शन के लिये गये थे। जहां अस्सी घाट के पास गंगा नदी में नहाते समय सुबोध पानी में डूब गये। बताते हैं कि पुरुषोत्तम शर्मा सुबोध और पुरे परिवार तथा कुछ रिश्तेदारों के साथ काशी गये थे जहां से अगले दिन उन्हे अयोध्या जाना था। इसी बीच गंगा नदी में नहाते समय सुबोध शर्मा पानी में डूब गये। बताते हैं कि जब काफी देरतक सुबोध पानी से बाहर नहीं निकलते तो पुरुषोत्तम शर्मा तुरंत पास के पुलिस चौकी गये मगर वहां से उन्हे कोई मदद नहीं मिली। उन्होने १०० नंबर पर फोन किया तोठीक से जवाब नहीं दिया गया। बाद में काफी देरबाद पुलिस और गोताखोर की टीम वहां पहुंची और काफी देर बाद सुबोध को पानी से निकालकर ट्रांमा सेंटर लाया गया जहां चिकित्सकों ने उन्हे मृत घोषित कर दिया। रोता बिलखता यह परिवार सुबोध के शव के साथ राजस्थान के सीकर जिले के खाचरियावास गांव पहुंचे जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया। पुरुषोत्तम शर्मा मजीठिया क्रांतिकारी भी हैं। उनके पुत्र श ोक की खबर मिलते ही मजीठिया क्रांतिकारियोंऔर मीडियाकर्मियों में शोक की लहर फैल गयी। उनके तिये की बैठक रविवार १० जून को सायंकाल पांच बजेरखी गयी है।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्सपर्ट
९३२२४११३३५

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मजीठिया: भास्कर कार्यालय की कुर्की का आदेश

बकाया ना देने के कारण होगी कार्रवाई


एएलसी ने पास किया था 23.52 लाख का क्लेम 


ब्याज सहित अदा ना किया तो होगी भास्कर कार्यालय की नीलामी


पंजाब के फिरोजपुर से एक बड़ी खबर आ रही है। यहां सहायक लेबर कमिश्रर फिरोजपुर की कोर्ट द्वारा भास्कर कर्मी राजेन्द्र मल्होत्रा को 23 लाख 52 हजार 945 रुपये 99 पैसे की राशि देने के आदेश के बाद भास्कर प्रबंधन द्वारा आनाकानी करने के उपरांत भास्कर के जालंधर कार्यालय की संपत्ति की कुर्की का आदेश हो गया है। भास्कर की प्रॉपर्टी अटैच करके वहां नोटिस भेज दी गयी है। जल्दी ही नीलामी की कार्यवाही शुरू कर कोर्ट राजेन्द्र मल्होत्रा को उसका बकाया हक दिलवाएगी।
17 साल से भास्कर में काम कर रहे मल्होत्रा ने मजीठिया वेज बोर्ड के तहत लाभ लेने के लिए 5 मार्च 2017 को सहायक लेबर कमिश्रर की कोर्ट में केस दायर किया। कोर्ट ने 23,52,945.99 का क्लेम पास कर दो माह में इसे जमा करवाने के लिए दैनिक भास्कर की कंपनी डीबी कॉर्प को कहा। भास्कर प्रबंधन ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और आदेश नहीं माना। इसके बाद बकाया रकम वसूलने के लिए मल्होत्रा द्वारा जालंधर के कलेक्टर से गुहार लगाई गई।
कलेक्टर द्वारा केस उप-मण्डल मजिस्ट्रेट और तहसीलदार को फारवर्ड किया गया। तहसीलदार ने अपनी जांच के आधार पर पत्र क्रमांक 541/रिकवरी दिनांक 7 जून 2018 को जारी कर उप-मण्डल मजिस्ट्रेट को रिपोर्ट दिया कि डी.बी. कॉर्प लिमिटड कार्यालय, एस.सी.ओ. 16, पूडा कंपलैक्स, लाडोवाली रोड, जालंधर की ओर 23,52,945.99 रूपए 9 फीसदी ब्याज सहित रिकवरी बकाया है।
इस बाबत कार्यालय की ओर से कानूगो हल्का के माध्यम से नोटिस जारी करवाया गया था जिसमे दिनांक 1 जून 2018 तक का समय दिया गया था कि उक्त रिकवरी की राशि अदालत में पेश होकर जमा करवाई जाए। तहसीलदार ने रिपोर्ट में लिखा कि डी.बी. कॉर्प की ओर से ना तो रकम जमा करवाई गई और ना ही नोटिस संबंधी कोई जवाब कार्यालय को भेजा गया।
इसी के साथ तहसीलदार ने एसडीएम को रिपोर्ट दी कि उक्त प्रोपर्टी का रिकॉर्ड जालंधर डेवल्पमेंट अथॉरिटी के पास होता है, इसलिए उक्त प्रापर्टी की कुर्की करने की आज्ञा मांगी ताकि रिकवरी की रकम वसूलने के लिए अगली कार्यवाही अमल में लाई जा सके।
तहसीलदार जालंधर-1 की रिपोर्ट के आधार पर सब-डिवीजनल मजिस्ट्रेट ने पत्र क्रमांक 559/रीडर दिनांक 7 जून 2018 जारी कर डी.बी. कॉर्प लिमिटड (दैनिक भास्कर) कार्यालय, एस.सी.ओ. नंबर 16, पूडा कंपलैक्स, लाडोवाली रोड, जालंधर की प्रोपर्टी कानून रूल अनुसार कुर्क करने के आदेश जारी किए हैं। अगर अब भी भास्कर प्रबंधन मजीठिया वेज बोर्ड की क्लेम राशि भास्कर कर्मी राजेन्द्र मल्होत्रा को नहीं देता तो इसके बाद संपत्ति की नीलामी की कार्यवाही कोर्ट में की जाएगी।
बता दें कि मजीठिया वेज बोर्ड के लाभों का क्लेम करने के बाद भास्कर प्रबंधन ने राजेन्द्र मल्होत्रा, जो फिरोजपुर में ब्यूरो चीफ-कम-चीफ रिपोर्टर थे, का तबादला बिहार के दरभंगा में कर दिया था। मल्होत्रा ने इस ट्रांस्फर के विरोध में चीफ जूडीशियल मजिस्ट्रेट सीनियर डिवीजन की कोर्ट में केस दायर किया। कोर्ट ने 22 सितंबर 2017 को उक्त ट्रांस्फर पर स्टे आर्डर जारी कर दिया।
मल्होत्रा जब स्टे आर्डर लेकर फिरोजपुर कार्यालय ज्वाईन करने पहुँचे तो भास्कर प्रबंधन ने उन्हें ज्वाइन नहीं करने दिया जिसके बाद मल्होत्रा ने इसी कोर्ट में भास्कर प्रबंधन के खिलाफ कोर्ट की अवमानना का केस दायर कर दिया जो अभी कोर्ट में विचाराधीन है। मल्होत्रा सुप्रीमकोर्ट के एडवोकेट उमेश शर्मा का मार्गदर्शन लगातार पाते रहे हैं। फिरोजपुर में इनका मैटर वरिष्ठ वकील मनोहर लाल चुग देख रहे हैं।
शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्टिविस्ट
9322411335

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Thursday, 7 June 2018

डी बी कॉर्प को दोहरा झटका: आलिया के ट्रांसफर पर स्टे, सुनील कुकरेती के 42 लाख के क्लेम पर लगी मोहर





जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड मामले में डी. बी. कॅार्प लि. के मुंबई स्थित माहिम वाले कार्यालय में कार्यरत रिसेप्शनिस्ट आलिया इम्तियाज शेख को रमजान के महीने में इंडस्ट्रियल कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। आलिया के ट्रांसफर पर इंडस्ट्रियल कोर्ट ने रोक लगा दी है।

बता दें कि मजीठिया क्रांतिकारी धर्मेन्द्र प्रताप सिंह के बाद मुंबई में आलिया इम्तियाज शेख ने जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार अपने बकाये की मांग को लेकर 17 (1) का क्लेम महाराष्ट्र के कामगार आयुक्त कार्यालय में लगाया था, जिसकी लंबी सुनवाई चली और कामगार आयुक्त कार्यालय की सहायक कामगार आयुक्त नीलांबरी भोसले ने डी. बी. कॅार्प लि. कंपनी को निर्देश दिया कि आलिया शेख का पूरा बकाया, जो कि मजीठिया वेज बोर्ड के अनुसार बनता है, उसे तत्काल दिया जाए। लेकिन इस कंपनी (डी. बी. कॅार्प लि.) ने ये बकाया नहीं दिया।

इसी बीच कंपनी का प्रबंधन मुंबई हाई कोर्ट चला गया, जहां हाई कोर्ट ने धर्मेन्द्र प्रताप सिंह और आलिया इम्तियाज शेख के साथ-साथ उनकी एक और सहयोगी लतिका आत्माराम चव्हाण के बकाये में से पचास प्रतिशत रकम तत्काल हाई कोर्ट में जमा करने का निर्देश दिया, जिसके बाद डी. बी. कॅार्प लि. कंपनी माननीय सुप्रीम कोर्ट गई और सुप्रीम कोर्ट ने डी. बी. कॅार्प लि. को वापस मुंबई हाई कोर्ट भेजते हुए साफ कह दिया कि उसे नहीं लगता कि इस मामले में दखल देना चाहिए।

इसके बाद डी. बी. कॅार्प लि. कंपनी ने इन तीनों कर्मचारियों का आधा बकाया पैसा हाई कोर्ट में जमा तो करा दिया, मगर इससे पहले कंपनी ने अपने प्रिंसिपल करेस्पॅान्डेंट धर्मेन्द्र प्रताप सिंह का ट्रांसफर मुंबई से सीकर (राजस्थान), जबकि लतिका चव्हाण का ट्रांसफर सोलापुर कर दिया गया। हालांकि धर्मेन्द्र प्रताप सिंह ने अपने ट्रांसफर को स्थानीय इंडस्ट्रियल कोर्ट में चुनौती दी और इंडस्ट्रियल कोर्ट ने उनके ट्रांसफर पर रोक लगा दी।

जस्टिस मजीठिया वेर्ज बोर्ड के अनुसार, अपना बकाया मांगने के 21 महीने के बाद डी. बी. कॅार्प लि. ने अपने यहां कार्यरत रिसेप्शनिस्ट आलिया इम्तियाज शेख का भी 24 मई, 2018 को पुणे ट्रांसफर कर दिया और उन्हें वहां पर 1 जून, 2018 को ज्वाइन करने का फरमान सुना दिया। इस पर आलिया ने अपने एडवोकेट एस. पी. पांडे के जरिये कंपनी द्वारा किए गए ट्रांसफर को इंडस्ट्रियल कोर्ट में चुनौती दी।

चूंकि इस समय अदालतों में अवकाश चल रहा है, अत: इंडस्ट्रियल कोर्ट के विद्वान न्यायाधीश एस. डी. सूर्यवंशी ने अपने चेंबर में इस पूरे मामले की एक जून को सुनवाई की और पाया कि आलिया इम्तियाज शेख का ट्रांसफर गलत है और इस ट्रांसफर पर उन्होंने रोक लगा दी। रमजान के महीने में ईद से पहले मिली इस ईदी पर आलिया इम्तियाज शेख काफी खुश हैं।

डी. बी. कॅार्प लि. को दूसरा झटका तब लगा, जब सुनील कुकरेती द्वारा महाराष्ट्र के लेबर डिपार्टमेंट में किए 42 लाख रुपए के क्लेम पर मोहर लगाते हुए असिस्टेंट लेबर कमिश्नर ने आर्डर पास कर दिया ! जाहिर है कि इस संस्थान ने उक्त आदेश को नजरंदाज किया तो सुनील कुकरेती के पक्ष में कंपनी के विरुद्ध शीघ्र ही आरआरसी (रेवेन्यू रिकवरी सर्टिफिकेट) जारी कर दिया जाएगा। बहरहाल, इन दोनों कर्मचारियों ने मुंबई हाई कोर्ट में कैविएट लगा दी है।

शशिकांत सिंह
पत्रकार और आरटीआई एक्सपर्ट
9322411335


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Monday, 4 June 2018

मजीठिया प्रकरण में हटे बरेली के डीएलसी, मुख्यालय से किया अटैच

मजीठिया मामलों में इलाहाबाद हाईकोर्ट में विभाग का पक्ष रखने में हीलाहवाली करने में उत्तर प्रदेश सरकार ने कड़ा रुख अख्तियार करते हुए बरेली के उपश्रमायुक्त रोशन लाल को हटा दिया है। उनको मुख्यालय कानपुर से अटैच किया गया है। उनके स्थान पर अनुपमा गौतम की तैनाती की गई है।

मजीठिया मामलों में दायर हिन्दुस्तान समाचारपत्र की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरेली के उपश्रमायुक्त से स्थिति स्पष्ट करने व स्वयं 24 मई को अदालत में उपस्थित रहने को कहा था। नियत तिथि पर उपश्रमायुक्त ने ना तो विभाग का पक्ष स्टैंडिंग काउंसिल के पास भेजा और ना ही स्वयं हाईकोर्ट में पहुंचे। इस पर कड़ी नाराजगी जताते हुए हाईकोर्ट ने उपश्रमायुक्त बरेली का वारंट जारी कर दिया। उनको 4 जुलाई को हाईकोर्ट में पेश होना है। इधर बरेली लेबर कोर्ट में माह जून में मजीठिया केसों की सुनवाई बंद होने की शासन को शिकायत मिली। तब रजिस्ट्रार दिव्य प्रताप सिंह को बरेली उपश्रमायुक्त व लेबर कोर्ट को कड़ा पत्र लिखना पड़ा।तब जाकर लेबर कोर्ट ने अपना निर्णय वापस लेकर माह जून में सुनवाई शुरू की। मजिठिया मामलों में हीलाहवाली की शासन को लगातार शिकायतें मिल रहीं थीं। प्रमुख सचिव श्रम सुरेश चंद्रा ने बरेली के उपश्रमायुक्त रोशन लाल को हटा दिया है। उनको मुख्यालय कानपुर से अटैच किया गया है। उनके स्थान पर अनुपमा गौतम की तैनाती की गई है। अनुपमा गौतम आज़मगढ़ में तैनात थीं।

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