Friday, 26 August 2016

मजीठिया: कोर्ट के ताजा आदेश निराशा में आशा की किरण

 मुख्‍य बातें-

श्रमायुक्तों को शक्तियां देकर रिकवरी की गई आसान

अब श्रम आयुक्त खुद ही कर सकेंगे रिकवरी पर फैसला

शिकायतें निपटाने के लिए छह सप्ताह का समय मिला

अवमानना मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ताजा आदेश में 23 अगस्त की सुनवाई के दिन उपस्थित चार राज्यों के श्रमायुक्तों को वेजबोर्ड लागू करवाने और शिकायतकर्ताओं की सुनवाई स्वयं करने के आदेश जारी किए हैं। वहीं 20जे के मामले में उत्साहित कर्मियों को इन आदेशों से निराशा जरूर हुई है, मगर कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अगली सुनवाई के दिन यानि 04 अक्तूबर, 2016 को इस पर प्रबंधन का पक्ष सुनने के बाद निर्णय दे दिया जाएगा। हालांकि सुनवाई के दौरान जिस प्रकार से जज ने जागरण प्रबंधन के वकील को 20जे के संबंध में स्पष्ट कर दिया है, उससे यह बात साफ हो चुकी है कि अब अगली बार 20जे पर फैसला कर्मचारियों के पक्ष में ही रहेगा।

फिलहाल इस ताजा फैसले की सबसे बड़ी बात यह है कि कोर्ट ने शिकायतकर्ताओं को लेबर  इंस्पेक्टरों या डीएलसी के चक्करों से छुटकारा दिलाते हुए सीधे लेबर कमीश्ररों को एक्ट की धारा 17 के तहत मामलों की सुनवाई करके निपटाने की शक्तियां प्रदान की हैं। कोर्ट ने यूपी के लेबर कमीश्रर की रिपोर्ट के अनुसार मजीठिया वेज बोर्ड देने वाले अखबारों से जुड़े अवमानना मामलों को बंद करने की घोषणा तो की है, मगर साथ में यह भी साफ कर दिया है कि श्रमायुक्त कार्यालय अपने इस दावे को प्रमाणित करने के साथ ही ताजा आदेशों के तहत कार्रवाई करे। वहीं यूपी के जिन समाचार पत्रों ने मजीठिया वेज बोर्ड को अधूरा लागू किया है, उन्हें इसे पूरी तरह लागू करने को कहा है।

इन आदेशों में आगे लिखा गया है कि कोर्ट के पिछले एक आदेश के अनुसार, जिसमें शिकायतकर्ताओं ने भारी संख्या में इंटरलोकेटरी एप्लीकेशन, याचिकाएं व अन्य अर्जीयां लगाईं थीं उन्हें कोर्ट के लिए एक-एक करके जांचना संभव नहीं है। कोर्ट ने इन अर्जियों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक राज्य के श्रम आयुक्त को इन्हें जांचने की अथारिटी दी थी, जिन्हें वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट के तहत कार्रवाई करने का कानूनी अधिकार पहले से ही प्राप्त हैं। कोर्ट ने इन ताजा आदेशों में भी इस बात को दोहराते हुए पहले पांच राज्यों यूपी, हिमाचल, उत्तराखंड, नागालैंड व मणिपुर के श्रम आयुक्तों को कोर्ट के प्राधिकारी के तौर पर विचारधीन चल रहे मामलों में ऐसी कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं जिससे कोर्ट पूरा और प्रभावी निर्णय सुनाने की योग्य हो पाए। कोर्ट ने इन श्रमायुक्तों को दिए गए निर्देशों की व्याख्या इस प्रकार से की है:

क. लेबर कमीश्रर ने कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत अपने शपथपत्र / रिपोर्ट में जिन समाचारपत्र प्रतिष्ठानों में मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशें लागू न किए जाने की बात कही है, उनके संबंध में श्रमायुक्त विस्तृत तथ्यों के आधार पर प्रभावित पार्टी को पक्ष रखने का मौका देने के बाद निकले अपने निष्कर्ष को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करेंगे।

ख. लेबर कमीश्नर, मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू करने से जुड़े उचित मामले में, अगर वे इसे जरूर मानते हैं, तो खुद की संतुष्टि के लिए स्वयं समाचार पत्र प्रतिष्ठान के परिसर का निरीक्षण कर सकते हैं।

ग. प्रत्येक प्रभावित कर्मचारी को इस बात की खुली छूट होगी कि वह मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के तहत देय राशि की डिटेल राज्य सरकार / श्रम आयुक्त के समक्ष प्रस्तुत कर सके। यह क्लेम उसे मिल रहीं मौजूदा प्राप्तियों से अधिक राशि का होगा, जो उसे वेजबोर्ड के तहत मिलनी चाहिए थी। अगर ऐसी राहत प्रदेश सरकार / श्रम आयुक्त से मांगी जाती है, तो संबंधित अथारिटी को एक्ट की धारा 17 के तहत उचित न्यायप्रक्रिया अपनाने और इसके परिणामस्वरुप आदेश जारी करने की पूरी शक्तियां होंगी।

इन आदेशों में कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के श्रमायुक्त, जो कोर्ट में उपस्थित हुए थे को निर्देश दिए हैं कि वे उपरोक्त प्रक्रिया को प्राथमिकता के आधार पर तुरंत शुरू करके कोर्ट के उपरोक्त दिशानिर्देशों के आधार पर पूरा करें और अपने निष्कर्ष व परिणामों की रिपोर्ट छह सप्ताह में कोर्ट को सौंपे। मामला चार अक्‍टूबर को देखा जाएगा।


इसके बाद हिमाचल प्रदेश के संबंध में आदेश जारी करते हुए लिखा है कि कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश के लेबर कमीश्रर अमित कश्यप द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट / शपथपत्र को देखा, जो पूरी तरह चिपकाई गई रिपोर्ट की तरह है और यह इस बात का खुलासा नहीं करती, जिसमें मजीठिया वेजबोर्ड को लागू किए जाने को लेकर इस कोर्ट ने आदेश जारी किए थे। कोर्ट इस शपथपत्र के बेसिक फैक्ट तक नहीं समझ पाया है। यह रिपोर्ट/शपथपत्र बहुत ही साधारण तरीके से फाइल किया गया है और लेबर कमीश्रर ने उन्हें सौपे गए दायित्व का अस्वीकार्य तरीके से निर्वाह किया है। उत्तर प्रदेश राज्य के संबंध में जारी किए गए निर्देश हिमाचल प्रदेश के लेबर कमीश्रर भी प्रभावी तरीके से लागू करेंगे। वे चार सप्ताह बाद इस संबंध में एक रिपोर्ट कोर्ट को सौंपंगे और तो चार अक्टूबर को जब मामला कोर्ट के समक्ष होगा तो वे व्यक्तिगत तौर पर कोर्ट में मौजूद रहेंगे।

इसके अलावा कोर्ट में नागालैंड व मणिपुर के लेबर कमीश्ररों ने अपनी-अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। नागालैंड के लेबर कमीश्रर को चार अक्टूबर को उपस्थित होने को लेकर छूट दी गई है, जबकि मणिपुर के लेबर कमीश्रर को चार अक्टूबर को उत्तर प्रदेश व हिमाचल की तरह ही निर्देशों का पालन करके रिपोर्ट के साथ उपस्थित होने को कहा गया है।

वहीं उत्तराखंड के लेबर कमीश्रर व उनके वकील के उपस्थित न होने पर कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए यह मामला प्रदेश के मुख्य सचिव के ध्यान में लाने के निर्देश दिए गए। साथ ही मुख्य सचिव को उत्तर प्रदेश के मामले में जारी निर्देशों का पालन करके रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा गया है। वहीं उत्तराखंड के लेबर कमीश्रर की गिरफ्तारी के जमानती वारंट जारी करते हुए चार अक्टूबर को उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं।

इसके बाद अगली सुनवाई की तिथि यानी चार अक्टूबर को मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, महाराष्ट्र और झारखंड राज्यों के लेबर कमीश्ररों को मजीठिया वेजबोर्ड लागू करने से संबंधित रिपोर्ट लेकर व्यक्तिगत तौर पर उपस्थित होने के आदेश जारी किए गए हैं।

आदेश के अंतिम पैराग्राफ में लिखा है कि कोर्ट ने पत्रकार व गैरपत्रकार कर्मियों की ओर से उपस्थित सीनियर काउंसिल कोलिन गोन्साल्विस के उस मुद्दे को सुना, जिसमें उन्होंने पूछा है कि क्या मजीठिया वेजबोर्ड ठेके पर रखे गए पत्रकार व गैरपत्रकार कर्मियों पर भी लागू होगा। साथ ही कोर्ट ने मजीठिया वेजबोर्ड के क्लाज 20जे पर भी उनकी बात सुनी। अगली तिथि को कोर्ट इन मुद्दों पर प्रबंधन का पक्ष सुनेगा और इसके बाद उचित विचार के बाद आर्डर पास किया जा सकता है।

कई केस वापस किए गए तो कुछ बंद हुए

इस ताजा आदेश के प्रारंभ में ही कुछ शिकायतकर्ताओं द्वारा केस वापस लिए जाने की बात लिखी गई है। शायद ये वे साथी हैं, जिनका संस्थान के साथ समझौता हो गया होगा। वहीं कोर्ट ने उत्तर प्रदेश की रिपोर्ट के आधार पर भी मजीठिया वेजबोर्ड देने वाले संस्थानों को अवमानना से मुक्त कर दिया है। उत्तर प्रदेश श्रमायुक्त की रिपोर्ट के आधार पर कौन-कौन से संस्थान अवमानना से मुक्त हुए हैं, यह बात देखने वाली है, क्योंकि यूपी से बहुत कम लोग मजीठिया की लड़ाई में शामिल हैं। अमर उजाला जैसे अखबार से तो शायद एक भी केस नहीं हुआ है। ऐसे में अगर अमर उजाला को श्रमआयुक्त की रिपोर्ट का फायदा हुआ है तो इस अखबार के कर्मियों के लिए चिंता की बात है। लिहाजा अभी भी देरी नहीं हुई है। इस संस्थान में कार्यरत साथी या फिर छोड़ चुके या निकाले जा चुके कर्मचारी एकजुट होकर श्रम आयुक्त के समक्ष रिकवरी का दावा पेश करके मजीठिया के नाम पर की गई गड़बड़ी का भंडाफोड़ करें।

-रविंद्र अग्रवाल, धर्मशाला (हिप्र)
9816103265
ravi76agg@gmail.com



मजीठिया: 20जे तो याद, परंतु नई भर्ती को भूले, अवमानना तो हुई है http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/20_17.html

 

टूटा 20जे का खौफ, सबको मिलेगा मजीठिया, अब न करें देर http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/08/20.html



टूटा 20जे का खौफ, सबको मिलेगा मजीठिया, अब न करें देर

साथियों, आखिर‍कार 20जे का खौफ टूट ही गया। 23 अगस्‍त 2016 का दिन मजीठिया चाहने वाले साथियों के लिए राहत भरी खबर लेकर आया। सुप्रीम कोर्ट के माननीय जज रंजन गोगोई की पीठ ने सख्‍त चेतावनी देते हुए मजीठिया वेजबोर्ड की संस्‍तुतियों को अक्षरश: लागू करने के लिए कहा। यह संस्‍तुतियों सभी कर्मचारियों पर चाहे वे स्‍थायी हो या ठेके पर या अंशकालिक संवाददता या छायाकार हो पर भी लागू होंगी।

विशेष एक्‍ट पर ही बहस
20जे पर केवल और केवल विशेष एक्‍ट यानि वर्किंग वर्किंग जनलिस्‍ट एक्‍ट 1955 के तहत ही बहस हुई। बहस के दौरान वरिष्‍ठ वकील कोलिन ने भी एक्‍ट की धारा 13 और धारा 16 का ही जिक्र किया। उन्‍होंने कोर्ट को बताया कि धारा 13 वेजबोर्ड के तहत न्‍यूनतम वेतनमान प्राप्‍त करने का कर्मचारियों को हक देती है और वहीं, धारा 16 उन कर्मचारियों के लिए है जो वेजबोर्ड से ज्‍यादा वेतन प्राप्‍त कर रहे हैं। यानि 20जे उनके अधिक वेतन को प्राप्‍त करने के अधिकार की रक्षा करती है। जिसके बाद माननीय जज रंजन गोर्गाई जी ने स्‍पष्‍ट तौर पर कहा कि 20जे उन कर्मियों के लिए है जो वेजबोर्ड से ज्‍यादा वेतन पा रहे हैं, वहीं इससे कम वेतनमान पाने वाले कर्मियों के साथ किया गया किसी प्रकार का समझौता अमान्‍य होगा।
Rejoinder में कर दिया था विशेष एक्‍ट का जिक्र
अवमानना को लेकर दायर 411/2014 की याचिका के जवाबी शपथ पत्र में जागरण प्रबंधन ने 20जे पर किए गए कर्मचारियों के साइनों का उल्‍लेख किया था। जिसके बाद
वकील परमानंद पांडेय ने अपने rejoinder में विशेष एक्‍ट का जिक्र किया था।
एक्‍ट से बड़ा नहीं वेजबोर्ड
23 अगस्‍त की बहस से इस बात पर मोहर लगी कि एक्‍ट ही बड़ा होता है नाकि उसके तहत बनने वाले बेजवोर्ड। इस जानकारी को यहां देने का मकसद यह है कि अ‍भी कई अखबारों में यूनिटों में कैटेगरी का मामला भी उठेगा और वर्किंग जर्नलिस्‍ट एक्‍ट सभी यूनिटों को एक मानता है और इसपर सुप्रीम कोर्ट ने 2014 के अपने फैसले में भी स्‍पष्‍ट कर रखा है, जिसपर महेश जी ने एक लेख (मजीठिया: फरवरी 2014 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अखबार की सभी यूनिटों के आधार पर कंपनी को माना है एक... http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/08/2014.html) भी लिखा था।

सोशल मीडिया पर 20जे पर समय-समय पर आते रहे हैं लेख
20जे पर प्रबंधन के गुर्गों और उनके हित चिंतकों द्वारा किए जा रहे दुष्‍प्रचारों के बीच समय-समय ऐसे लेख भी सोशल मीडिया पर आए जिनमें इसके डर को दूर किया गया। वरिष्‍ठ वकील परमानंद पांडेय ने बहुत पहले ही अपने फेसबुक वॉल पर इस पर जानकारी दी थी। हां यह अवश्‍य है कि वह जानकारी अंग्रेजी में होने की वजह से हिंदी बहुल क्षेत्र के हमारे साथियों के बीच नहीं पहुंच पाई। धर्मशाला से रविंद्र अग्रवाल ने भी इस पर भी दो बार लिखा। पढ़े उनका 3 जुलाई का 2015 का लेख

हमें क्यों चाहिए मजीठिया भाग-3A: इकरारनामा वर्किंग जर्नलिस्ट (फिक्शेशन आफ रेट्स आफ वेजेज) एक्ट 1958 का उल्लंघन... http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2015/07/3a-1958.html


अन्‍य लेख इस प्रकार है –

हमें क्यों चाहिए मजीठिया भाग-16F: 20जे की आड़ में अवमानना से नहीं बच सकते http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/01/16f-20.html

 

महेश जी का लेख

मजीठिया: एक्ट बड़ा ना कि वेजबोर्ड की सिफारिशें http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/blog-post_90.html



20जे पर सभी की जीत
20जे पर यह सभी साथियों की जीत है। चाहें वे किसी भी अखबार के हों या किसी भी राज्‍य के। क्‍योंकि पहली सुनवाई में उत्‍तर प्रदेश, उत्‍तराखंड की जगह राजस्‍थान या मध्‍यप्रदेश होते तो भी 20जे पर यह ही फैसला आता है। इसका कारण आप अब तक समझ ही चुके होंगे, जी हां, एक्‍ट बड़ा होता है नाकि वेजबोर्ड। इसलिए यह बेमानी है कि यह किसी एक अखबार या किसी एक राज्‍य की जीत है।

28जुलाई 2015 के आदेश के थे व्‍यापक मायने
सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई 2015 को जब सभी राज्‍यों को बेजवोर्ड के संदर्भ में निर्देश दिए तो हमारे कई साथी परेशान हो गए कि मामला वेवजबह लंबा खींचा जा रहा है। परंतु वे इस बात की गहराई को नहीं समझ पाए कि इसमें वे संस्‍थान भी में जद में आ गए हैं जिनका कोई कर्मचारी सुप्रीम कोर्ट नहीं पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट ने यदि चंद अखबारों पर ही सुनवाई करनी होती है तो इसका फैसला कब का आ चुका होता। सुप्रीम कोर्ट फरवरी 2014 को दिए अपने फैसले की अवमानना पर सुनवाई कर रहा है। इसलिए उसने यह जानने के लिए कौन-कौन से संस्‍थानों ने उसके आदेश का उल्‍लंधन किया है 28जुलाई 2015 को यह आदेश दिया था। टि्ब्‍यून के पदाधिकारी विनोद कोहली का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का 28 जुलाई 2015 का आदेश बिल्‍कुल सही था और यह सभी कर्मचारियों के हित में था।

फैसले सभी पर लागू होते हैं एक समान
सामूहिक हित पर सुप्रीम कोर्ट का कोई भी फैसला पूरे देश में सभी पर एक समान लागू होता है। यही बात मजीठिया मामले में भी आती है चाहे 20जे का मामला हो या कैटेगरी का या फिटमैन प्रमोशन का राज्‍यवार या अखबारवार जैसे यह मुद़दा हल होता जाएगा वैसे यह सभी पर एक समान लागू होगा।

आगे आए मांगे अपना हक
साथियों अब तो 20जे का डर सुप्रीम कोर्ट ने निकाल दिया। अब किसी बात की देर कर रहे हो। विशेष तौर पर वे साथी जो रिटायर्ड हो गए हैं या नौकरी बदल चुके हैं या जिनका तबादला कर दिया गया है वे बेहिचक अपने हक के लिए सामने आए और डीएलएसी में अपने एरियर के क्‍लेम लगाए।

(23 अगस्‍त को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में उपस्थित पत्रकार साथियों से प्राप्‍त तथ्‍यों पर आधारित)


मजीठिया: 20जे तो याद, परंतु नई भर्ती को भूले, अवमानना तो हुई है http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/20_17.html


Wednesday, 24 August 2016

मजीठिया: हिप्र के लेबर कमीश्रर को कड़ी फटकार, जागरण प्रबंधन को जेल जाने को तैयार रहने को कहा

अखबारों में तैनात पत्रकार व गैर पत्रकार कर्मियों को मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशें लागू करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अमल न करने पर चल रहे अवमानना मामले में 23 अगस्‍त को हिमाचल प्रदेश के लेबर कमीश्रर के तौर पर आईएएस, अमित कश्यप सुप्रीम कोर्ट के समक्ष उपस्थित हुए। कोर्ट में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, मणिपुर व नागालैंड सहित हिमाचल के लेबर कमीश्रर को उनके राज्य में मजीठिया वेज बोर्ड लागू किए जाने की रिपोर्ट सहित तलब किया गया था।


दो बजे रखी गई मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस रंजन गोगोई व जस्टिस पीसी पंत की खंडपीड ने सबसे पहले उत्‍तर प्रदेश से शुरुआत की। जिसमें उत्‍तर प्रदेश के लेबर कमिशनर को भी काफी सुनना पड़ा। हिमाचल का नंबर आने पर जस्टिस रंजन गगोई ने जब रिपोर्ट पढ़ी तो उन्होंने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए लेबर कमीश्रर अमित कश्यप की खिंचाई शुरू कर दी और काफी फटकारा। कोर्ट ने लेबर कमीश्रर से कहा कि रिपोर्ट ऐसे तैयार होती है। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक इश्यू पर लेबर कमीश्रर को खरी खोटी सुनाते हुए अगली बार हिमाचल प्रदेश के समस्त समाचार पत्रों में मजीठिया वेज बोर्ड के तहत वेतनमान दिए जाने से संबंधित पूरा रिकार्ड प्रस्तुत करने को कहा। इसके साथ ही अब हिमाचल प्रदेश में अखबार मालिकों की झूठी रिपोर्टों के आधार पर कोर्ट में गलत जानकारी दे रहे श्रम विभाग की खटिया खड़ी होना निश्चित हो गया है। वहीं अखबार मालिकों के लिए अब मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को पूरी तरह लागू करने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है। अब देखना यह है कि चार अक्तूबर को रखी गई अगली पेशी में लेबर कमीश्रर हिमाचल प्रदेश किस तरह खुद को बचा पाते हैं।

जागरण प्रबंधन की हुई बोलती बंद

हिमाचल प्रदेश की सुनवार्इ के दौरान जब दैनिक जागरण की बारी आई तो प्रबंधन के वकील जस्टिस गोगोई को अपने तर्कों से संतुष्‍ट नहीं कर सके। जिस पर खंडपीठ ने जागरण प्रबंधन को सख्‍त चेतावनी देते हुए मजीठिया वेजबोर्ड को सभी कर्मचारियों पर लागू करने को कहा और ऐसा नहीं होने पर उन्‍हें जेल भेज देने की चेतावनी दी। जिसके बाद उनके वकीलों की एक बार को बोलती ही बंद हो गई।

उल्‍लखेनीय है कि हिमाचल प्रदेश की सुनवाई के दौरान जस्टिस गोगोई का कड़ा रुख इसलिए भी सामने क्‍योंकि हिमाचल प्रदेश के साथियों ने लेबर विभाग की कमियों और प्रबंधन की गड़बड़ियों के काफी सबूत एकत्र कर वकील गोलिन के पास अपनी एक टीम दिल्‍ली भेजकर पहुंचाएं थे। जिसका उल्‍लेख कर्मचारियों की संख्‍या आदि का जज साहब ने सुनवाई के दौरान भी किया।

रविंद्र अग्रवाल (धर्मशाला)
9816103265
ravi76agg@gmail.com

मजीठिया: वाह...!!! री उत्‍तराखंड सरकार... सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले ही कर दी जांच! एरियर व बर्खास्‍तगी के मामले गोल...! http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/blog-post_11.html




मजीठिया: समझौतों को फरवरी 2014 के फैसले में खारिज चुका है सुप्रीम कोर्टhttp://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/2014.html



मजीठिया: 20जे तो याद, परंतु नई भर्ती को भूले, अवमानना तो हुई है http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/20_17.html






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Tuesday, 23 August 2016

मजीठिया: उत्तराखंड के लेबर कमीशनर का गिरफ्तारी वारंट कटा

मजीठिया वेज बोर्ड लागू ना किए जाने को लेकर चल रहे अवमानना मामलों की सुनवाई के दौरान 23 अगस्त को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेशों की पालना ना करने पर उत्तराखंड के लेबर कमीश्रर के खिलाफ जमानती गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं। अब सुनवाई की अगली तारीख 4 अक्तूबर, 2016 को पुलिस उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करेगी। राज्य के चीफ सेक्रेटरी और लेबर कमीश्रर को निर्देश दिए गए हैं कि वे अगली तारीख को मजीठिया वेज बोर्ड लागू किए जाने की विस्तृत रिपोर्ट भी प्रस्तुत करें। आज अन्य चार राज्यों उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, नागालैंड व मणिपुर के लेबर कमीश्रर कोर्ट के प्रश्रों के उत्तर देने के लिए व्यक्तिगत तौर पर अपने-अपने राज्य के स्टैंडिंग काऊंसिलों के साथ कोर्ट रूप में उपस्थित थे।

जस्टिस रंजन गोगोई व जस्टिस पीसी पंत की बैंच ने दैनिक जागरण प्रबंधन को सख्त चेतावनी देते हुए मजीठिया वेजबोर्ड अवार्ड को अक्षरश: लागू करने या फिर जेल जाने को तैयार रहने को कहा है। जस्टिस गोगोई ने यह भी स्पष्ट किया है कि कोई भी प्रबंधन मजीठिया अवार्ड को 20जे की आड़ में नहीं छिपा सकता। यहां गौरतलब है कि इंडियन फैडेरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट और इसके वकील यह बात शुरू से ही कहते आ रहे हैं कि प्रबंधन 20जे की आड़ लेकर अवमानना के खतरे से नहीं बच सकते। सुप्रीम कोर्ट ने आज अखबार मालिकों द्वारा 20जे के जरिये फैलाई धुएं की परत को हटा दिया है। जस्टिस गोगोई ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि 20जे उन कर्मचारियों के लिए है जो मजीठिया अवार्ड से ज्यादा वेतनमान पा रहे हैं, वहीं इससे कम वेतनमान पाने वाले कर्मचारियों के साथ किया गया किसी प्रकार का समझौता अमान्य होगा।

ऐसे में कुटिल और धूर्त प्रबंधन विशेषकर दैनिक जागरण, भास्कर और राजस्थान पत्रिका के लिए मजीठिया लागू करके वेतनमान व एरियर जारी करने के अलावा कोई चारा शेष नहीं रह गया है। वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट नियमित और ठेका कर्मियों में कोई भेद नहीं करता है, लिहाजा सभी कर्मियों के लिए मजीठिया वेज बोर्ड 11 नवंबर, 2011 से लागू होता है।

फिलहाल कर्मियों को सलाह दी जाती है कि वे मजीठिया अवार्ड के तहत देय अपने वेतन, भत्तों और एरियर का भुगतान ना किए जाने की शिकायत तुरंत अपने-अपने राज्य के लेबर कमीशनर से करें। ऐसे कर्मियों को यह भी सलाह दी जाती है कि वे अपनी शिकायत की प्रति सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ रहे अपने वकीलों को भी भेजें।

सुप्रीम कोर्ट ने लेबर कमीशनरों को स्पष्ट कहा है कि वे समाचारपत्रों के प्रबंधन से किसी प्रकार की या सभी प्रकार की सूचना, कागजात व रिपोर्ट इत्यादि प्राप्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की अथारिटी के तहत कार्य कर सकेंगे और साथ ही वे प्रबंधन और कर्मचारियों से तथ्यों का पता लगाने के लिए जब जरूरी समझें संबंधित समाचार स्थापना का औचक निरीक्षण भी कर सकते हैं।

-परमानंद पांडेय
महासचिव, आईएफडब्ल्यूजे

Mob.- 09868553507
parmanand.pandey@gmail.com
parmanandpandey@yahoo.com


(हिंदी जानने वाले सभी साथियों के लिए यह अनुवाद हिमाचल प्रदेश के रविंद्र अग्रवाल ने किया है) 

मजीठिया: वाह...!!! री उत्‍तराखंड सरकार... सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले ही कर दी जांच! एरियर व बर्खास्‍तगी के मामले गोल...! http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/blog-post_11.html




मजीठिया: समझौतों को फरवरी 2014 के फैसले में खारिज चुका है सुप्रीम कोर्टhttp://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/2014.html



मजीठिया: 20जे तो याद, परंतु नई भर्ती को भूले, अवमानना तो हुई है http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/20_17.html






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Majithia: Supreme Court issues arrest warrant against Uttarakhand Labour Commissioner

 The Supreme Court of India today issued a bailable warrant of arrest against the Labour Commissioner of Uttarakhand for noncompliance of the order of the court. The police will have to ensure his presence in the Court on the next date of hearing i.e. 4th of October 2016. The Chief Secretary and the Labour Commissioner of the State have also been directed to file a detail report with regard the implementation of the Majithia Award before the next date of hearing. The Labour Commissioners of all other four states i.e. Uttar Pradesh, Himachal Pradesh, Nagaland and Manipur were physically present along with the Standing Counsel of their respective states in the court room to reply to the queries of Supreme Court.

        The bench of Justice Ranjan Gogoi and Justice P.C. Pant gave a stern warning to the Management of Dainik Jagran to implement the Majithia Award in its letter and spirit otherwise the court will be constrained to send them to jail. Justice Gogoi made it clear that no newspaper management can hide behind Section 20J of the Majithia Award. It may be mentioned here that the ‘Indian Federation of Working Journalists’ and its counsel have been saying from the very beginning that no management can escape the rigour of the contempt of court on the pretext of section 20J. The Supreme Court has today cleared all smokescreens that was sought to be created by the newspaper owners on 20J. Justice Gogoi told it in a very specific term that 20J will be applicable only for those employees who are being paid more than what the Majithia Award has recommended but where the employees are getting less than that, any agreement of contract made by the managements by the employees will be null and void.

      Thus there is no alternative left for the crooked and cunning managements, particularly of the Dainik Jagran, Rajasthan Patrika and Dainik Bhaskar, but to implement the Award and make the payment of wages and arrears to all eligible employees. The Working Journalists Act does not make any difference between regular and contractual employees and therefore, the Majithia Award will be applicable for all employees from 11.11.2011.

       In the meantime, the employees are advised to immediately make a complaint before the Labour Commissioner of their respective states in respect of the non-payment of the wages, allowances and arrears as per the Award. Such employees are also advised to send a copy their complaints to their respective lawyers in the Supreme Court. 
The Supreme Court made it clear to the Labour Commissioners they would work on the  authority  of the Supreme Court to seek any/ all information, documents reports etc. from the managements of the newspapers and they can also conduct surprise visits to the newspaper premises if they feel necessary to ascertain the facts from the managements and the employees.


Parmanand Pandey
Secretary General-IFWJ

Mob.- 09868553507
parmanand.pandey@gmail.com
parmanandpandey@yahoo.com



मजीठिया: वाह...!!! री उत्‍तराखंड सरकार... सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले ही कर दी जांच! एरियर व बर्खास्‍तगी के मामले गोल...! http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/blog-post_11.html




मजीठिया: समझौतों को फरवरी 2014 के फैसले में खारिज चुका है सुप्रीम कोर्टhttp://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/2014.html



मजीठिया: 20जे तो याद, परंतु नई भर्ती को भूले, अवमानना तो हुई है http://patrakarkiawaaz.blogspot.in/2016/07/20_17.html






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Thursday, 11 August 2016

मजीठिया: फरवरी 2014 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अखबार की सभी यूनिटों के आधार पर कंपनी को माना है एक...

नई दिल्ली। मजीठिया को लेकर चल रही हक की लड़ाई की 23 अगस्त 2016 की सुनवाई को लेकर सभी साथी बड़ी ही बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। इस दिन माननीय अदालत 20(जे) को लेकर वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट 1955 के अनुसार सुनवाई करेगी। और पूरी आशा है कि जीत कर्मचारियों की होगी क्योंकि एक्ट बड़ा है न की मजीठिया की सिफारिशें।


चलिए अब बात करते हैं मजीठिया को लेकर अखबार मालिकों द्वारा कई राज्यों के लेबर विभाग के माध्यम से कंपनी का Classification गलत व मनमाने तरीके से अपने आप को lower कैटगरी में बताया गया है उदाहरण के लिए उत्तराखंड द्वारा दी गई रिपोर्ट में दैनिक जागरण अखबार ने अपने आप को 5 वीं कैटगरी में दिखाया है जबकि ये अखबार 1वीं कैटगरी में आता है। वहीं, अमर उजाला ने भी अपने आपको 5वीं कैटगरी का दिखाया है, जबकि उसकी कैटगरी 2वीं है। इसी तरह अन्य अखबारों ने भी अपने आप को दर्शाया होगा।

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने 7 फरवरी 2014 के फैसले की पेज संख्या 54 के कॉलम 58 में साफ लिखा है कि वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट के सेक्शन 2(डी) के अनुसार ऑल- इंडिया न्यूजपेपर establishment की financial capacity and gross revenue के लिए अखबार की सभी यूनिटों को एक माना जाएगा। साथ ही माननीय कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा है कि establishment की व्यक्तिगत (Individual) यूनिट आर्थिक रूप से चाहे अक्षम हो तब हम ये नहीं कह सकते की न्यूजपेपर establishments जीने योग्य नहीं है।

58) On the other hand, it is the stand of the Union of India that in the absence of availability of such parameters for the assessment of capacity to pay of the newspaper establishments, it is judicially accepted methodology to determine the same on the basis of gross revenue and relied on the observations in Indian Express Newspapers (Pvt.) Ltd. (supra):-

“16…In view of the amended definition of the “newspaper establishment” under Section 2(d) which came into operation retrospectively from the inception of the Act and the Explanation added to Section 10(4), and in view further of the fact that in clubbing the units of the establishment together, the Board cannot be said to have acted contrary to the law laid down by this Court in Express Newspapers case, the classification of the newspaper establishments on all-India basis for the purpose of fixation of wages is not bad in law. Hence it is not violative of the petitioners’ rights under Articles 19(1)(a) and 19(1)(g) of the Constitution. Financial capacity of an all-India newspaper establishment has to be considered on the basis of the gross revenue and the financial capacity of all the units taken together. Hence, it cannot be said that the petitioner-companies as all-India newspaper establishments are not viable whatever the financial incapacity of their individual units. After amendment of Section 2(d) retrospectively read with the addition of the Explanation to Section 10(4), the old provisions can no longer be pressed into service to contend against the grouping of the units of the all-India establishments, into one class.”

आगे अपने फैसले में माननीय कोर्ट ने लिखा है कि एक्ट के सेक्शन 2(डी) जिसे सेक्शन 10(4) के साथ पड़ा जाए, जिसके अनुसार देश भर में फैली अखबार की सभी यूनिटों को एक ही मानना जाएगा। पुराने प्रावधान सभी यूनिटों को एक होने से नहीं रोक सकते। अब आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि अखबार प्रबंधन किस तरह माननीय सुप्रीम कोर्ट के 07 फरवरी 2014 के फैसले की अवमानना करने पर आमादा हैं।

महेश कुमार
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